पर्यावरण से जुड़ी शोध संस्था CSE की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक Climate Change का असर, अलग अलग राज्यों में विविध रूपों में देखने को मिल रहा है. इसका ताजा उदाहरण पूर्वोत्तर क्षेत्र है. भरपूर बारिश के कारण सुहाने मौसम के लिए मशहूर इस इलाके में असम का तापमान सितंबर के आखिरी सप्ताह में 40 डिग्री से. को पार कर गया. आलम यह है कि चाय के बागानों में काम करने वाले मजदूरों को भी यह गर्मी बेहोश तक कर दे रही है. असम में इतना ज्यादा तापमान होना, सामान्य तो कतई नहीं है. मौसम वैज्ञानिक इसे अचरज भरा बदलाव बताते हुए इसकी वजह Heat Dome Effect को मान रहे हैं. यही वजह है कि मौसम वैज्ञानिकों ने पारा इतना ऊंचा जाने के बावजूद अब तक Heatwave की घोषणा नहीं की है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक हीट डोम इफेक्ट, मौसम से जुड़ी ऐसी गतिविधि है जो वायुमंडल में हवा केअधिक दबाव का क्षेत्र (High Pressure Area) बनने से संबंधित है. किसी क्षेत्र विशेष में उत्पन्न हुई उच्च दबाव प्रणाली को 'प्रति-चक्रवात' (Anticyclone) भी कहा जाता है. यह स्थिति वायुमंडल में एक बड़े क्षेत्र में बनती है.
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मौसम में बदलाव की इस स्थिति के तात्कालिक कारण कुछ भी हों, लेकिन इसे जलवायु परिवर्तन से अलग करके नहीं देखा जा सकता है. इसी के कारण सितंबर के आखिरी सप्ताह में असम के विभिन्न इलाकों में 7 लोगों की मौत भी हो चुकी है.
विशेषज्ञों का साफ तौर पर मानना है कि मौसम की ऐसी अप्रत्याशित स्थिति के पीछे असम में इस साल मॉनसून का कमजोर होना और इस वजह से मिट्टी में नमी की कमी होना बड़ी वजह है. इसके विश्लेषण से जुड़ी सीएसई की रिपोर्ट के मुताबिक कमजोर मॉनसून और मिट्टी में नमी की कमी के अलावा Heat Dome Effect को पैदा करने वाले अन्य कारण भी श्रृंखला की तरह एक दूसरे से जुड़े हैं.
इसके अनुसार असम सहित पूर्वोत्तर राज्यों में विकास के नाम पर जंगलों की भारी पैमाने पर कटाई हो रही है. इसके कारण वन विहीन हो रही जमीन सीधे तौर पर धूप की जद में आ जाती है. जंगल कटने से मानसून को रोकने वाले पेड़ों के अभाव में मानसून कमजोर पड़ जाता है. मिट्टी को कम पानी और अधिक धूप मिलने के कारण वातावरण के साथ जमीन भी ताप को बढ़ाती है. इन सभी कारकों के सामूहिक प्रभाव का ही नतीजा Heat Dome Effect है.
गुवाहाटी स्थित Cotton University में जलवायु विज्ञान के Associate Professor राहुल महंत ने बताया कि पहाड़ों से घिरे पूर्वोत्तर राज्यों में आमतौर पर हवा की गति सामान्य से ज्यादा रहती है. ठंडी पहाड़ी हवाओं के कारण यह इलाका भी ठंडा रहता है. Way of Bengal से उठने वाली ये हवाएं पूर्वोत्तर राज्यों में कम गति की पहाड़ी हवाओं टकराती हैं, जो यहां के वातावरण में जरूरत के मुताबिक नमी भी उत्पन्न करती है. जिससे अगस्त और सितंबर में इस इलाके को लगातार बारिश मिलती रहती है.
उन्होंने दलील दी कि इस साल पूर्वोत्तर इलाके में हवा के Low Pressure Area को बनाने वाला परिसंचरण पूरी तरह से गायब रहा. इसकी जगह असम और आसपास के राज्यों में एक उच्च दबाव प्रणाली सक्रिय है.
उन्होंने बताया कि आम तौर पर मिट्टी की नमी रात के समय ठंडा प्रभाव डालती है. पूर्वोत्तर राज्यों में मिट्टी की पर्याप्त नमी उपलब्ध रहती है. लेकिन, इस साल आश्चर्यजनक रूप से मिट्टी की नमी देखने को नहीं मिली. इस कारण असम में रात के समय तापमान अधिक दर्ज किया गया. इन सब कारणों की वजह से असम के ऊपर वायु परिसंचरण के आधार हीट डोम प्रभाव का बन गया.
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महंत ने कहा कि असम में हीट डाेम प्रभाव को जन्म देने वाले कारणों की मूल वजह जलवायु परिवर्तन है. इतना ही नहीं, उन्होंने इस एक प्रमुख कारण को आगे भी प्रभावी रहने की आशंका जताते हुए कहा कि यह खतरा अभी टला नहीं है. आने वाले सालों में अगर, खनन करने और जंगल कटने का सिलसिला यूं ही जारी रहा तो यह खतरा और भी ज्यादा गंभीर होने की आशंका है.
उन्होंने कहा कि देश के अन्य इलाकों की ही तरह, पूर्वोत्तर इलाके में भी विकास के नाम पर जंगलों की कटाई, Mining, Urbanisation, और तीव्र औद्योगिकीकरण जैसे कारकों ने भी गर्मी को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्होंने कहा कि संवेदनशील होने के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में हीट डोम प्रभाव जैसे गंभीर परिणाम देखने को मिल रहे हैं. अगर, असम की ही बात की जाए तो, पिछले दो दशकों में असम का 2,690 वर्ग किलोमीटर से अधिक वन क्षेत्र, विकास की भेंट चढ़ गया है.
गुवाहाटी स्थित IMD के क्षेत्रीय कार्यालय को सितंबर के अंतिम दो सप्ताह में भीषण गर्मी की चेतावनी और परामर्श जारी करने पड़े थे. आईएमडी के आंकड़ों के अनुसार, गुवाहाटी, सिलचर, डिब्रूगढ़, जोरहाट, तेजपुर, धुबरी और उत्तरी लखीमपुर सहित असम के सभी प्रमुख शहरों ने सितंबर महीने में अब तक के उच्चतम तापमान के रिकॉर्ड तोड़ दिए.