इस गौशाला के गायों की बनाई जाती है कुंडली, जानें क्या है इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

इस गौशाला के गायों की बनाई जाती है कुंडली, जानें क्या है इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

गया में एक अनोखी गौशाला है जहां पर रहने वाली गायों की जन्म कुंडली बनाई जाती है और गौशाला में रहने वाली सभी गायों का नाम उनकी कुंडली और नक्षत्र के आधार पर रखा जाता है. इस गौशाला में गाय और बछड़े मिलाकर 172 गिर गायें हैं.

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इस गौशाला के गायों की बनाई जाती है कुंडली, जानें क्या है इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्वइस गौशाला में गायों की कुंडली बनाई जाती है

गया जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर मटिहानी गांव स्थित श्री राधा कृष्ण गिर गौशाला में रहने वाले 172 गायों और बछड़ों की कुंडली बनाई गई है. यहां रहने वाले गायों की कुंडली सुनने और देखने में सभी को थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन यह सच है कि यहां रहने वाले सभी गायों की जन्म कुंडली बनाई गई है और सभी गायों का नाम कुंडली और नक्षत्र के अनुसार रखा गया है और यह गौशाला कोई साधारण गायों की गौशाला नहीं है बल्कि यहां रहने वाली सभी गायें गिर नस्ल की हैं जहां 172 गिर गाय हैं और सभी गायों की देखभाल के लिए 15 लोग लगे हुए हैं.

धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

गौशाला के संचालक बैजेंद्र कुमार चौबे ने बताया कि वे 8 साल पहले गुजरात से 2 गिर गाय लेकर आए थे और आज उनकी गौशाला में कुल गायों और बछड़ों की संख्या 172 हो गई है. इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है. वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि गिर गाय ऑक्सीजन लेती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है जबकि इंसान समेत सभी जीव ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं. गिर गाय के महत्व को जानकर गुजरात के गिर के जंगलों में पाई जाने वाली गिर गायों की संख्या में वृद्धि हुई. आज हमारी गौशाला में दर्जनों गिर गाय और बछड़े हैं.

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गायों की कुंडली बनाई जाती है

गौशाला संचालक बिजेंद्र कुमार चौबे ने बताया कि जन्म के समय बछड़े या बछिया के जन्म का समय और तारीख लिखकर गायों की कुंडली बनाने के लिए उन लोगों के पास भेजते हैं जो गायों के नक्षत्रों के जानकार होते हैं. वे उन्हें कुंडली बनवाने के लिए भेजते हैं और उसी आधार पर गायों का नामकरण भी किया जाता है. उन्होंने बताया कि गायों की कुंडली बनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि द्वापर युग में भी गायों को नाम से पुकारा जाता था. भगवान कृष्ण भी गाय को उसके नाम से पुकारते थे. गौ विज्ञान और गौ ग्रंथ के अनुसार भगवान कृष्ण पद्मा गाय का दूध पीते थे. गाय की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी.

कुंडली के मुताबिक तैयार की जाती है औषधि

जब इतनी सारी गिर गायें पाली जा रही हैं तो कभी न कभी ऐसे ग्रह, मूल, योग, नक्षत्र में गाय बछड़े या बछिया को जन्म देगी कि वह गाय बहुला, सुशीला, कामधेनु के रूप में पाई जाएगी. स्वास्थ्य के अनुसार नाम और कुंडली बनाने का दूसरा उद्देश्य यह है कि नक्षत्र, कुंडली के आधार पर औषधि बनाई जाती है. गिर गाय के पंचगव्य से औषधि बनाई जाती है. गाय के नक्षत्र, कुंडली के आधार पर इसे तैयार किया जाता है. जिससे औषधीय पंचगव्य बनाया जाता है. जिस मूल नक्षत्र, गोत्र में जन्मी गाय का पंचगव्य पदार्थ किस रोग के लिए सबसे अधिक लाभकारी औषधि के रूप में काम करेगा. बताया गया कि गिर गाय के दूध और गोमूत्र में सवर्ण के तत्व पाए जाते हैं. स्वामी रामदेव ने भी गिर गाय के दूध और गोमूत्र से सवर्ण के तत्वों को बाहर रखा है. (पंकज कुमार की रिपोर्ट)

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