भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का मुद्दा बहुत गंभीर है. यह मसला ऐसा है जो केवल खेती-किसानी से ही नहीं जुड़ा बल्कि राजनीति का भी बड़ा जरिया है. एमएसपी पर देश की सभी पार्टियां राजनीति करती हैं क्योंकि यह मसला सीधा किसानों से जुड़ा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो वहां भी एमएसपी पर विवाद रहा है. खासकर विश्व व्यापार संगठन यानी कि WTO में. डब्ल्यूटीओ के कुछ सदस्य देश भारत पर आरोप लगाते हैं कि एमएसपी के चलते दूसरे देशों की खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ता है. हालांकि भारत इससे शुरू से इनकार करता रहा है और एमएसपी मुद्दे का बचाव करता है. डब्ल्यूटीओ की हाल की मीटिंग में भी कुछ ऐसा ही हुआ.
बीते महीने 27-28 मार्च को डब्ल्यूटीओ एग्रीकल्चर कमेटी की दिल्ली में कॉन्फ्रेंस हुई जिसमें एमएसपी का मुद्दा उछला. भारत ने इस मुद्दे का बचाव करते हुए कहा न्यूनतम समर्थन मूल्य ऐसी योजना है जिससे छोटे और सीमांत किसानों को बहुत लाभ होता है. देश में एमएसपी के तहत ही पब्लिक स्टॉक होल्डिंग प्रोग्राम स्कीम (PSH) चलाई जाती है जो गरीबों का पेट भरने का काम करती है. इतना ही नहीं, इस स्कीम की वजह से अनाजों के दाम में बेतहाशा वृद्धि से रोक लगती है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है.
डब्ल्यूटीओ की मीटिंग में भारत ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, एमएसपी पर किसानों से अनाज खरीदा जाता है. फिर उस अनाज को पब्लिक स्टॉक होल्डिंग प्रोग्राम यानी कि PSH के तहत जमा किया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि किसी आपदा की स्थिति में भारत अपनी 8000 लाख से अधिक आबादी का पेट भर सके. एक सरकारी अधिकारी के हवाले से 'बिजनेसलाइन' ने लिखा, 'अगर हम अनाज का स्टॉक जमा न करें तो हमें बाकी दुनिया पर निर्भर रहना पड़ेगा. बाकी देशों से अनाज खरीदना पड़ जाएगा'.
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दूसरी ओर, विश्व व्यापार संगठन के कई देश भारत की सब्सिडी पॉलिसी को कोसते हैं. इन देशों का कहना है कि भारत की सब्सिडी पॉलिसी के कारण यहां के किसान धान और गेहूं का बंपर उत्पादन करते हैं. इसकी वजह से भारत का अनाज दुनिया भर के बाजारों में कम दाम पर मिल जाता है जबकि अमेरिका और यूरोप जैसे देशों के अनाज महंगे पड़ते हैं. इन देशों के अनाज विकासशील देशों में कम बिकते हैं. यही वजह है कि डब्ल्यूटीओ के कई देश भारत की सब्सिडी पॉलिसी का विरोध करते हैं. लेकिन भारत शुरू से अपने पक्ष का बचाव करता रहा है.
हालिया मीटिंग में भारत ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, चावल के व्यापार पर गौर करें तो 2020-21 में पूरी दुनिया में 560 लाख टन चावल का निर्यात हुआ है. दूसरी तरफ भारत ऐसा देश है जिसने अपने देश के 80 करोड़ लोगों को 580 लाख टन अनाज मुफ्त में दिया है. यानी पूरी दुनिया में जितने चावल का निर्यात हुआ, उससे कहीं ज्यादा भारत ने अपने लोगों में मुफ्त चावल बांटे हैं, वो भी कोरोना जैसे मुश्किल हालात में.
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मीटिंग में अधिकारी ने कहा, इतनी बड़ी मात्रा में चावल को जन वितरण प्रणाली यानी राशन के जरिये बांटा गया. अगर भारत इस स्टॉक को जमा नहीं रखता और उसे दुनिया के अन्य देशों से खरीदना पड़ता, तो वैश्विक बाजारों में इसके दाम आसमान पर पहुंच जाते. वह भी ऐसी स्थिति में जब आपदा के वक्त लगभग सभी देशों ने अपने अनाज के दाम बढ़ा दिए थे. अगर भारत को महंगे रेट पर चावल खरीद कर बांटना पड़ता तो स्थिति कुछ अलग होती. इससे देश की अधिसंख्य आबादी पर गंभीर असर पड़ता, खाद्य सुरक्षा पर भी खतरे के बादल मंडराने लगते.