तालाब में मछली का बीज यानी जीरा छोड़ते वक्त कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए. इसी में मछली पालक को मछली के बीजों की सही-सही पहचान कर लेना भी जरूरी है. मछली के बीजों की पहचान उनके आकार के आधार पर करते हैं. अगर बीज का साइज 6-8 मिमी हो तो मत्स्य जीरा कहते हैं. वहीं अगर साइज 8 से 40 मिमी तक हो तो उसे फ्राई कहते हैं. अगर यही साइज 30-50 मिली तक हो तो उसे पौना कहते हैं. अगर साइज 50 से 100 मिमी तक हो तो उसे अंगुलिका या फिंगर कहते हैं.
इसी के साथ जान लेते हैं कि मछली के बीज को तालाब के पानी में कैसे छोड़ना है क्योंकि इसे छोड़ने के बाद ही मछलियां टीक से बढ़ती हैं और बाद में बेचने लायक होती हैं. तालाब में मछली के बीज को छोड़ने का एक खास नियम है. दरअसल, मछली के बीज को सुबह पानी में छोड़ना अच्छा रहता है और इसे छोड़ते समय पानी का तापमान कम रहना चाहिए. अगर पानी का तापमान अधिक या बहुत कम रहेगा तो जीरा के मरने का खतरा रहता है.
इसके अलावा जिस थैली में जीरा को रखा गया है, उसका तापमान भी हमेशा नापते रहना चाहिए. थैली के पानी का तापमान न तो बहुत अधिक होना चाहिए और न ही बहुत कम. जिस थैली में मछली का जीरा रखा गया है उसके पानी का तापमान तालाब के पानी के तापमान के बराबर होना चाहिए. इसलिए, उस थैली को आधा घंटा तक तालाब के पानी में डुबाकर रखें और बाद में मछली को पानी में छोड़ दें.
अब यह जान लेते हैं कि तालाब में कितनी मछलियों को छोड़ना है ताकि उससे आगे कमाई हो सके. नियम के अनुसार, अगर आप तालाब में फ्राई (मछली का जीरा) मछली को छोड़ते हैं तो उसकी संख्या 10,000 से 15,000 प्रति हेक्टेयर तक होनी चाहिए. अगर तालाब में अंगुलिका छोड़ते हैं तो उसकी संख्या 5000 से 7000 बीज प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए.
मछली को आहार सुबह या शाम को पानी का तापमान कम होने पर देना चाहिए और आहार देते समय एक दिन में आधी मात्रा दें. कृत्रिम आहार, इस आहार में जीवों और वनस्पतियों का उपयोग किया जाता है. तालाब में मछली का चूरा, झींगा का चूरा और रेशम के कीड़े के बच्चे दिए जा सकते हैं. मूंगफली की खली, सरसों की खली, सोयाबीन की खली और अधिक चावल का भूसा, गेहूं की भूसी मछलियों को आहार के रूप में दे सकते हैं. मछली को उसके वजन का 5 परसेंट से 10 परसेंट की दर से आहार दें. यानी कि 1 किलो की मछली को 50 से 100 ग्राम आहार दें. इस हिसाब से 1 हेक्टेयर तालाब के लिए 1 से 1.5 टन आहार हर साल लगता है.
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