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बिहार में पोखर-तालाबों की हो गई 'लूट', गरमा धान की सिंचाई के लिए नहीं बचा पानी

बिहार में पोखर-तालाबों की हो गई 'लूट', गरमा धान की सिंचाई के लिए नहीं बचा पानी

बिहार में जहां कभी गरमा सीजन में भी होता था धान की खेती. अब खरीफ सीजन में धान की खेती करना किसानों के लिए चुनौती. राज्य में अच्छी  बारिश नहीं होने से धान की खेती प्रभावित. सिंचाई के प्रकृतिक स्रोत हो रहे कम.

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बिहार में घट रहा पानी का जलस्तर,खरीफ सीजन में धान की खेती करना आसान नहीं रहा बिहार में घट रहा पानी का जलस्तर,खरीफ सीजन में धान की खेती करना आसान नहीं रहा

बिहार प्राकृतिक संसाधनों के मामले में काफी समृद्ध रहा है. यहां की स्थिति पानी के मामले में अन्य राज्यों की तुलना में बढ़िया रही है. तभी तो यहां के किसान गरमा सीजन में भी धान की खेती किया करते थे. लेकिन समय के बदलते काल चक्र पर नजर डालें तो गर्मी छोड़िए अब खरीफ में भी धान की खेती करना बहुत बड़ा चैलेंज बनता जा रहा है. राज्य की राजधानी पटना से लेकर उत्तर बिहार सहित दक्षिण बिहार के कई जिलों के किसान गरमा और खरीफ दोनों सीजन में धान की खेती किया करते थे. मगर अब ऐसी स्थिति बहुत कम देखने को मिल रही है.

पर्यावरण के क्षेत्र में लंबे समय से काम करने वाले मुंगेर विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति और थर्मल वैज्ञानिक प्रो. रणजीत कुमार वर्मा ने गरमा धान की खेती खत्म होने को लेकर जानकारी दी है. वे कहते हैं, “गरमा धान” की खेती गर्मी के मौसम में नदी, तालाब, आहर आदि जल स्रोतों के आसपास की भूमि पर होती थी. बाद में जल स्रोतों के सूखने के कारण भूमिगत जल से काम चलने लगा. वहीं कम समय में होने वाली यह फसल अपेक्षाकृत कम पानी में भी हो जाती थी. लेकिन गत सौ वर्षों में सहायक नदियां सहित तालाब, आहर, पईन, पोखर लोगों के कब्जे में चले गए और वर्षा जल का जो संचय घटता गया. दूसरी ओर नदियों पर भी अतिक्रमण कर उसकी चौड़ाई कम कर दी गई. जिसका परिणाम यह हुआ है कि खेती तो दूर की बात, अब पीने के लिए पानी की समस्या भी बनती जा रही है.

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भूगर्भ में पानी सोखने की क्षमता हो रही कम

पूर्व कुलपति प्रो.रणजीत कुमार वर्मा आगे बताते हैं कि पानी का जलस्तर जितना नीचे जा रहा है, लोग पानी के लिए उससे बहुत ज्यादा बोरिंग करा रहे हैं. जबकि भूजल को रिचार्ज करने वाले तालाब, छिछली नदियों और पहाड़ों के विलुप्त होने से सालों-साल वाटर लेवल नीचे जा रहा है. नीचे की मिट्टी में रासायनिक परिवर्तन से क्रॉस लिंकिंग हो रहा है और वह नीचे के ताप और दबाव में कड़ी होकर मुलायम पत्थर की तरह होती जा रही है. उसमें जल सोखने की क्षमता समाप्त होती जा रही है. जिससे हर साल पानी का लेयर नीचे होता जा रहा है.

खरीफ धान की खेती करना बड़ी चुनौती

स्वामी सहजानंद किसान वाहिनी के अध्यक्ष रविंद्र रंजन कहते हैं कि एक ऐसा समय था, जब सोन नहर से पटना जिले का पालीगंज, विक्रम, बिहटा, नौबतपुर, दानापुर सहित अन्य एरिया सिंचित होता था. यहां तक कि इससे गरमा धान की खेती भी आसानी से हो जाती थी. लेकिन जब से सोन नदी पर मध्य प्रदेश में बाणसागर और उत्तर प्रदेश में रिहंद बांध बना है, उसके बाद अब खरीफ सीजन में भी धान की खेती करना बहुत बड़ा चैलेंज है. यह समस्या तभी खत्म होगी, जब सोन नहर का आधुनिकीकरण किया जाएगा. 

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दरभंगा जिले के रहने वाले नरेंद्र सिंह कहते हैं कि आज से पंद्रह साल पहले उनके गांव बेलवारा में साल में दो बार धान की खेती होती थी. फसलों की सिंचाई गांव से गुजरने वाली नदी और तालाब के पानी से हो जाता था. लेकिन आज नदी में मॉनसून के समय में भी पानी नहीं है. गांव के तालाब अतिक्रमण के शिकार हो चुके हैं जिसके चलते अब पीने के पानी का लेयर भी लगातार हर साल नीचे जा रहा है.