इस बार महाराष्ट्र के केंद्रबिंदु में सोयाबीन है. कभी प्याज हुआ करता था, लेकिन फिलहाल उसकी जगह सोयाबीन ने ले ली है. वजह स्पष्ट है. कई उम्मीदों और सपनों के साथ किसानों ने सोयाबीन की खेती की थी. अनुमान था कि रेट 7,000 रुपये से 10,000 रुपये तक मिलेगा. लेकिन मामला उलटा हो गया. अभी तो किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए भी तरस रहे हैं. यानी उन्हें 4892 रुपये प्रति क्विंटल का भाव भी नहीं मिल रहा है. ऐसे में किसानों के अरमानों और सपनों पर पानी फिर गया है. यहां तक कि किसानों ने इसी सोयाबीन के नाम पर बड़े-बड़े कर्ज लिए थे. अब उसी कर्ज को चुकाने के लिए उन्हें अपने खेत बेचने पड़ रहे हैं. जिन आंखों में पहले सोयाबीन से कमाई के सपने होते थे, आज उन आंखों में आंसू के सिवा कुछ नहीं.
इस दुखभरी कहानी में लातूर जिले के एक किसान हैं संदीपन कुटवाडे. इन्होंने लगभग 84,000 रुपये लगाकर सोयाबीन की खेती की, लेकिन जब बेचने चले तो उन्हें सबकुछ काट-पीटकर तकरीबन 14 हजार रुपये का मुनाफा हुआ. यह 20 क्विंटल सोयाबीन का हिसाब है. वे 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से कहते हैं कि इतने रुपये तो मुश्किल से छह महीने भी नहीं चल पाएंगे, फिर वे 5 लोगों के परिवार का भरण-पोषण कैसे करेंगे. ऐसा ही सवाल और भी कई किसानों का है जो मराठवाड़ा क्षेत्र में बड़ी-बड़ी उम्मीदों के साथ सोयाबीन की खेती करते हैं.
खरीद व्यवस्था और मौसम से मिले धोखे से किसान मायूस भी हैं और उनमें तिलमिलाहट भी है. तिलमिलाहट इस बात की है कि वे सोयाबीन और उसकी खेती का आखिर क्या करें. कई किसान तो इस मूड में हैं कि वे खेती छोड़कर कुछ और काम कर लें. किसान युवराज पाटिल का दावा है कि सोयाबीन बोने वाला हर किसान भारी कर्ज से दबा है. या तो बैंक का कर्ज है या लोकल सेठ-साहूकारों का. इन किसानों को उम्मीद थी कि उपज का रेट अच्छा मिलेगा और वे कर्ज चुका देंगे. मगर हालात विपरीत हो गए.
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पाटिल खुद भी 2 लाख रुपये के कर्ज से दबे हैं. इसे चुकाने के लिए खेत बेचने के सिवा उनके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं है.उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, "लोग पहले से ही साहूकारों का कर्ज चुकाने के लिए अपनी ज़मीन बेच रहे हैं." "मैं अपने बच्चों को कभी खेती करने की इजाज़त नहीं दूंगा. मैं उनके भविष्य के बारे में सोचकर रातों को सो नहीं पाता. अगर हम इस तरह से परेशान हैं, तो उनके पास क्या उम्मीद है? मुझे खेती में कदम रखने का पछतावा है. पिछले साल, मैंने कर्ज चुकाने के लिए अपनी ज़मीन का एक हिस्सा बेच दिया. अगर हम हर साल अपनी ज़मीन बेचते रहेंगे, तो हमारे पास क्या बचेगा? हम खाने के लिए क्या जुटा पाएंगे? हमारी दुर्दशा के लिए सरकार ज़िम्मेदार है."
सोयाबीन की खेती 50 लाख हेक्टेयर से ज़्यादा होती है (कपास और गन्ने की खेती से ज़्यादा). सितंबर में, केंद्र ने 4,892 रुपये प्रति क्विंटल का एमएसपी घोषित किया, लेकिन राज्य की ओर से शुरू किए गए खरीद केंद्रों को चालू होने में दो महीने से ज़्यादा का समय लग गया. उदाहरण के लिए, जागृति प्रगति बिजोत्पदान प्राकृतिक सहकारी संघ की ओर से लातूर शहर में एक केंद्र ने 7 नवंबर को उपज खरीदना शुरू कर दिया. केंद्र के खरीद अधिकारी लक्ष्मण उफाड़े ने कहा, "हम राष्ट्रीय सहकारी कृषि संघ (नेफेड) के एजेंट के रूप में काम करते हैं." लेकिन यहां दिक्कत ये रही कि सभी किसानों की उपज नहीं बिक पाई क्योंकि उपज में नमी की शिकायत आ गई. इसी शिकायत के जाल में कई किसान फंस गए और उनका सोयाबीन धरा का धरा रह गया.
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