ग्वालियर, सुरों के बेताज बादशाह तानसेन की तपोभूमि होन के साथ साथ भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई की जन्मस्थली भी है. यह संयोग ही है कि सोमवार को अटल जयंती के अवसर पर ही एमपी के ऐतिहासिक Gwalior Fort में एक ऐसे अनूठे कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसकी वजह से दो मकसद एक साथ पूरे हो सके. पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेई और सुर सम्राट तानसेन, दोनों को सुरों की महफिल सजा कर श्रद्धांजलि देने के लिए 'ताल दरबार' कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और सूबे के सीएम डॉ मोहन यादव की मौजूदगी में आयोजित हुए ताल दरबार में भारतीय शास्त्रीय संगीत के सबसे लोकप्रिय वाद्य यंत्र, तबला और हारमोनियम के फनकार देश भर से जुटे. तबले की थाप पर फूटे सुरों ने विश्व कीर्तिमान बनाते हुए इस महफिल काे Guinness Book of World Record में दर्ज करा दिया.
सुरों के साधक तानसेन की विरासत को संजो रहे ग्वालियर शहर को यूनेस्को ने 'संगीत नगरी' का तमगा दिया है. शहर की इस पहचान को देश दुनिया में आगे बढ़ाने के लिए ग्वालियर फोर्ट में 'ताल दरबार का आयोजन किया गया. इसमें देश भर से 12 हजार से ज्यादा तबला वादकाें ने हारमोनियम, सितार और सारंगी की धुन पर सजे 'लहरा और कायदा' की ताल पर संगत करते हुए पूरे ग्वालियर किले को शास्त्रीय संगीत के सुरों से सराबोर कर दिया. इस आयोजन को सीएम मोहन यादव ने 'ग्वालियर में संगीत साधकों का कुंभ' करार दिया.
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संगीत के इस महोत्सव को अनूठा बनाने में 1200 से ज्यादा तबला वादकों का अहम योगदान रहा. एक ही स्थान पर एक साथ इतने अधिक तबला वादकों की मौजूदगी ने विश्व कीर्तिमान बना दिया. इस अवसर की सार्थकता को सिद्ध करने के लिए सीएम मोहन यादव ने ऐलान कर दिया कि इस जगह पर अब हर साल 25 दिसंबर को ऐसा ही कार्यक्रम आयोजित होगा. इस विश्व रिकॉर्ड को यादगार बनाने के लिए उन्होंने कहा कि अब हर साल 25 दिसंबर को तबला दिवस' के रूप में भी मनाया जाएगा.
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इस अवसर पर सीएम यादव और सिंधिया के अलावा एमपी के विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर भी मौजूद थे. सिंधिया ने कहा कि ग्वालियर में तानसेन महोत्सव के दौरान आयोजित 'ताल दरबार' में 1500 संगीत साधकों ने अपनी संगीत साधना से अलौकिक आध्यात्मिक अुनभव कराया है. उन्होंने कहा कि इस अनूठे अनुभव को दुनिया भर में लोग महसूस कर सकें, इसके लिए सरकार के स्तर पर हर संभव उपाय किए जाएंगे.