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ढाई टन का पत्थर खींचते हैं ये दो सांड, आपने कहीं देखी है ऐसी अनोखी रेस?

ढाई टन का पत्थर खींचते हैं ये दो सांड, आपने कहीं देखी है ऐसी अनोखी रेस?

जिस कैटेगरी के सांड होते हैं. उसी हिसाब से उनसे पत्थर बांधा जाता है. दो सांडों की जोड़ी के साथ सात लोगों की टीम दौड़ती है. इसके लिए 300 फीट का कोर्ट बनाया जाता है जिसमें प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले सांड पत्थरों को खींचते हुए दौड़ते हैं. जीतने पर सांडों की जोड़ी को बड़े-बड़े इनाम मिलते हैं.

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आंध्र प्रदेश में होता है ओंगोल सांडों का खास कॉम्पटीशन (फोटो-देवभक्तूनी चक्रवर्ती) आंध्र प्रदेश में होता है ओंगोल सांडों का खास कॉम्पटीशन (फोटो-देवभक्तूनी चक्रवर्ती)

आपने ओंगोल सांड के बारे में सुना होगा. इन सांडों की कद-काठी ऐसी होती है कि देखने वाले कुछ देर तक टकटकी लगाए रहते हैं. इनकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि कई सौ किलो का वजन ये देखते-देखते खींच लेते हैं. यही वजह है कि पुराने जमाने में दक्षिण के कई प्रदेशों में इनका पालन खेती और ढुलाई के लिए किया जाता था. आज इन सांडों की नुमाइश बहुत बड़ी-बड़ी प्रतियोगिताओं में होता है. इनका मुकाबला देखने लायक होता है जिसमें कई लाख रुपये का इनाम रखा जाता है. इन सांडों के दाम 50 लाख रुपये तक जाते हैं. कुछ के दाम तो एक-एक करोड़ तक जा चुके हैं.

ओंगोल सांड के कॉम्पटीशन में सबसे खास है स्टोन पुलिंग. इसमें दो ओंगोल सांड एक साथ दौड़ते हुए किसी भारी-भरकम पत्थर को खींचते हैं. सांडों के साथ सात लोगों की टीम भी दौड़ लगाती है. इन सांडों के शरीर की बनावट ऐसी होती है कि मानो वे स्टोन पुलिंग कॉम्पटीशन के लिए ही बने हों. एक तो इनका आकार बहुत बड़ा होता है. शरीर लंबा और गर्दन छोटी होती है. पैर लंबे और मांसल होते हैं. दोनों आखों के बीच फैला लिलाट चौड़ा और आगे की तरफ थोड़ा निकला रहता है.

आइए अब ओंगोल सांडों के स्टोन पुलिंग कॉम्पटीशन के बारे में जान लेते हैं. यह प्रतियोगिता सांड के वजन और उम्र पर निर्भर करती है. यानी सांड का वजन जितना होगा और उम्र जितनी होगी, उसी हिसाब से स्टोन पुलिंग प्रतियोगिता में उसे मैदान में उतारा जाएगा. स्टोन पुलिंग प्रतियोगिता में आठ कैटेगरी होती है. इसके लिए सांडों को कॉम्पटीशन कोर्ट में ले जाया जाता है जहां जज उनके दांत गिनकर तय करते हैं कि उसे किस कैटेगरी में उतारना है. कॉम्पटीशन की कैटगरी मिल्थ टीथ से शुरू होकर सीनियर लेवल तक जाती है. इस तरह की प्रतियोगिता पूरे आंध्र प्रदेश में आयोजित होती है जिनमें महानंदी और मेल्लाचेरुवु के नाम खास हैं.

Ongole bull

यहां गौर करने वाली बात ये है कि कॉम्पटीशन की आठ कैटेगरी के हिसाब से स्टोन पुलिंग में खींचे जाने वाले पत्थरों का वजन भी अलग-अलग होता है. मिल्क टीथ कैटेगरी में शामिल ओंगोल सांड 500 किलो का पत्थर खीचते हैं जबकि टू टीथ कैटेगरी में 700 किलो, फोर टीथ कैटेगरी में एक टन, सिक्स टीथ कैटेगरी में 1.2 टन, कैटेगरी श्रेणी में 1.3 टन से 1.4 टन, सब जूनियर या ओल्ड कैटेगरी में 1.6 से 1.7 टन, जूनियर कैटेगरी में 1.8 से दो टन और सीनियर कैटेगरी में शामिल ओंगोल सांड ढाई टन का पत्थर खींचते हैं. 

अब ये जानते हैं कि जीतने वाली ओंगोल सांड की जोड़ी को किस आधार पर इनाम मिलता है. जिस कैटेगरी के सांड होते हैं. उसी हिसाब से उनसे पत्थर बांधा जाता है. दो सांडों की जोड़ी के साथ सात लोगों की टीम दौड़ती है. इसके लिए 300 फीट का कोर्ट बनाया जाता है जिसमें प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले सांड पत्थरों को खींचते हुए दौड़ते हैं.

डीवीआर मेमोरियल्स बुल्स के मालिका देवभक्तूनी चक्रवर्ती

कॉम्पटीशन कोर्ट के दोनों ओर बॉर्डर लाइन बनी होती है जिसे दौड़ के दौरान टच करना होता है. भारी भरकम पत्थर के दोनों छोर पर दो होल बने होते हैं जिनमें रस्सी या मेटल का रॉड बांध कर सांडों से जोड़ दिया जाता है. जब दौड़ की शुरुआत होती है तो सांड स्टार्टिंग लाइन से फिनिश लाइन की तरफ दौड़ते हैं और वापस स्टार्टिंग लाइन पर आकर रुकते हैं. अगर सांडों की जोड़ी लाइन को टच कर लेती है तो उन्हें विजेता घोषित कर देते हैं. इसमें देखा जाता कि कौन सी जोड़ी कितनी जल्दी दौड़ को पूरा कर लेती है. जीतने के बाद इस टीम को कई तरह के इनाम दिए जाते हैं जिनमें कैश, ट्रॉफी और ट्रैक्टर आदि शामिल हैं. इनाम में बुलेट बाइक भी दी जाती है.

ओंगोल सांड की दौड़ प्रतियोगिता

इन सांडों की ट्रेनिंग भी कुछ खास होती है. ट्रेनिंग के बारे में डीवीआर मेमोरियल बुल्स के मालिक देवभक्तूनी चक्रवर्ती कहते हैं कि इस दौड़ के लिए सांडों को पहले से तैयार किया जाता है जिसके लिए खास ट्रेनिंग दी जाती है. इसके लिए टीम मेंबर हफ्ते में एक या दो बार पत्थर खींचने की ट्रेनिंग देते हैं. जब सांड पूरी तरह से तैयार हो जाते हैं तो उन्हें इस अनोखे स्टोन पुलिंग कॉम्पटीशन के लिए मैदान में उतारा जाता है. इन सांडों की कीमत 50 लाख रुपये से लेकर एक करोड़ तक जाती है. यहां तक कि कम उम्र के सांडों का दाम भी 15-20 लाख रुपये से शुरू होता है.