हरियाणा के सोनीपत के किसान अपनी परंपरागत खेती छोड़कर दूसरी खेती की तरफ अग्रसर हो रहे थे. इससे मोटा मुनाफा कमा रहे थे, लेकिन अब किसानों के हाथ निराशा लगने लगी है. इस बार दीपावली पर दिल्ली और आसपास के इलाकों में सोनीपत के फूल खुशबू नहीं बिखेर पाए, क्योंकि प्लास्टिक के फूलों ने अब खुशबू वाले फूलों की जगह ले ली है और इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है. किसान इतना परेशान हो चुके हैं कि अब फूलों की खेती छोड़कर अपनी परंपरागत खेती पर लौट रहे हैं. किसानों का कहना है कि सरकार कहने को तो प्लास्टिक बंद करवा रही है, लेकिन प्लास्टिक के फूल मार्केट में बिक रहे हैं जिसके चलते हमें नुकसान हो रहा है. साथ ही पर्यावरण के लिए भी यह बहुत ज्यादा खतरनाक बन गया है.
किसान जितेन्द्र जगबीर बताते हैं कि सच्चाई छिप नहीं सकती बनावट के वसूलों से और खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से... यह तो कहावत है, लेकिन इस दिवाली पर हम किसानों के साथ ऐसा ही हुआ है. जहां खुशबू वाले फूलों को छोड़कर लोग बनावटी फूलों पर टूट पड़े हैं. प्लास्टिक के फूलों के कारण सोनीपत के किसानों को बहुत भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है.
सोनीपत का गांव नाहरी फूलों की खेती के लिए मशहूर है और यहां पर गांव के सभी किसान सैकड़ों एकड़ जमीन पर फूलों की खेती करते हैं ,लेकिन इस बार किसानों को निराशा हाथ लगी है. दीपावली पर सोनीपत के फूलों की खुशबू ही दिल्ली और आसपास के इलाकों में रहती थी. लेकिन पिछले कुछ सालों से ऐसा नहीं हो रहा है. किसान इस बार इतना परेशान हैं कि वह अपने फूलों की खेती को छोड़ने की सोच रहे हैं.
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किसानों का कहना है कि पिछले 20 साल से उनके गांव के किसान फूलों की खेती कर रहे हैं ,लेकिन इस बार भाव इतना कम रहा कि किसानों की लागत भी नहीं निकल पाई. जो फूल 80 रुपये किलोग्राम बिकता था, इस बार महज 15 रुपये किलोग्राम बिका है और इसका कारण मार्केट में प्लास्टिक के फूल आने के कारण हुआ है.
खुशबू वाले फूलों की जगह प्लास्टिक वाले फूलों ने ले ली है और मार्केट में डिमांड भी बढ़ रही है. जिसके कारण इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है. किसानों को इस बार लाखों रुपये का नुकसान हुआ है.
फूलों की खेती से हो रहे घाटे के कारण काफी लोगों ने गेहूं की फसल की बुवाई कर दी है. वहीं अब छठ पूजा से किसानों को आशा है. किसानों के निराशा हाथ लगने के बाद उनका कहना है कि सरकार अगर इस तरफ ध्यान नहीं देती है तो वह फूलों की खेती छोड़ देंगे. किसान सरकार से अपील कर रहे हैं कि प्लास्टिक कहने को बंद कर दिया गया है लेकिन अब इसे रोकने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे. प्लास्टिक किसानों के लिए ही नहीं बल्कि पर्यावरण के लिए भी बहुत ज्यादा खतरनाक है.
दुकानदारों ने बताया कि मार्केट में लगातार प्लास्टिक के फूलों की डिमांड बढ़ रही है. दुकानदारों का कहना है कि बनावटी फूलों की डिमांड इस बार दिवाली पर भी ज्यादा रही है क्योंकि यह फूल एक बार धोने के बाद नए जैसे दिखाई देते हैं और वो असली जैसे दिखने लगते हैं. हालांकि उनसे खुशबू नहीं आती ,लेकिन सजावट के लिए यह बहुत अच्छे हैं.
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