केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने शनिवार को कोच्चि शहर के करीब बसे अलुवा में स्थित 103 साल पुराने एक बीज फॉर्म को देश का पहला कार्बन तटस्थ (कार्बन न्यूट्रल) फॉर्म घोषित किया. मुख्यमंत्री ने अपने बयान में कहा कि कृषि विभाग के तहत आने वाले इस बीज फॉर्म को ‘कार्बन तटस्थ’ होने का दर्जा कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी लाने के कारण मिली है.
140 विधानसभा क्षेत्रों में स्थापित किये जाएंगे कार्बन तटस्थ फॉर्म
अलुवा टाउन हॉल में किसानों और संबंधित अधिकारियों को संबोधित करते हुए विजयन ने कहा कि कार्बन तटस्थ फॉर्म सभी 140 विधानसभा क्षेत्रों में स्थापित किये जाएंगे. उन्होंने कहा कि कार्बन तटस्थ विधि को महिला समूहों के माध्यम से लागू किया जाएगा और इस तरह के पहल आदिवासी क्षेत्रों में भी किए जाएंगे. वहीं, प्रशासन ने पहले ही राज्य में 13 ऐसी कार्बन तटस्थ फार्म बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
हरित गैस उत्सर्जन में कृषि क्षेत्र का 30 प्रतिशत योगदान
इस दौरान उन्होंने 2050 तक केरल को कार्बन-तटस्थ राज्य बनने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए अन्य उद्योगों के लिए कार्बन-तटस्थता की धारणा को लागू करने की आवश्यकता पर भी बल दिया. विजयन ने अपने भाषण में यह भी कहा कि हरित गैस उत्सर्जन में 30 प्रतिशत योगदान कृषि क्षेत्र का है, जिसे रोका जा सकता है और कार्बन तटस्थ कृषि से क्लाइमेट चेंज को नियमित किया जा सकता है.
कार्बन न्यूट्रल का मिला दर्जा
खबरों के मुताबिक, ये 103 साल पुराना सीड फार्म पेरियार के किनारे 13.5 एकड़ जमीन पर बसा है. केरल कृषि विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ क्लाइमेट चेंज एंड एनवायरनमेंटल साइंस द्वारा किए गए रिसर्च के बाद इस फार्म को ‘कार्बन न्यूट्रल’ का दर्जा मिला है. वैज्ञानिकों की इस रिसर्च में अलुवा स्टेट सीड फार्म में कृषि कार्यों से कार्बन का उत्सर्जन और कार्बन के भंडारण का आकलन किया गया. इस रिसर्च में पता चला कि अलुवा सीड फार्म में कार्बन का उत्सर्जन 43 टन, जबकि यहां कार्बन का स्टोरेज 213 टन दर्ज हुआ.
कार्बन न्यूट्रल का मतलब
कार्बन न्यूट्रल का मतलब होता है किसी क्षेत्र में की गई विभिन्न गतिविधियों में जितना कार्बन उत्सर्जन हो, उतना ही कार्बन अवशोषण की व्यवस्था भी हो, ताकि पर्यावरण कार्बन मुक्त हो.
अलुवा बीज फार्म में होती है जैविक खेती
कोच्चि के 13.5 एकड़ में फैले इस स्टेट सीड फार्म में दस वर्षों से अधिक समय से रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों से मुक्त खेती हो रही है. यहां देसी प्रजाती के पशुओं को पालकर मिश्रित खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके अलावा, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए पत्तियों और तिनकों को धान के खेत में ही फेंक दिया जाता है. यहां गाय, बकरी, मुर्गी, बतख के साथ-साथ मछली पालन भी किया जाता है. अजोला की खेती और वर्मी कंपोस्ट यूनिट भी लगाई गई है. धान यहां की प्रमुख फसल है, जिसकी खेती लगभग 7 एकड़ के दायरे में हो रही है.