युवा जब पढ़ाई करता है तो उसका उद्देश्य नौकरी पाना होता है. वह लगातार नौकरी के लिए अवसर ढूंढता है. ऐसी ही कहानी इटावा जनपद के ब्लॉक बसरेहर क्षेत्र के अंतर्गत लालपुर गांव के निवासी प्रबल प्रताप की ही है. उन्होंने पढ़ाई लिखाई कर अच्छी शिक्षा ग्रहण करने के बाद सोचा कि शिक्षक बनेंगे. उन्होंने बीएड की भी शिक्षा हासिल कर ली.
बीएड करने के बाद नौकरी ढूंढने से भी नहीं मिली, तो प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगे. आमदनी इतनी नहीं हो पाई कि वे इसको अपना रोजगार बना पाते. फिर उन्होंने कुछ बड़ा करने का सोचा. उनके पास थोड़ी जमीन थी तो उन्होंने सोचा कि इस कृषि भूमि का प्रयोग किया जाए. उन्होंने आलू का उत्पादन किया, लेकिन उनको घाटा हो गया. इससे वे संतुष्ट नहीं हो पाए.
किसान प्रबल प्रताप को आलू की खेती में कुछ विशेष लाभ भी नहीं मिल पाया. हालांकि उन्होंने हार नहीं मानी और कुछ नया करने का सोचा. इस बीच हरियाणा में रह रहे उनके एक मित्र ने बताया कि वहां स्ट्रॉबेरी की खेती बड़ी तादाद में की जाती है. इस खेती को देखने के लिए प्रबल प्रताप वहां पहुंचे. वहां से आगे चंडीगढ़ और फिर हिमाचल प्रदेश के एक गांव में जाकर उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती को समझा.
किसान प्रबल प्रताप को वहां से खेती की प्रेरणा मिली. इसके साथ ही उन्होंने मन में ठान लिया कि अब इसी खेती से कुछ बड़ा करेंगे. प्रबल प्रताप ने स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए ड्रिप विधि से सिंचाई के बारे में जानकारी ली. फिर अपने सात हेक्टेयर खेत में इस विधि का इस्तेमाल किया. उसके बाद महाराष्ट्र के पुणे से ग्यारह रुपये प्रति पौधे के हिसाब से स्ट्रॉबेरी मंगाई.
किसान ने लगभग सात हेक्टेयर की भूमि में ढाई लाख पौधे रोप दिए. ढाई लाख पौधों के लिए लागत तो अधिक आई, लेकिन आमदनी भी बढ़ती दिखाई देने लगी. स्ट्रॉबेरी की विंटर डाउन और कैमा रोजा प्रजाति के पौधे अपने यहां रोपित किए, जो कि नवंबर माह में लगाते ही 50 से 60 दिनों के अंदर फल देने लगे.
ये पौधे 15 मई तक लगातार फल देंगे जिनमें प्रति बीघा के हिसाब से एक लाख रुपये से अधिक की आमदनी होगी. इस प्रकार सात हेक्टेयर भूमि की फसल से लगभग एक करोड़ रुपये तक की आमदनी कर सकेंगे. उनकी स्ट्रॉबेरी की खेती को देखने के लिए क्षेत्र के किसान आते हैं और संबंधित जानकारी ले लेते हैं. इससे युवा भी प्रेरित हो रहे हैं.
प्रबल प्रताप का कहना है कि उन्होंने जिला उद्यान अधिकारी और विभाग की मदद से अपने खेतों में ड्रिप सिस्टम लगवाया है. उन्होंने हरियाणा के हिसार और चुनाट में जाकर स्ट्रॉबेरी की खेती देखी थी. चंडीगढ़ के बाद हिमाचल के कुट्टू गांव में जाकर उन्होंने इस खेती का प्रशिक्षण लिया और जानकारी हासिल की.
ड्रिप सिस्टम होने की वजह से स्ट्रॉबेरी के पौधे ठंडक में बने रहेंगे और इनका तापमान भी कम रहेगा. यह फसल मई के महीने तक लगातार चलेगी. जिला उद्यान अधिकारी सुनील कुमार का कहना है कि स्ट्रॉबेरी की खेती का प्रयास सार्थक है.
प्रबल प्रताप ने अपने परिवार को एक साथ जोड़ कर सात हेक्टेयर में स्ट्रॉबेरी की खेती की है. सिंचाई के लिए ड्रिप और मल्चिंग विधि से वे खेती कर रहे हैं. स्ट्रॉबेरी की क्वालिटी बहुत अच्छी है और फल भी बहुतायत में आ रहा है.
प्रबल प्रताप कहते हैं, सरकार की मंशा है कि किसानों की आय दोगुनी हो. इस वजह से परंपरागत खेती छोड़ कर आधुनिक तरीके से स्ट्रॉबेरी की खेती करना चाहिए. अगर इस तरह से खेती करते हैं तो विभाग की तरफ से पचास हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की सहायता भी प्रदान की जाती है.(रिपोर्ट/अमित)