Banana cancer: इंसान ही नहीं इस पौधे को भी लगती है वैक्सीन, इस बीमारी को मात देने से उत्पादन में आई क्रांति, पढ़ें पूरी खबर

Banana cancer: इंसान ही नहीं इस पौधे को भी लगती है वैक्सीन, इस बीमारी को मात देने से उत्पादन में आई क्रांति, पढ़ें पूरी खबर

एक दशक पहले केले की फसल में लगने वाली बीमारी पनामा विल्ट को पनामा रोग भी कहा जाता है.  यह बीमारी भारत ही नहीं दुनिया भर के 17 देश में फैल चुकी थी.  इस बीमारी को केले का कैंसर कहा जाता है. इस बीमारी के लिए केले को लैब में एक टीका भी लगाया जाता है जो केले के टिश्यू कल्चर पौधे को लैब में तैयार करते समय लगाया जाता है जिससे  किसान अपने खेतों में लगाने के बाद पनामा फ्यूजीरियम नाम की बीमारी के प्रति रोग रोधी हो जाता है.

धर्मेंद्र सिंह
  • Lucknow ,
  • Dec 05, 2023,
  • Updated Dec 05, 2023, 12:11 PM IST

केला दुनिया में सबसे ज्यादा खाए जाने वाला फल है. केला को पैदा करके खाने लायक तैयार करने में किसानों के लिए कई चुनौतियां भी है.  एक दशक पहले केले की फसल में लगने वाली बीमारी पनामा विल्ट को पनामा रोग भी कहा जाता है.  यह बीमारी भारत ही नहीं दुनिया भर के 17 देश में फैल चुकी थी.  इस बीमारी को केले का कैंसर कहा जाता है.  इस बीमारी की रोकथाम के लिए आईसीएआर यानी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने एक बायोपेस्टिसाइड बनाया है जिसका नाम आईसीएआर-फ्यूजीकांट है.  इस बायो पेस्टिसाइड की मदद से आज यह बीमारी लगभग कंट्रोल हो चुकी है जिसके चलते
भारत में केले की खेती बड़े पैमाने होने लगी है. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. टी.दामोदरन और प्रधान वैज्ञानिक डॉ मनीष मिश्रा के संयुक्त प्रयास के बदौलत इस बीमारी का नियंत्रण हो पाया है. अब केले के खास तरह के टिश्यू कल्चर के माध्यम से पौधे तैयार किए जाते हैं. पौधों को वैक्सीन लगाई जाती है जिससे पौधे पूरी तरीके से रोग-रोधी हो जाते हैं.

वैक्सीन लगने के बाद रोग रोधी हो जाते हैं ये पौधे

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने केले में लगने वाली इस खतरनाक बीमारी का तोड़ खोज निकाला है. पनामा विल्ट नाम से से यह बीमारी केले खेती को पूरी खत्म कर देती थी जिसके चलते किसानों को बड़ा नुकसान होता था. इस बीमारी का तोड़ आईसीएआर के वैज्ञानिकों के द्वारा खोज लिया गया है. केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के निदेशक रहे डॉ. टी.दामोदरन का प्रमुख योगदान है. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ मनीष मिश्रा ने किसान तक को बताया उन्होंने एक बायो पेस्टिसाइड बनाया है जिसका नाम आईसीएआर-फ्यूजीकांट है. यह बायो पेस्टिसाइड एक फंगस की मदद से बनाया गया है. इसका एक टीका भी बनाया गया है जो केले के टिश्यू कल्चर पौधे को लैब में तैयार करते समय लगाया जाता है. जिससे  किसान अपने खेतों में लगाने के बाद पनामा फ्यूजीरियम नाम की बीमारी के प्रति रोग रोधी हो जाता है. उनकी इस दवा को पेटेंट मिल चुका है. वैक्सीन को टिश्यू कल्चर की स्टेज में ही लगाया जाता है. उनके लैब में G9 और सब्जी के किस्म वाले मालभोग के तीन किस्म को तैयार किया जा रहा है.

 पनामा विल्ट बीमारी से प्रभावित राज्य 

बिहार, गुजरात ,मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश पनामा रोग से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य रहे हैं. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. मनीष मिश्रा ने  बताया इन राज्यों में बड़े पैमाने पर केला उगाया जाता है. पनामा रोग इतना खतरनाक है जिसके चलते अजीब किस्म के फंगस फैलने लगता है. फंगस के ट्रॉपिकल रेस-4 नाम के स्ट्रैन के चलते केले की फसल को तबाह कर देता है. दुनिया में 80% केले की फसल इसी से प्रभावित होने लगी थी. इसीलिए केले का कैंसर कहा जाता है. इस फंगस पौधे की जड़ पर हमला करता है और एक बार संक्रमित होने के बाद पौधे को पानी और अन्य पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं. केले का पौधा मुरझा जाता है और तना काला पड़ने लगता है. कुछ ही समय बाद पौधा मर जाता है. यह रोग एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलने लगता है. 2017 में यह रोग उत्तर प्रदेश और बिहार पर बड़े पैमाने पर फैल चुका था. नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर बनाना और सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर सब हॉर्टिकल्चर की मदद से बायो पेस्टिसाइड की खोज हुई जो फ्यूजेरियं विल्ट पर पूरी तरीके से असरदार है. आईसीएआर- फ्यूजीकांट बीमारी कंट्रोल हो चुकी है.

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किसानों के लिए संजीवनी बनी फ्यूजीकांट दवा 

आईसीएआर -फ्यूजीकांट दवा का 2018 में फील्ड ट्रायल शुरू हो गया. यह दवा ट्राइकोडर्मा इसी नमक फंगस की मदद से बनाई गई थी. फ्यूजेरियं फंगस को कंट्रोल करती है और उसे बढ़ने से रोकती है. इससे केले के पौधे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगती है. इस दवा का नियमित अंतराल पर इस्तेमाल करना होता है. केले के किसानों की यह दावा काफी ज्यादा संजीवनी साबित हो रही है. केले की खेती की मदद से किसानों को प्रति एकड़ ₹4 लाख तक का फायदा कमा सकता है लेकिन पनामा रोग लगने के बाद इसे किसानों की कमाई आधी हो जाती थी.

उत्तर प्रदेश में फैलने लगी केला की खेती

दक्षिण के राज्यों के साथ-साथ महाराष्ट्र के भुसावल इलाके में होती है. वहीं अब तो उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ,कुशीनगर और गोरखपुर के तराई इलाकों में बड़े पैमाने पर किसानों के द्वारा केले की खेती हो रही है. केले का बढ़ता क्षेत्रफल इस बात का सबूत है कि अब केले में लगने वाली बीमारी का खतरा पहले के मुकाबले काफी कम हो गया है. बाराबंकी में केले की खेती को फैलाने वाले पद्मश्री से सम्मानित किसान राम शरण वर्मा ने बताया पनामा विल्ट केले के लिए एक ऐसी बीमारी थी जिससे यह फसल पूरी तरीके से बर्बाद होने लगी थी. आईसीएआर- फ्यूजीकांट के चलते इस बीमारी पर नियंत्रण मिल सका है जिसके चलते अब उत्तर प्रदेश में एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल पर केले की खेती हो रही है.

 

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