समाज में दिव्यांग लोगों को एक अलग नजरिए से देखा जाता है और कभी कभी तो उन्हें खुद के घर और परिचित लोगों से तिरस्कार का सामना भी करना पड़ता है, लेकिन वहीं दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इन परिस्थितियों का डटकर सामना करते हैं और इस समाज पर एक सकारात्मक छाप छोड़ देते हैं. अपने इस सफर में ऐसे लोग सैंकड़ों लोगों के लिए मिसाल बनते हैं. किसी ने खूब कहा है...दिव्यांगता कोई अभिशाप नहीं है, बल्कि ऊपर वाले का वरदान है. दिव्यांगता को भूलकर आगे बढ़ने का जज्बा ही आपको समाज में अलग खड़ा करता है. ऐसा ही कुछ कार्य कर रहे हैं राजबाला दिव्यांग सेवा समिति का संचालन कर रहे सतेंद्र नागर और सीमा नागर ने. यहां ये जानना जरूरी है कि वे दोनों पति-पत्नी हैं.
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किसान तक से हुई बातचीत में सतेंद्र ने बताया कि वो और उनकी पत्नी और व यानी दोनों दिव्याग हैं, लेकिन वो मिलकर समाज में मौजूद दिव्यांग लोगों को सक्षम और सशक्त बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं और अपनी इस समिति से दिव्यांगजनों को जोड़कर स्वावलंबी बना रहे हैं. सतेंद्र ने एमएससी के साथ ही इग्नू से सोशल वर्क में मास्टर डिग्री हासिल की है, उनकी पत्नी सीमा नागर सीए हैं और समिति से जुड़े वित्तिय कार्य भी उनकी देख रेख में होते हैं.
सतेंद्र ने बताया कि देश में देसी गायों के संरक्षण और संवर्धन पर हो रहे काम को देखते हुए उन्होंने गाय के गोबर से बनने वाले प्रोडक्टस बनाए हैं और यह सभी उत्पाद लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं. उनकी समिति से जुड़े दिव्यांगजन ही उन सभी उत्पादों को बनाते हैं. साथ ही उनकी राजबाला दिव्यांग सेवा समिति दिव्यांग लोगों को इन प्रोडक्ट को बनाने की ट्रेनिंग देकर उनको स्वावलंबी बनाने की दिशा में भी निरंतर प्रयासरत है.
देश में बीते कुछ समय से गाय के गोबर और गौमूत्र से बनने वाले उत्पादों की मांग बढ़ी है और लोगों को यह खूब पसंद आ रहे हैं, जिसमें धूपबत्ती, पंचगव्य लोबान, मूर्ति, दीपक, हवन की समिधा आदि शामिल हैं. इससे गौपालन करने वाले किसानों को भी हिम्मत मिली है और गोबर का भी सही दिशा में प्रयोग शुरू हो चला है.
सतेंद्र ने बताया कि उनकी समिति ने गाय क गोबर से बने उत्पादों को बेचकर सालभर में 18 लाख रुपये के टर्नओवर का लक्ष्य हासिल किया है और अब उनका लक्ष्य 75 लाख का आंकड़ा पार करने का है.
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