पटना के ज्ञान भवन में दो दिवसीय मखाना महोत्सव का कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने शुभारंभ किया. किसानों और उद्यमियों को संबोधित करते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि मखाना महोत्सव का आयोजन देश के अन्य राज्यों में अब से किया जाएगा. मखाना का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाएगा. मखाना के उत्पादन, विपणन और प्रसंस्करण करके इसे हर थाली तक पहुंचाना सुनिश्चित किया जाएगा. मखाना उत्पादक किसान को यह भरोसा दिया जाए कि मखाना उत्पादन में उनका भविष्य है और आय वृद्धि का स्रोत है. इसके लिए मखाना उत्पादन के साथ उसकी क्वालिटी पर ध्यान देना होगा.
बता दें कि कृषि विभाग के उद्यान निदेशालय द्वारा मखाना महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. इस महोत्सव में किसान, वैज्ञानिक, व्यवसायी सहित आम लोग मौजूद रहे. जहां लोगों ने मखाना के फायदे को जाना. वहीं, किसानों ने खेती और बाजार से जुड़ी जानकारी हासिल की. 16 अगस्त 2022 को मिथिला मखाना को भारत सरकार द्वारा जी. आई. टैग दिया गया था. पूरे देश में मखाना उत्पादन का 85 प्रतिशत से अधिक उत्पादन उत्तरी बिहार के जिलों में किया जाता है.
कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि बिहार की मिट्टी की जैव विविधता और विशिष्ट जलवायु मानव हितार्थ अनेक फसलों को फलने-फूलने के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करती है. इन्हीं फसलों में मखाना एक जलीय फसल है, जिसके पूरे देश में उत्पादन का 85 प्रतिशत से अधिक उत्पादन बिहार में होता है. वहीं, प्राचीन काल से मखाना का उपयोग स्वास्थ्यप्रद भोजन और धार्मिक अनुष्ठान में शुभ सामग्री के रूप में किया जाता रहा है. मखाना फसल आजीविका सृजन, मूल्यवर्धन, विपणन और निर्यात प्रोत्साहन के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती है. जिस पर लाखों किसानों की आजीविका आश्रित है.
कृषि मंत्री ने कहा कि मखाना का निर्यात पड़ोसी देशों के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाईटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया तथा खाड़ी देशों में भी की जा रही है. स्वास्थ्य लाभों के कारण आने वाले दिनों में मखाना की मांग में वृद्धि होने की उम्मीद है. वहीं उत्पादन के दृष्टिकोण से स्थानीय बाजार की तुलना में राष्ट्रीय बाजारों में मखाना की कीमत लगभग दोगुनी है. जिसके चलते किसानों को एक अच्छा दाम भी मिल रहा है. आगे उन्होंने बताया कि बिहार में मखाना की खेती कुल 27,663 हेक्टेयर में की जाती है, जबकि 56,326 मीट्रिक टन बीज/गुड़ी उत्पादन किया जाता है. वहीं दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, पूर्णियाँ, कटिहार, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, अररिया तथा किशनगंज मखाना के प्रमुख उत्पादक जिला है.
मखाना की खेती करने वाले अरविंद मेहता और आनंदे राम कहते है कि बीते कुछ सालों में मखाना की मांग बढ़ी है. जिसकी वजह से किसान के पास भी मखाना नहीं बच पा रहा है. वहीं, मखाना के बीज से लावा तैयार करने वाले किसान आनंदे राम कहते है कि वह लावा निकालते है लेकिन उनके थाली में मखाना हर रोज नहीं मिल पाता है. यह स्थिति कुछ सालों के दौरान हुआ है. आगे दोनों किसान कहते है कि इस साल खेती ज्यादा हुई है और उत्पादन अधिक होने का अनुमान है. लेकिन मखाना का दाम कितना मिलेगा. यह देखने वाली बात होगी.