महाराष्ट्र के किसानों के लिए बड़ी खबर है. राज्य के डेयरी विकास मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटिल ने निजी और सहकारी दूध कंपनियों यह निर्देश दिए हैं कि वो किसानों को प्रति लीटर न्यूनतम 35 रुपये कीमत दें. साथ ही दूध में मिलावट रोकने को भी कहा है. किसान सभा ने इस बात का दावा किया है. सभा ने कहा है कि दुग्ध उत्पादक कृषक संघर्ष समिति डेयरी विकास मंत्री के इस निर्णय का स्वागत करती है. बिना किसी विशेष कारण के, महाराष्ट्र में दूध कंपनियों ने पिछले एक महीने से मिलीभगत करके दूध की खरीद कीमत कम करना शुरू कर दिया था.
जहां केंद्रीय मंत्री कह रहे हैं कि लम्पी बीमारी के कारण देश में दूध उत्पादन में कमी के कारण दूध उत्पादों का आयात करना पड़ेगा, वहीं महाराष्ट्र में दूध कंपनियों ने दूध की कीमत घटा दी है. वो सिर्फ 30 से 31 रुपये प्रति लीटर दाम दे रही हैं. दूध की कीमतों और कोविड जैसी आपदाओं के संबंध में अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करके दूध की खरीद कीमतों को जानबूझकर कम करने की लगातार हो रही घटनाओं के कारण पूरा दूध क्षेत्र अस्थिर हो गया है.
किसान नेता डॉ. अजीत नवले ने कहा कि दूध उत्पादक चाहते हैं कि दूध की कीमत तय हो, उसमें स्थिरता हो. हालांकि, हकीकत में सरकार की ओर से कहा जा रहा था कि दरों को लेकर ऐसा कोई हस्तक्षेप संभव नहीं है. ऐसी पृष्ठभूमि में अगर सरकार अब कीमत को लेकर किसानों के पक्ष में हस्तक्षेप की भूमिका निभाएगी तो यह स्वागत योग्य बात है. किसान सभा और दुग्ध किसान संघर्ष समिति ने दुग्ध मंत्री के न्यूनतम मूल्य पर हस्तक्षेप के कदम का स्वागत किया है.
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डॉ. नवले के अनुसार दुग्ध विकास मंत्री ने कहा है कि मौजूदा स्थिति में दूध के 35 रुपये दाम देने में कोई दिक्कत तो नहीं आ रही है, इसकी जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया जा रहा है. किसान सभा की मांग है कि दुग्ध विकास मंत्री इस मामले को समझें और रुपये देने के फैसले पर अमल शुरू करें.
महाराष्ट्र में संगठित क्षेत्र में एकत्र होने वाले 1 करोड़ 30 लाख लीटर दूध में से 76 प्रतिशत निजी दूध कंपनियों द्वारा एकत्र किया जाता है. अगर निजी दूध कंपनियां दूध की न्यूनतम कीमत 35 रुपये देने का उल्लंघन करती हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सरकार के पास कोई कानूनी हथियार उपलब्ध नहीं है. इसी पृष्ठभूमि में किसान सभा मांग कर रही है कि दूध की खरीद दर, मिलावट और लूट को रोकने के लिए निजी और सहकारी दूध कंपनियों पर शिकंजा कसा जाए. इसके लिए एक कानून बनाया जाए.