इस बार मॉ़नसून की बारिश ने अगर सबसे अधिक किसी राज्य को परेशान किया है, तो उसमें मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के नाम हैं. इन दोनों राज्यों का नाम इसलिए लिया जा रहा है क्योंकि यहां बड़े पैमाने पर कई प्रमुख फसलों की खेती होती है. बारिश नहीं होने से कई फसलें बर्बादी की कगार पर पहुंच गई हैं. तो आइए इन दोनों राज्यों के हालात के बारे में जान लेते हैं. मॉनसून की बारिश नहीं होने से महाराष्ट्र के किसान बेहद चिंता में हैं. 36 में से 11 जिले ऐसे हैं जहां 40 परसेंट से कम बारीश हुई है. पूरा अगस्त सूखा चले जाने की वजह से कई इलाकों में फसल बर्बाद होने की कगार पर है. और तो और बारिश के मौसम में दो हजार गांवों में टैंकर से पानी भेजा जा रहा है.
महााराष्ट्र में छत्रपती संभाजीनगर से 25 किमी दूरी पर पिंपल चिते गाव है. किसान चरणसिंह नांगलोत की यहां पर सात एकडड खेती है. बारिश के भरोसे नांगलोत ने कपास, सोयाबीन, मक्का, मूंग, बाजरा की फसल लगाई थी. लेकीन बारिश ने धोखा दे दिया. फसल बर्बाद हो गई. कुआं सूख गया. पीने तक के लिए पानी नहीं बचा. फसल बीमा करवाया था उसका पैसा भी नहीं आया. अब सरकार कब सूखा घोषित करेगी और कब मदद मिलेगी, इसपर नांगलोत की आंखें टिकी हैं.
इसी गांव के किसान शंकर अन्ना पठारे का कहना है कि उनकी तीन एकड़ खेती है जिसमें उन्होंने कपास, तुवर और मोसंबी लगाई है. लेकिन इस साल जिस तरह से बारिश होनी चाहिए थी वैसी नहीं हुई है. इसकी वजह से किसान परेशान हैं. किसान शंकर अन्ना का कहना है कि उन्होंने कर्ज लेकर फसल लगाई थी, लेकिन अब पिछले तीन महीने से बारिश नहीं है और उनकी फसल पूरी तबाह हो रही है. सरकार को चाहिए कि वह किसानों की ओर ध्यान दे ताकि उनकी जो कुछ फसल बची है, वह बच जाए. सरकार से यह भी मांग की गई है कि जल्द अकाल घोषित करना चाहिए क्योंकि अब अगर बारिश आती भी है तो इससे किसानों को कोई फायदा नहीं होगा.
किसान भगवान गावंडे जिनकी दो एकड़ जमीन है, उन्होंने उसमें तुवर लगाई है. लेकिन बारिश न होने की वजह से उनकी फसल तबाह होने की कगार पर है. इनका कहना है कि तीन महीने में तुवर की फसल तीन से चार फीट तक हो जाती थी, लेकिन बारिश न होने से इन तीन महीनों में तुवर की फसल सिर्फ आठ से 10 इंच आई है. दो एकड़ तुवर लगाने के लिए भगवान गावंडे ने पचीस हज़ार रुपये खर्च किया है, लेकिन कम पानी से उनकी फसल खराब हो रही है. इनका कहना है कि अगर कुएं में पानी रहता तो वे अपनी फसल को बचा लेते थे, लेकिन स्थिति ऐसी है कि कुएं में भी पानी नहीं है.
भगवान गावंडे का कहना है कि सरकार को किसानों की ओर ध्यान देना चाहिए. सूखे की स्थिति को देखते हुए फसल बीमा में सरकारी मदद करनी चाहिए ताकि किसान अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सकें. किसानों का कहना है कि सरकार को जल्द अकाल घोषित करना चाहिए. किसानों को बीमा का पैसा भी मिलना चाहिए क्योंकि उनके घरों में खाने के लिए अनाज की कमी है. उनके गांव में पीने के पानी की भी समस्या हो रही है. किसानों का कहना है कि कुएं में पानी इतना कम बचा है कि अगर वे खेती को पानी देंगे तो इन्हें जानवरों के लिए पानी बचेगा. किसानों का यह भी कहना है कि सरकार को चारा छावनी बनानी चाहिए जिससे जानवरों को कुछ हद तक राहत मिल सके.
महाराष्ट्र के अहमदनगर में पिछले साल से भी कम बारीश होने के चलते अकाल की स्थिति पैदा हो गई है. फसलें सूखने से किसान परेशानी में आ गए हैं. जिला प्रशासन की ओर से किसानो को 25 परसेंट अनुदान देने का आदेश जिलाधिकारी सिद्धराम सालीमठ ने दिया है. अहमदनगर जिले का दक्षिण क्षेत्र अकाल पीड़ित क्षेत्र है. उत्तर जिले की तुलना में यहां औसतन कम बारिश होती है. जून से लेकर अगस्त तक पूरे जिले में लगभग 100 मिली मीटर ही बारिश का अनुमान है. जिले में पिछले साल 6.5 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुआई की गई थी. इस साल बारिश न होने के कारण 6.37 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई है. उसमें सोयाबीन, मक्का, कपास और बाजरा है.
अहमदनगर के नेप्ती गांव के रहने वाले किसान नितीन पुंड ने बाताया कि उन्होंने 1.5 एकड़ में सोयाबीन की खेती की है. मगर बारिश नहीं होने से अब फसल सूखने लगी है. अगर बारिश होती है तो भी फसल कम निकलेगी और बारिश नहीं होती है तो पूरी फसल सूखने से बर्बाद हो जाएगी. उन्होंने कहा कि 1.5 एकड़ की फसल के लिए उन्होंने 25 हजार रुपये खर्च किए हैं, लेकिन अब वे खर्च भी नहीं निकलेगा. ऐसे में सरकारी मदद का ही सहारा है. जिला कृषि अधिकारी सुधाकर बोराले ने कहा कि किसानों की मदद के लिए जिलाधिकारी ने आदेश दिया है जिस पर कार्रवाई की जा रही है.
महाराष्ट्र के सोलापुर के ग्रामीण इलाकों में पीने के पानी और पशुओं के चारे की कमी हो गई है. मॉनसून के तीन महीने बिना बारिश के चले गए. सोलापुर जिला जिस डैम पर निर्भर है, उस उजनी डैम में अभी सिर्फ 20 परसेंट पानी भरा है. उस बांध की क्षमता 112 टीएमसी है. इसी बांध के भरोसे जिले में गन्ने का क्षेत्र और लगभग 40 शुगर फैक्ट्री चलती हैं. ऐसी स्थिति में बारिश नहीं हुई तो कुछ गांवों में टैंकर शुरू करने पड़ेंगे.
कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, मंगलवेढा तहसील में खरीफ सीजन में बजरी 6,039, मक्का 7063, तुअर 5102, मूंग 298, उड़द 605, मूंगफली 987, सूरजमुखी 643, सोयाबीन 22 हेक्टेयर और चारा फसल में खरीफ मक्का की बुआई की गई है. नदी तट और नहर क्षेत्रों को छोड़कर तालुक का पूरा इलाका खरीफ वर्षा पर निर्भर है. तहसील में 68 हजार किसानों ने 51 हजार हेक्टेयर में बाजरी, तुअर, मक्का, प्याज की फसल का बीमा कराया है और वे किसान भी चिंतित हैं. चूंकि गन्ने का उपयोग ज्यादातर पशुओं के लिए हरे चारे के लिए किया जाता है, इसलिए इस साल में चीनी उद्योग पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ेगा.
पंढरपुर कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, खरीफ सीजन में बाजरा 25 हेक्टेयर, मक्का 3195, तुअर 174, प्याज 435 हेक्टेयर, कपास एक हेक्टेयर बोया गया है. पंढरपुर तहसील में 28 अगस्त तक 71 फीसदी बारिश हो चुकी है. उजनी डैम में क्षेत्र में कम वर्षा के कारण 20 प्रतिशत पानी का स्टॉक बचा हुआ है. इसलिए उजनी डैम से नहर में पानी नहीं छोड़ा जा रहा है. इसके कारण भीमा नदी का तल भी सूख गया है. भीमा नदी बेसिन के लगभग सभी बांध सूख गए हैं. इसलिए, कृषि जल की समस्या भी गंभीर होती जा रही है.
पंढरपुर शहर को पानी की आपूर्ति करने वाले बांध में कुछ दिनों के लिए पर्याप्त पानी है. तो शहर के लिए एक दिन छोड़कर पानी की सप्लाई की जा रही है. सांगोला और कासेगांव जलापूर्ति योजना इसी बांध के पानी पर निर्भर है. ऐसे में इस योजना पर निर्भर गांवों को पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है. किसान संगठन उजनी नहरों के साथ-साथ नीरा नहरों से पूरी क्षमता से पानी छोड़ने के लिए आंदोलन कर रहे हैं.
भारत मौसम विज्ञान विभाग यानी कि IMD की रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे छत्तीसगढ़ में भारी बारिश को लेकर विभिन्न अलर्ट के बीच 14 जिले ऐसे हैं, जहां इस साल विशेष रूप से अगस्त में कम बारिश हुई है. गरियाबंद जैसे अन्य जिलों में भी यही स्थिति है, जहां अकेले देवभोग तहसील में 10,000 हेक्टेयर से अधिक जमीन में दरारें पड़ गई हैं, जिससे किसानों की चिंता और बढ़ गई है क्योंकि जिले में 300 मिमी कम वर्षा हुई है.
राजस्व और कृषि विभाग की ओर से संयुक्त रूप से तैयार रिपोर्ट के मुताबिक, देवभोग तहसील में 23496 हेक्टर में खेती हुई है, जिसमें 20174 हेक्टयर में धान की फसल ली गई है. रिपोर्ट के मुताबिक, 3000 हेक्टर में रोपाई और 14000 हेक्टयर में बुआई की गई है. अगस्त महीने तक इलाके में इस साल महज 509.6 मिमी वर्षा दर्ज की गई है, जो पिछले साल से 300 मिली कम है. 30 सितंबर तक गिरदावरी होना है, इसके बाद फसल की वास्तविक रिपोर्ट का आकलन हो सकेगा.
मध्य प्रदेश में इस बार सामान्य से कम बारिश हुई है. वहीं प्रदेश के अधिकतर जिलों में सूखे की स्थिति है. सभी डैम खाली हैं. किसानों की फसलें खराब हो रही हैं. ऐसे में अब भगवान भरोसे ही सबकुछ है. वहीं प्रदेश में अच्छी बारिश की कामना को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भगवान महाकाल की शरण में पहुंचे हैं.
मध्य प्रदेश में बारिश नहीं होने से जहां एक तरफ फसलों पर संकट गहरा रहा है तो आगे आने वाले दिन और खराब रहने वाले हैं. बारिश नहीं होने से लगभग सभी जिलों में अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया है, तो वहीं सतना, खजुराहो और मंदसौर जैसे शहरों में अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पास पहुंच गया है. इससे बिजली की खपत भी बढ़ गई है. अब विडंबना यह है कि बारिश नहीं होने से मध्य प्रदेश के बड़े बांधों में इतना पानी नहीं है कि बिजली बनाई जा सके. इससे आने वाले समय में प्रदेश में बिजली संकट भी गहरा सकता है.
पिछले 14 सालों के इतिहास में पहली बार मध्य प्रदेश में अगस्त का महीना इतना सूखा रहा है. अगस्त महीने में मानसून रूठ गया जिसके बाद से किसानों के सामने भयावह स्थिति है. फसलें सूख रही हैं. पूरी निर्भरता मोटर पंप पर है. बिजली की खपत भी बढ़ गई है. सीएम शिवराज सिंह चौहान ने आपात स्थिति को देखते हुए भोपाल में रविवार की शाम अधिकारियों और मंत्रियों के साथ इमरजेंसी मीटिंग भी की. सोमवार को सीएम शिवराज सिंह चौहान महाकाल की शरण में पहुंच गए. उन्होंने लोगों के साथ मंदिर में पूजा अर्चना और महाकाल का अभिषेक किया. महाकाल से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूरे प्रदेश में अच्छी बारिश की प्रार्थना की है.
मालवा इलाके को प्रदेश के सबसे उपजाऊ इलाके के रूप में माना जाता है. लेकिन यहां भी कम बारिश ने किसानों को चिंता में डाल दिया है. शाजापुर में सोयाबीन की फसल बारिश न होने की वजह से सूखने लगी है.(संभाजीनगर से इसरार चिस्ती और अहमदनगर से रोहित वालके की रिपोर्ट)