बिहार की भूमि जितनी उपजाऊ है, उतने ही मेहनती यहां के किसान हैं. वे धरती की गोद से अनेक प्रकार की फसलों का उत्पादन कर रहे हैं. हालांकि वे तेजी से आधुनिक खेती को अपनाकर अच्छा उत्पादन कर रहे हैं, लेकिन उन्हें उचित बाजार नहीं मिलने के कारण वे परेशान हैं. बिहार के ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान हैं जितेंद्र सिंह, जो पिछले दो-तीन वर्षों से खेती के क्षेत्र में कई देसी और विदेशी फसलों की सफलतापूर्वक खेती कर रहे हैं. लेकिन बाजार के अभाव में वे अपने उत्पादों को औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर हैं. हालांकि, सहजन के सूखे पत्तों को वे अमेरिका भेज रहे हैं, जिससे न केवल उन्हें कमाई हो रही है बल्कि आसपास के किसानों की आमदनी भी बढ़ रही है.
भोजपुर जिले के बिहिया प्रखंड स्थित जादोपुर गांव के निवासी जितेंद्र सिंह पिछले तीन वर्षों से किसान समूह के माध्यम से करीब 150 एकड़ भूमि पर आलू, केला, ड्रैगन फ्रूट, सब्जियां और सहजन की खेती कर रहे हैं. उनका मानना है कि बीते कुछ वर्षों में बिहार ने कृषि उत्पादन के क्षेत्र में काफी प्रगति की है, लेकिन उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण किसान आज भी आर्थिक रूप से कमजोर हैं.
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'किसान तक' को किसान जितेंद्र सिंह बताते हैं कि उनकी पढ़ाई-लिखाई और व्यवसाय सब कुछ कोलकाता में ही था. लेकिन जब लॉकडाउन में बड़ी संख्या में लोग गांव लौटे, तो उन्होंने सोचा कि गांव में ही कैसे लोगों को उद्योग से जोड़ा जाए. यहीं सोचकर वे गांव लौटे और खेती को उद्योग के रूप में अपनाने का निर्णय लिया. उन्होंने सबसे पहले ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की, फिर धीरे-धीरे सब्जियों और अन्य फसलों की खेती भी शुरू की. आज वे 150 एकड़ से अधिक क्षेत्र में किसान समूह के माध्यम से विविध फसलों की खेती कर रहे हैं. साथ ही उत्पादों के लिए बेहतर बाजार उपलब्ध कराने पर भी काम कर रहे हैं.
जितेंद्र सिंह बताते हैं कि उन्हें खेती में आए अभी केवल तीन साल ही हुए हैं, लेकिन इस अवधि में उन्होंने सहजन के सूखे पत्तों के लिए अमेरिका में बाजार खोज लिया है. अब वे अपने गांव के आसपास के किसानों को भी सहजन की खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं. आज उनके अलावा गांव के अन्य किसान मिलकर करीब लगभग 40 एकड़ भूमि में सहजन की खेती कर रहे हैं. जितेंद्र सिंह इन किसानों से पत्ते, फूल और बीज खुद ही खरीद लेते हैं और अमेरिका में केवल सूखा पत्ता 400 से 600 रुपये प्रति किलो के भाव से बेचते हैं. वे कहते हैं कि कोई भी किसान उन्हें सहजन के पत्ते, फूल या बीज बेचने के लिए संपर्क कर सकता है.
एक ओर जहां जितेंद्र सिंह सहजन के सूखे पत्ते को अमेरिका भेजकर अच्छी कमाई कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सेट नेट हाउस में उगाए गए बीजरहित खीरे को 10 रुपये प्रति किलो में भी कोई खरीदार नहीं मिल रहा. जब कि शहरों में इसकी कीमत 40-50 रुपये प्रति किलो से अधिक रहती है. उसे वे 10 रुपये में बेचने को मजबूर हैं. इसी तरह 60 एकड़ में उगाए गए नीलकंठ आलू को भी कोई खरीदने वाला नहीं है.
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वे कहते हैं कि सरकार जिस तरह से किसानों को ड्रिप इरिगेशन (सूक्ष्म सिंचाई) के लिए जागरूक कर रही है, उसी तरह राज्य के उत्पादों के प्रचार-प्रसार और उन्हें बेहतर बाजार दिलाने की दिशा में भी ठोस कदम उठाने होंगे. अन्यथा, उत्पादन होने के बावजूद भी बिहार का किसान गरीब ही बना रहेगा. इसके साथ ही पैक हाउस की तरह सरकार को विभिन्न फसलों को सुखाने के लिए ड्रायर यंत्रों को लेकर काम करना होगा.