भारत में मुर्गी पालन बहुत बड़ा पेशा है. खासकर ग्रामीण इलाकों में. ग्रामीण इलाकों में भी आंगन में मुर्गी पालन कई परिवारों की आमदनी का जरिया है. उसमें भी महिलाएं सबसे ज्यादा लाभान्वित होती हैं. ऐसे में पालन-पोषण के लिए मुर्गियों का चयन किसानों का पहला महत्वपूर्ण निर्णय होता है. इसे देखते हुए मुर्गी पालने वाले किसानों को बाजार की मांग को समझना चाहिए और उसके अनुसार ही निर्णय लेना चाहिए.
मुर्गियों के चयन के लिए आमतौर पर तीन प्रकार के पक्षी होते हैं. लेयर प्रकार की मर्गियां अंडों के उत्पादन के लिए बेस्ट होती हैं. ब्रॉयलर प्रकार की मुर्गियां मांस के लिए अच्छी होती हैं. दोहरी प्रकार की मुर्गियां अंडे और मांस दोनों के उत्पादन के लिए उपयुक्त होती हैं. एक्सपर्ट के मुताबिक, किसान को किस तरह की मुर्गी का पालन करना चाहिए, इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए.
इसके अलावा किसानों को ये भी जान लेना चाहिए कि देश में मुर्गियों की 20 मान्यता प्राप्त नस्लें हैं जो राज्यों के मुताबिक हैं. किसानों को इन मान्यता प्राप्त नस्लों को ही पालने की सलाह दी जाती है. आइए जान लेते हैं ये 20 नस्लें कौन सी हैं.
ICAR की पत्रिका खेती में दी गई जानकारी के मुताबिक, मुर्गी पालन में दो प्रकार की नस्लों का उपयोग होता है: देसी/स्थानीय और उन्नत नस्लें. भारत में विकसित उन्नत नस्लें, स्थानीय नस्लों की तुलना में 2-3 गुना अधिक उत्पादन करती हैं. इसलिए किसानों को आंगन में कुक्कुट पालन के लिए उन्नत नस्लों का चयन करना चाहिए. यदि देसी/स्थानीय नस्लों की मांग अधिक है, तो किसानों को इन्हें ही पालना चाहिए.
आंगन में कुक्कुट पालन भारत में एक बहुत पुरानी प्रथा है. हालांकि किसानों को बेहतर उत्पादकता और मुर्गियों में उच्च मृत्यु दर से बचाने के लिए प्रशिक्षण लेना चाहिए. कुक्कुट उत्पादन से अधिक आय पाने के लिए ये आधुनिक प्रबंधन प्रथाएं बहुत प्रायोगिक और फायदेमंद होती हैं.
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