Success Story: करौंदा की खेती से मालामाल होता रायबरेली का किसान, जीरो लागत में मिली कई गुना कमाई

Success Story: करौंदा की खेती से मालामाल होता रायबरेली का किसान, जीरो लागत में मिली कई गुना कमाई

किसान आनंद मिश्रा ने बताया कि वे एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करते थे. BBA करने के बाद 2002 से वे फर्नीचर की कंपनी में जॉब करने लगे थे. उनका सालाना सैलरी पैकेज 6 लाख रुपये का था, लेकिन उनके मन में था कि कुछ ऐसा करें जिससे किसानों का भी भला हो.

यूपी के रायबरेली जनपद के सफल किसान आनंद मिश्रा (Photo-Kisan Tak)यूपी के रायबरेली जनपद के सफल किसान आनंद मिश्रा (Photo-Kisan Tak)
नवीन लाल सूरी
  • Lucknow,
  • Jun 24, 2024,
  • Updated Jun 24, 2024, 10:53 AM IST

UP Farmer Story: उत्तर प्रदेश में बागवानी के जरिए कई किसानों की किस्मत बदल चुकी है. रायबरेली जनपद मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर कचनावा गांव है. जहां एक प्रगतिशील किसान आनंद मिश्रा रहते हैं. जो बीते कुछ वर्षों से करौंदा की फसल से साल में मोटी कमाई कर रहे हैं. किसान तक से बातचीत में आनंद मिश्रा ने बताया कि करौंदा की बागवानी मुनाफे का सौदा है. वहीं बाकी किसानों के लिए यह बहुत फायदेमंद साबित हो रही है. ये फसल किसानों को मुनाफा देने के साथ-साथ उनकी फसल की सुरक्षा भी करती है.

मल्टीनेशनल कंपनी में छोड़ी नौकरी 

किसान आनंद मिश्रा ने बताया कि वे एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करते थे. BBA करने के बाद 2002 से वे फर्नीचर की कंपनी में जॉब करने लगे थे. उनका सालाना सैलरी पैकेज 6 लाख रुपये का था, लेकिन उनके मन में था कि कुछ ऐसा करें जिससे किसानों का भी भला हो. इसलिए वे 2016 में नौकरी छोड़कर बागवानी की तरफ मुड़ गए. उन्होंने बताया कि पहले उन्होंने गेहूं, धान की खेती में हाथ आजमाया, लेकिन सफलता नहीं मिली. फिर 1 साल तक वह अलग-अलग तरह की बागवानी की खेती की जानकारी इकट्ठा करते रहे. इस दौरान उन्होंने तय कर लिया कि वे नींबू के साथ करौंदा की बागवानी करने लगे. क्योंकि नींबू और करौंदा की डिमांड साल भर तक बनी रहती है. इसके लिए बाजार खोजने की भी ज्यादा जरूरत नहीं है.

100 पेड़ों से 20 हजार रुपए की कमाई

उन्होंने बताया कि करौंदा झाड़ीनुमा कांटेदार वृक्ष होने की वजह से आवारा पशुओं, नीलगाय जैसे जंगली जानवरों को फसल का नुकसान करने के लिए रोकते हैं. करौंदा को किसी भी फसल या बागवानी के चारों तरफ बाउंड्री के रूप में लगाया जाता है, इसके 100 पेड़ों से 20 हजार रुपए की कमाई किसानों को हो रही है. प्रगतिशील किसान आनंद मिश्रा ने बताया कि करौंदा भारत में राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हिमालय के कई क्षेत्रों में लगाया जाता है. वहीं एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच एक से डेढ़ मीटर की दूरी रखते हैं, क्योंकि करौंदा का पेड़ ज्यादा लंबा नहीं होता है. 

करौंदे की फसल में लागत शून्य और मुनाफा भरपूर

रायबरेली जनपद के ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान आनंद मिश्रा बताते हैं कि क्योंकि फसल में जो खाद पानी डालते है वो करौंदा के पौधों तक आसानी से पहुंच जाता है. इसका पौधा लगने के डेढ़ साल के बाद फल लगने शुरू हो जाते हैं. अप्रैल के महीने में फूल मई-जून में फल लग जाते हैं. जुलाई का महीना आते-आते फल पूरी तरह से पक कर जुलाई अंतिम सप्ताह में तैयार  हो जाते हैं. करौंदे के पौधों की हर साल छटाई होती रहे तो उसके फल तोड़ने में कोई परेशानी नहीं होती है.

एक पौधे में कम से कम 10 किलो करौंदा

उन्होंने बताया कि करौंदा की किस्मों को अचार और ताजे फल खाने के उद्देश्य से विकसित किया गया है. करौंदा से चटनी, अचार और मुरब्बा बनाते हैं, इसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में होती हैं. एक पौधे में कम से कम 10 किलो करौंदा आराम से निकल आता है.

करौंदा का पेड़ ज्यादा लंबा नहीं होता है. 

यह एक झाड़ी है जिसका फल गहरे गुलाबी रंग का होता है. इस फल की सफेद पृष्ठभूमि पर गहरा गुलाबी रंग होता है. इसके फल का वजन 3.49 ग्राम होता है और प्रति पौधा उपज लगभग 27 किलोग्राम होती है. अचार बनाने के लिए यह सबसे अच्छी किस्म है. फुटकर बाजार में ये लगभग 20 रुपए किलो बड़े आराम से बिकता है.

करौंदा को कब और कैसे रोपें?

सफल किसान आनंद मिश्रा ने आगे बताया कि सिंचित क्षेत्रों में करौंदा के पौधों की रोपाई जुलाई-अगस्त और फरवरी-मार्च में की जा सकती है. करौंदे के पौधों को बाड़ के रूप में लगाने के लिए पौधों के बीच की दूरी 1 मीटर रखनी चाहिए. करौंदे का बगीचा लगाने के लिए खेत में 3 x 3 या 4 x 4 मीटर पर लगाना चाहिए. प्रति एकड़ 225 करौंदा के पौधे लगाए जा सकते हैं. 

नींबू की बागवानी में पेश की मिसाल

बता दें कि आनंद मिश्रा ने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़कर नींबू की बागवानी भी कर रहे हैं. उन्होंने नींबू की बागवानी से प्रदेश के किसानों के लिए एक ऐसी मिसाल पेश की है जिसको देख कर दूसरे किसान भी बागवानी की तरफ आने लगे हैं. पूरे जिले में आनंद मिश्रा को लेमन मैन के नाम से पुकारा जाता है.

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