देश में आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ती जा रही है. इनके काटने से होने वाली रेबीज का आंकड़ा भी बढ़ रहा है. यूपी में रेबीज से मरने वालों की संख्या भले ही बढ़ रही है लेकिन अभी भी सरकारी आंकड़े इस भयावह स्थिति को नहीं दिखा रहे हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 2020 में आवारा कुत्तों के काटनो की संख्या 4.3 1 लाख थी जो 2021 में घटकर 1.92 लाख रह गई. 2022 में यह आंकड़ा और भी कम होकर 1.69 लाख हो गया. देश में प्रति घंटे 19 लोग आवारा कुत्तों के आतंक की चपेट में आते हैं. 2022 में रेबीज से भारत में 342 लोगों की मौत हुई थी. हालांकि यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है क्योंकि इसमें बहुत से निजी अस्पतालों के आंकड़े शामिल नहीं है. वेटरनरी चिकित्सको की माने तो रेबीज का वायरस कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक होता है क्योंकि इससे दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें हर साल हो रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत में रेबीज एक स्थानिक बीमारी बन चुका है.
देश में एक अनुमान के मुताबिक 3 करोड़ पालतू कुत्ते हैं और 3.5 करोड़ आवारा डॉग्स है. आवारा कुत्तों के मामलों में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है. स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में महाराष्ट्र ,तमिलनाडु के बाद यूपी में सबसे ज्यादा डॉग बाइट के मामले सामने आए हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ ही नहीं बल्कि गाजियाबाद, नोएडा और हापुड़ जैसे जिलों में कुत्तों के हिंसक होने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. राजधानी लखनऊ में पिछले 1 साल में 1500 लोगों को कुत्तों ने काटा है. सरकारी आंकड़े के मुताबिक हर रोज 200 नए मामले सामने आ रहे हैं. गाजियाबाद ,नोएडा , हापुड़ में कुत्ते काटने की घटनाएं सबसे ज्यादा हो रही है. गाजियाबाद में हर महीने कुत्ते काटने के 3000 नए मामले जिला अस्पताल में पहुंच रहे हैं जबकि इस आंकड़े में प्राइवेट क्लीनिक का आंकड़ा शामिल नहीं है.
लखनऊ की वेटरनरी डॉक्टर सरस्वती शुक्ला ने बताया की दो तरह से रेबीज प्रभावित डॉग्स को पहचाना जा सकता है. पहले प्रकार को डंप फॉर्म कहते हैं जिसमें अगर किसी कुत्ते के मुहॅ से लार टपक रही है तो यह इसका लक्षण है. वही दूसरा फ्यूरियस फॉर्म है जिसमें कुत्ते के व्यवहार में परिवर्तन दिखाई देता है. इस तरह का कुत्ता हिंसक हो जाता है. ऐसे में इस तरह के कुत्ते अगर किसी को काटे तो तुरंत वैक्सीनेशन करना चाहिए. सरस्वती शुक्ला ने किसान तक को बताया कि अगर किसी व्यक्ति को रेबीज संक्रमित किसी जानवर ने काट लिया है तो उसे 72 घंटे के भीतर अपना इलाज करवाना चाहिए नहीं तो वैक्सीन या एंटी रेबीज का टीका लगाने का भी कोई फायदा नहीं होता है. हाल में हुई गाजियाबाद की घटना ने यह साबित कर दिया है.
वेटरनरी डॉक्टर सरस्वती शुक्ला ने बताया की किसी भी कुत्ते के काटने के बाद सबसे पहले काम घाव को साबुन से धुलना चाहिए और फिर 72 घंटे के भीतर एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाना चाहिए क्योंकि एक बार संक्रमण के लक्षण उभरने के बाद इसका कोई इलाज नहीं है. कटे हुए स्थान पर मिर्च ना बांधे और न ही टांके लगवाएं. रेबीज से प्रभावित व्यक्ति में पानी से डर लगता है. उसे बुखार, सिर दर्द ,घबराहट या बेचैनी जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं. यहां तक की खाना-पानी निगलने में भी कठिनाई होती है.
कुत्ते के अलावा भी हमारे आसपास कई ऐसे और जानवर हैं जिनके काटने , खरोंचने या फिर उनके संपर्क में आने से भी आपको रेबीज हो सकता है. इसलिए कुत्ता, बिल्ली, बंदर, नेवला, लोमड़ी, सियार या फिर गिलहरी, चूहे और खरगोश को पालने से पहले यह सुनिश्चित कर ले कि इन्हें रेबीज की बीमारी तो नहीं है. अगर इन्होंने आपको काट लिया या खरोंज लिया तो आप रेबीज के शिकार हो सकते हैं. वेटरनरी डॉक्टर सरस्वती शुक्ला ने बताया की रेबीज दो तरह से फैलता है. एक तो ये जानवर किसी को काट ले जबकि दूसरे प्रकार में इस तरह के रेबीज प्रभावित जानवर किसी व्यक्ति के खुले घाव को अगर वह अपनी जीभ से चाट दे तो भी उन्हें यह संक्रमण फैल सकता है.
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