देश में बड़े पैमाने पर आम की बागवानी की जाती है. आम की क्वालिटी और उपज के लिए जनवरी से लेकर फरवरी का समय काफी अहम है क्योंकि मंजर निकलने से लेकर फल आने तक की अवस्था बेहद संवेदनशील होती है. इस साल के बदलते मौसम में आम के बागों में समय से पहले बौर आ रही है. इस पर फंगस के फैलने से झुलसा रोग का प्रकोप हो सकता है. इसलिए अपने बगीचे में ऐसा प्रबंधन करें कि आपको बंपर आम की बंपर उपज के साथ ही बेहतरीन क्वालिटी भी मिल सके. आमतौर पर देखा गया है कि अगर हम बाग का प्रबंधन अच्छे से नहीं कर पाते, तभी फलों की पैदावार और क्वालिटी बिगड़ती है. इसके लिए कुछ तकनीकी जानकारी भी ज़रूरी है. फल चमकदार हों, उनका आकार बड़ा हो, इसके लिए अभी से तैयारी शुरू कर दें.
आईसीएआर का फल बागवानी संस्थान सीआइएसएच लखनऊ ने आम की बागवानी करने वाले किसानों को इसके लिए सुझाव दिए हैं. इस साल आम के बागों में समय से पहले बौर आ रही है. इस पर फंगस फैलने पर झुलसा रोग का प्रकोप हो सकता है. इस रोग के प्रकोप से बौर का झड़ना और अविकसित फल और कम फल लगते हैं. यह रोग हवा में 80 प्रतिशत से अधिक आर्द्रता या जब बारिश होती है तो बढ़ जाता है. इससे गंभीर आर्थिक क्षति होती है. ऐसी स्थिति में आम के बाग में बौर लगने से पहले आम के अगेती बौर को बचाने के लिए मेन्कोजेब और कार्बेन्डाजिम का 2 प्रतिशत घोल एक लीटर पानी में छिड़काव करना चाहिए. या ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 25 प्रतिशत दवा को और टेबुकोनाज़ोल 50 प्रतिशत दवा को यानी 1 मिली लीटर दवा 4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.
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कृषि विज्ञान केंद्र अयोध्या के हेड और बागवानी विशेषज्ञ डॉ बीपी शाही ने बताया कि आम की क्वालिटी उपज के लिए अच्छी बौर बहुत अहम है क्योंकि मंजर निकलने से लेकर फल बनने तक की अवस्था बेहद संवेदनशील होती है. आम की बागवानी में सिंचाई का अहम स्थान है. लेकिन ये सावधानी ज़रूर रखनी चाहिए कि पेड़ों के मंजर के टाइम पर सिंचाई या पटवन नहीं किया जाना चाहिए. इससे मंजर स्टेज ठीक से पूरा नहीं हो पाएगा. यानी फूल गिर सकते हैं. जब फल सरसों के दाने के बराबर हो जाएं तब जाकर पेड़ों को सिंचाई देनी चाहिए.
डॉ शाही नो बताया कि बौर खिलने के पहले फसल को रोग से बचाने के लिए 1 लीटर पानी में 2 ग्राम सल्फर का घोल बनाकर पेड़ पर उगने से पहले छिड़काव करना चाहिए. हवा तब तक चलने लगती है जब तक कि फल सुपारी के आकार का न हो जाए. इससे पेड़ से फल गिरने लगते हैं. इससे बचने के लिए 4 से 5 लीटर पानी में 1 एमएम प्लानोफिक्स का घोल बनाकर आम के पेड़ों पर अच्छी तरह स्प्रे करें. उन्होंने कहा, अगर बारिश, हवा, तूफान और पत्थरों से फसल को नुकसान नहीं हुआ तो उत्पादन बेहतर होगा. मंजर काफी लगते हैं, लेकिन जैसे-जैसे फल तैयार होते हैं, 50 फीसदी फल खत्म हो जाते हैं. इसके पीछे का कारण पेड़ों की उचित देखभाल नहीं करना है.
आम में जब मंजर खिल जाएं या 50 प्रतिशत तक फूल आ जाएं, तब दवाओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए. नहीं तो फायदे की जगह नुक़सान की आशंका रहती है. जब फल सरसों के दाने के बराबर दिख रहे हों, तभी कीट-रोगों से बचाव का इंतज़ाम करें. फफूंद रोग के उभरने के बाद नियंत्रण के लिए डाइथीन एम-45 का छिड़काव करना चाहिए. इससे फसलों को काफी लाभ होता है. इसके लिए 1 ग्राम डाईथीन एम-45 प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. जब फल सरसों के दाने जैसा दिखने लगे, तो आधा ग्राम इमीडाक्लोप्रिड का प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें,
अगर इन उपायों के बावजूद आम के पेड़ से कीटों की परेशानी ना जाए और मंजर आने में देर हो, तो किसी परसिस्टेंट इनसेक्टीसाइड की 2 मीलीलीटर दवा, एक लीटर पानी में घोल बना कर, नीचे तने से लेकर पत्तियों तक पर छिड़काव करें. इससे आम का बाग रोग-कीट मुक्त होगा और फलों का अच्छा विकास होगा. आम के बाग पर मिली बग यानी दहिया कीट मंजर और उसके आसपास की कोमल टहनियों पर आक्रमण करते हैं.
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इससे बचने के लिए 2 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से सल्फेस दवा का छिडकाव करना चाहिए. इस कीट से बचने के लिए इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट यानी IPM अपनाएं. इसके लिए नीम की खली या करंज की खली का उपयोग पेड़ के एक मीटर दायरे की मिट्टी में करें. इससे ज़मीन में रहने वाले कीट दहिया यानी मिली बग कीट आक्रमण नहीं कर पाते. इसके अलावा पेड़ पर चढ़ने वाले कीट को रोकने के लिए जले हुए ग्रीस या डीजल में इनसेक्टीसाइड का भुरकाव कर ऐसी चिपचिपी पेस्ट का एक लेयर तने के चारों ओर लगा दें. इस तरह की कई विधियों को ज़रूरत के मुताबिक़ अपना कर आप अपने आम के बगीचे को कीट मुक्त कर सकते हैं.
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