Ethanol: 2जी इथेनॉल करेगा कमाल, पेट्रोल, पराली और प्रदूषण पर कसेगा शिकंजा, जानें अवसर और चुनौतियां

Ethanol: 2जी इथेनॉल करेगा कमाल, पेट्रोल, पराली और प्रदूषण पर कसेगा शिकंजा, जानें अवसर और चुनौतियां

दुनिया में भोजन बनाम ईंधन को लेकर बहस चल रही है. इस बहस में यह तर्क दिया जा रहा है कि 1-जी इथेनॉल उत्पादन के लिए प्राथमिक फीडस्टॉक के रूप में खाद्यान्न के अत्यधिक उपयोग के कारण भोजन की कमी होगी, जबकि दूसरी पीढ़ी यानी 2 -जी इथेनॉल भविष्य में कई समस्याओं का समाधान करता दिख रहा है.

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Ethanol: 2जी इथेनॉल करेगा कमाल, पेट्रोल, पराली और प्रदूषण पर कसेगा शिकंजा, जानें अवसर और चुनौतियांपराली प्रदूषण पर शिकंजा कसेगा 2जी इथेनॉल

इथेनॉल दुनिया में सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला जैव ईंधन है. इसे गैसोलीन और अन्य परिवहन उद्योगों के विकल्प के रूप में माना जा रहा है. पहली पीढ़ी (1G) इथेनॉल का व्यावसायिक रूप से उत्पादन स्टार्च, गन्ना का शीरा, मक्का, गेहूं और चावल से किया जाता है, इसलिए दुनिया में भोजन बनाम ईंधन को लेकर बहस चल रही है. इस बहस में यह तर्क दिया जा रहा है कि 1 जी -इथेनॉल उत्पादन के लिए प्राथमिक फीडस्टॉक के रूप में खाद्यान्न के अत्यधिक उपयोग के कारण भोजन की कमी होगी, जबकि दूसरी पीढ़ी यानी 2 जी इथेनॉल भविष्य में कई समस्याओं का समाधान करता दिख रहा है.

2 जी इथेनॉल के उत्पादन पर क्यों है जोर ?

लिग्नोसेल्यूलोसिक फीडस्टॉक से इथेनॉल के उत्पादन में दुनिया और हमारे देश में अधिक रुचि दिखाई जा रही है क्योंकि इसके लिए धान की पराली, गेहूं का भूसा, गन्ने की खोई, कई फसलों के अवशेष और लकड़ी के अपशिष्ट, बांस, कृषि-वानिकी अवशेषों का उपयोग किया जाता है. 2जी इथेनॉल के उपयोग से पेट्रोल और डीजल पर निर्भरता कम होने के साथ पर्यावरणीय लाभ भी हैं. खेत में पड़े गेहूं और धान के भूसे का उपयोग जब इथेनॉल के लिए किया जाएगा तो इससे किसानों की आय भी बढ़ेगी और इस तरह  के प्लांट से रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे. वहीं दूसरी ओर, यह पराली जलाने से फैलने वाले प्रदूषण को भी रोकेगा और ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को कम करने में योगदान देगा.

सरकार को भी काफी उम्मीदें

सरकार को भी इसमें उम्मीद दिख रही है क्योंकि दिल्ली में आयोजित 63वें ACMA वार्षिक सत्र में नितिन गडकरी ने कहा था कि देश में अब पराली नहीं जलाई जाएगी क्योंकि हरियाणा में इंडियन ऑयल का प्लांट शुरू होने से पानीपत में 1 लाख लीटर इथेनॉल का उत्पादन हो रहा है. अब हमारे देश में आगे इस पर और भी काम होंगे. इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के इस 900 करोड़ के 2जी इथेनॉल प्लांट का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी ने अगस्त 2022 में किया था. आईओसी के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, श्रीकांत माधव बैद्य के अनुसार इस इथेनॉल संयंत्र को हर साल 15 लाख टन पराली फीडस्टॉक की जरूरत होगी. पराली फीडस्टॉक का संग्रह अब शुरू हो गया है और यह संयंत्र जल्द ही पूरी क्षमता तक पहुंच जाएगा .

पेट्रोल और प्रदूषण पर कसेगा शिकंजा

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने 8 मार्च, 2019 के एक गजट में कहा है कि 2जी इथेनॉल पर जोर देने की जरूरत है क्योंकि देश का लिग्नोसेल्यूलोसिक अधिशेष बायोमास लगभग 12-16 करोड़ टन प्रति साल होता है. अगर इस बायोमास को उपयोग किया जाता है, तो इसमें 2500 से 3000 करोड़ लीटर इथेनॉल का उत्पादन होने की क्षमता है यह देश को आयातित कच्चे तेल की निर्भरता को काफी कम कर सकता है. 2जी इथेनॉल बायोरिफाइनरीज सेल्युलोसिक इथेनॉल के उत्पादन के अलावा, लिग्निन से बायोसीएनजी का उत्पादन किया जा सकता है. प्रधानमंत्री जी-वन योजना यानी जैव ईंधन-वातावरण अनुकूल फसल अवशेष निवारण योजना” के तहत 2 जी इथेनॉल परियोजनाओं की स्थापना के लिए एकीकृत जैव -इथेनॉल परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए है. ये परियोजनाएं लिग्नोसेलूलोसिक बायोमास और अन्य नवीकरणीय फीडस्टॉक का उपयोग करने वाली हैं. योजना का कुल वित्तीय परिव्यय वर्ष 2018-19 से 2023-24 की अवधि के लिए 1969.50 करोड़ रुपये है.

2 जी इथेनॉल के लिए रोड मैप तैयार 

इस योजना के तहत पंजाब, हरियाणा, ओडिशा, असम और कर्नाटक में छह वाणिज्यिक इकाइयों को 2जी  की जैव-इथेनॉल परियोजनाओं के लिए दिया जाएगा और हरियाणा और आंध्र में एक-एक इकाई 2जी इथेनॉल परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) को 880 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं. इनमें से पानीपत  हरियाणा में वाणिज्य परियोजना राष्ट्र को समर्पित की गई है, वहां पर इथेनॉल का उत्पादन शुरू हो गया है और बठिंडा (पंजाब), बरगढ़ (ओडिशा) और नुमालीगढ़ (असम) में वाणिज्यिक परियोजनाएं निर्माण के अग्रिम चरण में हैं.

धान की पराली में कितना मिलता है इथेनॉल ?

एक शोध के अनुसार 2 जी इथेऩॉल के फीड स्टाक धान की 1 टन पराली से 416 लीटर इथेऩॉल, गेहूं के भूसे से 406 लीटर,  गन्ने की खोई से 380 लीटर से लेकर 500 लीटर तक इथेनॉल निकाला जा सकता है. ज्वार से 318 से लेकर 500 लीटर तक प्राप्त किया जा सकता है और अपने देश में इन फसल अवशेषों की कमी नहीं है क्योंकि इन फसल अवशेषों को निपटाने के लिए किसान से लेकर सरकार तक चितिंत हैं. हमारे देश में 5000 लाख टन फसल अवशेषों का उत्पादन होता है, फसल के अवशेषों का सिर्फ 22 प्रतिशत ही इस्तेमाल होता है, बाकि को जला दिया जाता है. जिससे प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है. 

2 जी इथेनॉल उत्पादन में क्या हैं चुनौतियां ?

मगर इन बायोमॉस से  इथेनॉल निकालना इतना आसान भी नही है क्योंकि इसके लिए बायोमास को सेल्युलोसिक इथेनॉल में परिवर्तित करने के लिए तीन चरणों की जरूरत होती है. बायोमॉस का प्रीट्रीटमेंट ,हाइलोसिस और किण्वन है. जिसमे 1 जी इथेनॉल की तुलना में 2 जी इथेनॉल में ज्यादा उर्जा और लागत खर्च आता है. वहीं कटाई, भंडारण और परिवहन के लिए बुनियादी ढांचे की कमी है जिस पर काम करने की जरूरत है .

2 जी इथेनॉल हर तरह से देश के लिए फायदेमंद

2 जी इथेनॉल उत्पादन से एक पर्यावरण-अनुकूल ईंधन मिलता है, जो परिवहन व्यवस्था को कार्बन मुक्त करने में मदद करेगा. वहीं यह कृषि उत्पादन के लिए बेहतर उपयोग हो सकेगा क्योंकि ये केवल खाद्यान्न भागों के बजाय पूरे पौधों में उपयोग होगा. इथेनॉल उत्पादन के लिए सेलूलोज़ का उपयोग करने का मतलब है धान गेहूं औऱ गन्ना सहित अन्य फसल अवशेष के हिस्से बर्बाद नहीं होते हैं. इसके बजाय, उनका उपयोग बायोएथेनॉल उत्पादन के लिए किया जा सकता है, जिससे किसानों लाभ मिलता है.वहीं  देश हर साल लगभग नगर पालिका के 620 लाख टन ठोस अवशिष्ट पदार्थ का भी 2 जी इथेऩल बनाने में उपयोग किया जा सकता है.इसलिए अगर लागत को कम कर लिया जाए तो इसमें काफी अवसर दिखते हैं. बस जरूरत है इस पर औऱ काम करने की जिससे बेहतर लाभ लिया जा सके.
 

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