आज विश्व आदिवासी दिवस है. इस साल इसकी थीम Indigenous Youth as Agents of Change for Self-determination है. छत्तीसगढ़ के वन और आदिवासी, सदियों से इसकी पहचान रहे हैं. राज्य के लगभग आधे हिस्से पर जंगल हैं, जहां छत्तीसगढ़ की गौरवशाली आदिम संस्कृति फूलती-फलती है. बीते कुछ वर्षों के दौरान छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के समग्र विकास और उत्थान पर विशेष ध्यान दिया गया है. इससे राज्य के आदिवासी बहुल इलाकों में विकास की नई लहर पैदा हुई है.
छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति से देश-दुनिया को परिचित कराने के लिए राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव जैसे गौरवशाली आयोजनों की शुरूआत की गई. पहला राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव 2019 में और दूसरा 2021 में और इसका तीसरा संस्करण 2022 में देखा गया. देवगुड़ियां (आदिवासियों का पूजा स्थल) और घोटुलों (आदिवासियों का सांस्कृतिक मिलन स्थल) का संरक्षण और संवर्धन कर राज्य सरकार ने आदिम जीवन मूल्यों को सहेजा और संवारा है. वर्तमान में देवगुड़ी और घोटुल निर्माण के लिए 5 लाख रुपये तक राशि दी जा रही है. सरकार द्वारा आदिवासियों के तीज-त्यौहारों की संस्कृति एवं परंपरा को संरक्षित करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री आदिवासी परब सम्मान निधि योजना शुरू की गई है. आदिवासी परब सम्मान निधि योजना में मेला, मड़ई, जात्रा त्योहार, सरना पूजा, देव गुड़ी, छेरछेरा, अक्ती, नवाखाई और हरेली जैसे विभिन्न त्योहार शामिल हैं. योजना के तहत इन त्योहारों के लिए 10 हजार रुपये का अनुदान दिया जाता है.
छत्तीसगढ़ सरकार की नीति के चलते वनांचल में रहने वाले लोगों के जीवन में तेजी से बदलाव आने लगा है. सरकार ने आदिवासी समाज की जरूरतों और अपेक्षाओं को ध्यान में रखकर कई नई योजनाएं बनाई. इसकी शुरूआत लोहंडीगुड़ा के किसानों की जमीन वापसी से हुई. बस्तर के लोहंडीगुड़ा क्षेत्र के 10 गांवों में एक निजी इस्पात संयंत्र के लिए 1707 किसानों से अधिग्रहित 4200 एकड़ जमीन वापस की गई. इससे यहां के निवासियों को कृषि के लिए पट्टे दिए जा सकेंगे. नए उद्योगों की स्थापना हो सकेगी. आजादी के बाद पहली बार अबूझमाड़ क्षेत्र के 2500 किसानों को मसाहती खसरा प्रदान किया गया.
वनांचल में तेजी से बदलाव लाने के लिए राज्य सरकार ने तेंदूपत्ता संग्रहण दर को 2500 रूपए प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर 4000 रूपए प्रति मानक बोरा करके, 67 तरह के लघु वनोपजों के समर्थन मूल्य पर संग्रहण, वैल्यूएडिशन और उनके बिक्री की व्यवस्था की गई. राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2018-19 से लेकर 2022-23 के दौरान राज्य में 12 लाख 71 हजार 565 क्विंटल लघु वनोपजों की समर्थन मूल्य पर खरीदी की गई, जिसका कुल मूल्य 345 करोड़ रूपए है. वनोपज संग्रहण के लिए संग्राहकों को सबसे अधिक पारिश्रमिक देने वाला राज्य छत्तीसगढ़ है. तेन्दूपत्ता संग्राहकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए शहीद महेन्द्र कर्मा तेन्दूपत्ता संग्राहक सामाजिक सुरक्षा योजना अगस्त 2020 में शुरू की गई.
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इसके अलावा छत्तीसगढ़ में मिलेट मिशन योजना जारी है. वनांचलों के विकास के लिहाज से यह योजना काफी कारगर साबित हो सकती है. इसके तहत कोदो, कुटकी और रागी जैसे उपजों से विशेष तरह के पकवान बनाए जा रहे हैं. और विभिन्न जिलों में इसके स्टॉल खोले जा रहे हैं. ध्यान रहे कि छत्तीसगढ़ देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां समर्थन मूल्य पर कोदो, कुटकी और रागी की खरीद की जा रही है.
राज्य के वन क्षेत्रों में काबिज भूमि का आदिवासियों और पारंपरागत निवासियों को अधिकार देने के मामले में छत्तीसगढ़ देश में अग्रणी राज्य है. राज्य में बीते साढ़े 4 सालों में 4,54,415 व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र के अंतर्गत हितग्राहियों को 3,70,275 हेक्टेयर भूमि दी गई है.
छत्तीसगढ़ सरकार पेसा कानून के नियमों को लागू करने के विषय में गंभीरता से प्रयास कर रही है. पेसा कानून के नियम बन जाने से आदिवासी समाज के लोगों में आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन की भावना आएगी। ग्राम सभा का अधिकार बढ़ेगा. ग्राम सभा के 25 प्रतिशत सदस्य आदिवासी समुदाय के होंगे और इस 50 प्रतिशत में एक चौथाई महिला सदस्य होंगे. ग्राम सभा का अध्यक्ष आदिवासी ही होगा.