इस शख्स ने 14 साल में 700 किसान जोड़े, जलने से बचाई 8750 मीट्रिक टन पराली

इस शख्स ने 14 साल में 700 किसान जोड़े, जलने से बचाई 8750 मीट्रिक टन पराली

करनाल के किसान विशाल चौधरी ने 15 युवा किसानों को साथ लेकर एक संगठन बनाया. इस संगठन ने पूरी तैयारी के साथ पराली निपटान का काम शुरू किया. संगठन का काम इतना अच्छा रहा कि आज इससे पूरे करनाल में 700 किसान जुड़े हैं और ये सभी किसान वैज्ञानिक तरीके से पराली निपटन करते हैं. ये किसान कभी भी खेतों में पराली में आग नहीं लगाते.

The situation often gets worse because of stubble burning in Delhi's neighbouring states.The situation often gets worse because of stubble burning in Delhi's neighbouring states.
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Oct 29, 2024,
  • Updated Oct 29, 2024, 1:45 PM IST

क्या खेत में धान की पराली को जलाना ही अंतिम समाधान है? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि दमघोंटू हवा का प्रभाव दिखने लगा है. अभी ठंड तो शुरू नहीं हुई, लेकिन जहरीली हवा का असर शुरू हो गया है. आंखों में जलन और नाक से पानी, अब सामान्य समस्या है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कहीं दूर-दराज में जलती पराली की हवा दम घोंटने वाली स्थिति पैदा कर रही है. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पराली को बिना जलाए उसका निपटान नहीं किया जा सकता? ऐसा ही सवाल करनाल के किसान विशाल चौधरी के दिमाग में कौंधा था जिसके बाद उन्होंने इसके निपटान के लिए ऐसी मुहिम चलाई कि आज पूरे हरियाणा में उनकी चर्चा चल रही है.

किसान विशाल चौधरी हरियाणा में करनाल के तरावड़ी गांव के रहने वाले हैं. आप पूछेंगे कि विशाल चौधरी के दिमाग में यह खयाल क्यों आया कि वे पराली निपटान जैसा बड़ा काम करेंगे और बाकी किसानों की मदद करेंगे. दरअसल, इसके पीछे एक घटना है जो 2010 में घटी थी. किसान विशाल चौधरी 2010 में एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में गए और उससे बहुत प्रभावित हुए. उस सेमिनार में विशाल चौधरी ने वहां के मैनेजमेंट से पराली प्रबंधन निपटान की मशीनें मांगी, लेकिन उन्हें मशीनें देने से मना कर दिया गया. मैनेजमेंट ने ये कहा कि पहले किसानों का समूह बनाएं तब मशीनें मिलेंगी.

विशाल चौधरी की सक्सेस स्टोरी

इसके बाद विशाल चौधरी ने ठान लिया कि वे समूह बनाएंगे और मशीनों से पराली निपटान की मशीनें बनाएंगे. उन्होंने इसकी शुरुआत भी की और 15 युवा किसानों को साथ लेकर एक संगठन बनाया. इस संगठन ने पूरी तैयारी के साथ पराली निपटान का काम शुरू किया. संगठन का काम इतना अच्छा रहा कि आज इससे पूरे करनाल में 700 किसान जुड़े हैं और ये सभी किसान वैज्ञानिक तरीके से पराली निपटाते हैं. ये किसान कभी भी खेतों में पराली में आग नहीं लगाते.

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इस संगठन की विशेषता ये है कि इसने अब तक 8750 मीट्रिक टन पराली का निपटान किया है. जरा सोचिए, अगर इतनी पराली जली होती तो कितना जहरीला धुआं निकलता और इससे पर्यावरण के साथ-साथ इंसानी जिंदगी को कितना नुकसान होता. विशाल चौधरी के संगठन से जुड़े सभी किसान वैज्ञानिक तरीके से खेती भी करते हैं और इसमें पराली का बाखूबी इस्तेमाल करते हैं. ये सभी किसान खेत और फसल में सूक्ष्म जीवों, खेत में नमी और केंचुओं के भोजन के लिए पराली का इस्तेमाल करते हैं. ये किसान पराली को खेत में छिड़कते हैं जिससे मल्चिंग का भी काम होता है. पिछले 14 साल से किसानों का यह समूह यही काम कर रहा है.

पर्यावरण बचाने की बड़ी मुहिम

डेटा पर गौर करें तो किसानों के संगठन ने 8750 मीट्रिक टन पराली को न जलाकर 26 किलो पार्टिकुलेट मैटर, 5,25,000 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड. 12,775 टन कार्बन डाईऑक्साइड, 1731 टन राख और 17 टन सल्फर डाईऑक्साइड को पर्यावरण में जाने से बचा रहा है. यही वजह है कि इस संगठन को देश और विदेश के स्तर पर कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं. यहां तक कि देश-विदेश के कई वैज्ञानिक इस संगठन के वैज्ञानिक मॉडल को देखने और समझने आते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इन किसानों की तारीफ कर चुके हैं. उन्होंने इसी साल इन किसानों के काम की तारीफ की और उनकी पीठ थपथपाई थी. किसानों के इस संगठन का नाम है-सोसाइटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचुरल रिसोर्स एंड इंपॉवरिंग रूल यूथ.

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