वैज्ञानिकों ने भी माना आज भी खरे हैं तालाब, बोर वेल के कारण Alarming Stage में है भूजल

वैज्ञानिकों ने भी माना आज भी खरे हैं तालाब, बोर वेल के कारण Alarming Stage में है भूजल

पानी के बेतहाशा इस्तेमाल को देखते हुए Worldwide Water Crisis की स्थिति उत्पन्न हो गई है. Surface Water दूषित होने के कारण यह इस्तेमाल के योग्य नहीं बचा है. अब Ground water के बेतहाशा दोहन से भूजल संकट उत्पन्न हो गया है. ऐसे में भूगर्भ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आंख मूंद कर हो रहे बोर वैल से भूूजल Alarming Stage में है.

विकास केे नाम पर सूख रहे झील तालाब, बढ़ रहा जल संकट (फोटो : राॅयटर)
न‍िर्मल यादव
  • Jhansi,
  • May 09, 2024,
  • Updated May 09, 2024, 1:33 PM IST

जल संकट के दौर में Farming & Water Conservation सबसे ज्यादा चर्चा में है. अंधाधुंध विकास के नाम पर औद्योगिक गतिविधियों की रफ्तार तेज होने पर 1980 के दशक में पानी के पुरोधा अनुपम मिश्र ने भावी जल संकट पर शोध किया था. राजस्थान और बुंदेलखंड जैसे इलाकों में पानी के प्रबंधन पर शोध के दौरान ही मिश्र ने 1990 के दशक में Surface Water का संकट उत्पन्न होने के बाद जल्द ही भूगर्भीय जल संकट की चेतावनी भी दे दी थी. गंगा और यमुना सहित देश की लगभग सभी जीवनदायिनी नदियां दूषित होने पर उन्होंने अपनी किताब ''आज भी खरे हैं तालाब'' में भविष्य के जल संकट की आहट से दुनिया को अवगत करा दिया था. अब लगभग तीन दशक बाद, जबकि अनुपम मिश्र की चेतावनी अक्षरशः: सही साबित हो रही है, भूगर्भ वैज्ञानिकों ने भी यह कहना शुरू कर दिया है कि धरती के नीचे भी जलसंकट पैदा हो चुका है. वैज्ञानिकों ने इसे लेकर Alarming Situation होने की बात कही है. है. सूखे का पर्याय बन चुके बुंदेलखंड इलाके में 40 साल से काम कर रहे भूगर्भ वैज्ञानिक डॉ डीएन राव ने भी इस संकट के एकमात्र समाधान के रूप में कहा है कि बोर वैल परमाणु बम की तरह ब्रह्मास्त्र है, इसे अंतिम विकल्प के रूप में ही इस्तेमाल किया जाए. ऐसे में आज भी कुंआ और तालाब ही खरे हैं.

पानी के प्रबंधन का हाल

डॉ राव ने कहा कि यूपी और एमपी का बुंदेलखंड इलाका हो या जलसंकट से जूझ रहे विदर्भ जैसे देश के दूसरे इलाके हों, इनमें किसानों के ऊपर जल दोहन काे लेकर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि Surface Water यानी जमीन की सतह पर मौजूद झील, नदी, तालाब और कुआं आदि जलस्रोतों का पानी लगभग पूरी तरह से दूषित हो चुका है. अब पेयजल से लेकर उद्योग और खेती तक, लगभग सभी कामों में भूजल यानी Ground Water का ही इस्तेमाल हो रहा है. इससे बेतहाशा Ground Water Extraction ने धरती के संतुलन को बिगाड़ दिया है.

ये भी पढ़ें, 2050 तक गंभीर जल संकट से फसेंगे देश के 50 फीसदी जिले, पढ़ें क्या कहती है रिपोर्ट

परमाणु बम की तरह ब्रह्मास्त्र है भूजल

डॉ राव ने बताया कि वह बुंदेलखंड में 40 साल से सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर ट्यूबवेल के लिए वैज्ञानिक पद्धति से धरती के नीचे पानी की खोज करने में तकनीकी मदद दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में Surface Irrigation का चलन लगभग खत्म हो गया है. ऐसे में हर किसान चाहता है कि उसके खेत पर Bore Well हो.

उन्होंने कहा कि किसान बोरवेल के लिए भूजल की तलाश करने में पारंपरिक और वैज्ञानिक तरीके अपनाते है. पारंपरिक तौर पर नारियल की मदद से खेत में पानी का पता लगाया जाता है. लेकिन इससे पानी की सही मात्रा और जगह का सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. डॉ राव ने कहा कि ऐसे में आधुनिक तकनीक की मदद से वह किसानों को खेत में बोरवेल कराने के लिए सटीक जगह और पानी की मात्रा बताते हैं. साथ ही किसानों को यह भी बताते हैं कि‍ बोरवेल, खेती के लिए पानी का अंतिम विकल्प है.

डाॅ राव ने कहा कि बोरवेल का पानी, सही मायने में परमाणु बम की तरह ब्रह्मास्त्र है. इसे किसानों को अंतिम विकल्प के रूप में ही इस्तेमाल करना चाहिए. इससे पहले, किसानों द्वारा कुआं और तालाब के विकल्प अपनाना जरूरी है. जब ये विकल्प नाकाम हो जाएं तब, बोरवेल कराएं.

ये भी पढ़ें, देश के करीब 150 जलाशयों में 50 फीसदी से भी कम बचा है पानी, बिहार की स्थिति बहुत खराब

किसान बनें पानी के पुरोधा

डाॅ राव ने कहा कि उद्योग जगत को पानी की बहुत ज्यादा मात्रा की जरूरत होती है. ऐसे में उनके लिए बड़े बोरवेल कराना मजबूरी है. ऐसे में उद्योग जगत से Surface Water के स्रोत के रूप में नदियों को गंदा करने से बचने में अग्रणी भूमिका निभाने की अपेक्षा करना लाजिमी है. वहीं भूजल के दूसरे सबसे बड़े उपभोक्ता के रूप में किसानों से 'पानी के पुरोधा' बनने की अपेक्षा की जाती है.

उन्होंने कहा कि कृष‍ि विभाग की खेत तालाब योजना से लेकर लघु सिंचाई विभाग की कुआं बनाने की योजनाएं, किसानों के लिए बहुत उपयोगी है. किसानों काे हर खेत पर बोरवेल बनाने की ख्वाहिश को छोड़कर तालाब और कुआं का विकल्प अपनाना चाहिए. ऐसा करके किसान प्रकृति और धरती की बड़ी महत्वपूर्ण सेवा करके पानी के पुरोधा बन सकते हैं.

डॉ राव ने कहा कि आदर्श स्थिति तो यह है कि सिंचाई के लिए Ground Water का इस्तेमाल करना पाप है. अगर किसी इलाके में Surface Irrigation का कोई विकल्प ही न बचा हो, वहां बहुत ही नियंत्रित रूप में भूजल का इस्तेमाल होना चाहिए. इस पर नियंत्रण करने में सरकार को सजग पहरेदार की जिम्मेदारी निभाना चाहिए.

MORE NEWS

Read more!