UP: मछली पालन से सालाना 2 करोड़ रुपये कमा रहा किसान, ऐसे बदली किस्मत

UP: मछली पालन से सालाना 2 करोड़ रुपये कमा रहा किसान, ऐसे बदली किस्मत

धान और गेहूं जैसी परंपरागत फसलों की खेती में समय के साथ लागत बढ़ रही है. इस वजह से इन फसलों की खेती अब मुनाफे का सौदा नहीं रही है. पेशे से प्राइमरी टीचर और प्रगतिशील युवा किसान जय कुमार सिंह ने इस समस्या समाधान मछली पालन और बागवानी करके निकाला है.

मछली पालन का सफल मॉडल खड़ा करने के बाद अब किसान जय सिंह ने लगाए फलों के बाग भीमछली पालन का सफल मॉडल खड़ा करने के बाद अब किसान जय सिंह ने लगाए फलों के बाग भी
न‍िर्मल यादव
  • Kanpur,
  • Feb 09, 2023,
  • Updated Feb 09, 2023, 5:25 PM IST

खेती की दुर्दशा को देखते हुए पिछले कुछ सालों में नई पीढ़ी का रुझान खेती से दूर छिटका है. इसके उलट यूपी के कानपुर में युवा किसान ने आधुनिक तकनीक और संसाधनों की बदौलत परंपरागत खेती के बजाए मछली पालन का ऐसा माॅडल फार्म बनाया है, जो साल भर की सतत आय का जरिया बन गया है. पेशे से टीचर किंतु प्रवृत्त‍ि से प्रगतिशील किसान जय कुमार सिंह मछली पालन से लगभग 2 करोड़ रुपये तक का सालाना कारोबार करते हैं. इतना ही नहीं उनके फार्म पर लगभग दो दर्जन लोगों को साल भर का रोजगार भी मिल रहा है.

कानपुर में भीमसेन स्थित जय सिंह के लगभग 25 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले फार्म पर तीन परिवार स्थाई नौकरी पर लगे हैं. अपने अब तक के अनुभव के आधार पर जय सिंह ने बताया कि उन्हें धान और गेहूं की पारंपरिक खेती की तुलना में मछली पालन और बागवानी से 10 गुना ज्यादा लाभ हो रहा है.

तकनीक को बनाया साथी

जय सिंह ने बताया कि वह बीते 15 सालों से मछली पालन के काम में लगे हैं. पहले वह पारंपरिक तरीके से मछली पालन करते थे. इससे शुरू में तो लाभ हुआ लेकिन जल्द ही लाभ में गिरावट भी आने लगी. उन्होंने बताया कि 2013 में उन्होंने बाहरी राज्यों और विदेशी मछलियों के पालन की शुरुआत की. देसी मछलियों की तुलना में विदेशी मछलियां संवेदनशील होने कारण इनके पालन पोषण के लिए उन्होंने अत्याधुनिक तकनीक का सहारा लिया.

मछलियों को सांस लेने के लिए साफ हवा की जरूरत को पूरा करने के लिए उन्होंने ऑक्सीजन प्लांट, साफ पानी के लिए वॉटर प्यूरीफायर और पानी में हलचल पैदा करने के लिए वॉटर मिक्सर जैसी अत्याधुनिक मशीनों को लगाया. इतना ही नहीं विदेशी मछलियों में सिल्वर, नैनी और चाइना की देखभाल के लिए जय सिंह ने सीमेंट के खास किस्म के वॉटर टैंक भी बनवाए हैं. इनमें पानी के तापमान को भी नियंत्रित करने का इंतजाम है, जिससे अत्यधिक सर्दी या भीषण गर्मी से मछलियों को महफूज रखा जा सकता है. उन्होंने बताया कि तकनीक को सहारा बनाने के बाद ही, सही मायने में उनके लिए मछली पालन मुनाफे का सौदा बना. 

आंध्र प्रदेश की मछली ने यूपी में मचाई धूम

 जय सिंह ने बताया कि 5 साल पहले उन्होंने आंध्र प्रदेश में पाली जाने वाली 'फंगास' नामक मछली मंगाई थी. पैदावार के लिहाज से इसे बेहतर माना जाता है, लेकिन फंगास को कानपुर की आबो हवा कुछ ज्यादा ही भा गई. वह बताते हैं कि पहले साल में ही इस मछली की उम्मीद से ज्यादा पैदावार हुई. इतना ही नहीं, इस इलाके के लोगों की जुबान पर फंगास के स्वाद का जादू ऐसा चढ़ा कि इसकी खपत स्थानीय बाजार में ही अच्छी कीमत पर होने लगी.

उन्होंने बताया कि अगले साल से उन्होंने इस मछली का उत्पादन बड़े पैमाने पर करना शुरू किया. बीते 4 सालों में अब इस साल फंगास का उत्पादन 100 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच गया है. बाजार में यह मछली 250 से 300 रुपये प्रति किग्रा की थोक कीमत पर बिकती है. 

उन्होंने बताया कि वह अपने फार्म में 15 हेक्टेयर जमीन पर मछली पालन कर रहे हैं. इसमें लगभग 2 हेक्टेयर में फंगास और लगभग 7 हेक्टेयर में वह विदेशी नस्ल की मछली नैनी, सिल्वर और चाइना को पाल रहे हैं. अन्य तालाबों में देसी नस्ल की रोहू, कतला और ग्रास का पालन किया जा रहा है.

 

अब पूरे परिवार का बढ़ा खेती में रुझान

जय सिंह ने बताया कि वह किसान परिवार से ही ताल्लुक रखते हैं, लेकिन पारंपरिक खेती में दशकों से हो रहे घाटे को देखते हुए यह काम उनकी पिछली पीढ़ी तक ही सीमित रहा. परिवार के सभी सदस्य पढ़ाई करके नौकरी पाने की राह पर बढ़ गए. वह स्वयं बीएड करके अपने गांव के प्राइमरी स्कूल में टीचर बन गए, लेकिन पुश्तैनी जमीन पर कुछ नया काम करने की ललक ने उन्हें मछली पालन की ओर प्रेरित किया. उन्होंने प्रयोग के तौर पर 2007 में एक हेक्टेयर खेत में तालाब बनाकर मछली पालन शुरू किया था. इस काम में पहली साल से ही मुनाफा होने के कारण वह लगातार इसका दायरा बढ़ाते गए और नए नए प्रयोग भी करते गए. इसमें उन्होंने अपने पिता की जमीन के साथ अपने उन चाचा लोगों की जमीन को भी शामिल किया जो खेती काे घाटे का सौदा मानकर इससे मुंह मोड़ चुके थे.

उन्होंने बताया कि आज वह अपने कुनबे की लगभग 15 हेक्टेयर जमीन पर केवल मछली पालन कर रहे हैं. इसका नतीजा यह हुआ कि अब पूरे परिवार ने इस काम को अपने पेशे के रूप में अपना लिया है. उनके भतीजे पढ़ाई पूरी करने के बाद गांव से बाहर जाकर नौकरी करने के बजाए इस काम को बदलते समय की जरूरतों के मुताबिक नए नए तरीके अपना कर आगे बढ़ा रहे हैं. इसका पूरे इलाके में भी सकारात्मक संदेश गया है और स्थानीय लोग अब अपने खेत पर तालाब बनाकर मछली पालन, पशुपालन एवं खेती के अन्य विकल्पों को अपनाने लगे हैं. 

अगला कदम है बागवानी

 जय सिंह ने बताया कि बीते 10 - 15 सालों से मछली पालन के कारण उनकी जमीन पर पानी और मछली की मौजूदगी ने आसपास के खेतों की उपज शक्ति को बढ़ाया है. इस बात को समझ कर उन्होंने 5 साल पहले लगभग 10 हेक्टेयर में फलों का बाग लगाया. इसमें उन्होंने बागवानी विभाग की लाभकारी योजनाओं से प्रभावित होकर आम, अमरूद, नींबू, कटहल, संतरा और आंवला का बाग लगाया है. पूरे फार्म में पानी और मछली की मौजूदगी के कारण मिट्टी में नमी और पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा के मद्देनजर बाग से भी उत्साहजनक शुरुआती परिणाम मिलने लगे हैं.

जय सिंह का कहना है कि फलों की सभी हाइब्रिड प्रजातियों के पेड़ों में 3 साल के भीतर ही फलोत्पादन होने लगा. उन्होंने बताया कि बाग के फल कानपुर मंडी में ही बिक जाते हैं और इससे उनके परिवार की लगभग 10 लाख रुपये सालाना अतिरिक्त आय होने लगी है. जबकि मछली पालन से लगभग 1.5 से 2 करोड़ रुपये की सालाना पारिवारिक आय, बागवानी की आय से अलग है. 

खेती में अब अगले नए प्रयोग के जवाब में जय सिंह ने बताया कि उनका अगला कदम अब अपने पूरे फार्म को सोलर ऊर्जा पर आधारित बनाना है. इसकी शुरुआत तालाबों पर लगे सोलर पंप से हो चुकी है. जल्द ही अन्य कामों में बिजली की जरूरत को सोलर एनर्जी से ही पूरा किया जाएगा. जिससे बिजली के भारी भरकम बिल से निजात पाकर खेती से होने वाली आय को बढ़ाया जा सके.

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