कुछ आंकड़ें उम्मीद और राहत लेकर आते हैं. ऐसा ही एक आंकड़ा सामने आया है नीति आयोग की तरफ से. इस आंकड़ें के मुताबिक भारत में पहली बार ऐसा हुआ है कि 52% खेती योग्य भूमि को सिंचाई की सुविधा मिल चुकी है. 2022-23 के आधिकारिक आंकड़ों में भी सामने आया है कि पहली बार, भारत की आधे से अधिक खेती योग्य भूमि में सूक्ष्म परियोजनाओं की वजह से सुनिश्चित सिंचाई सुविधा पहुंच रही है. 2022-23 में देश में 141 मिलियन हेक्टेयर बुवाई क्षेत्र में, लगभग 73 मिलियन हेक्टेयर, यानी 52 फीसदी, में सिंचाई की सुविधा है. 2016 में यह आंकड़ा 41 फीसदी था. विशेषज्ञों का कहना है कि अब शुष्क भूमि वाले कृषि क्षेत्रों में, सूखे गर्मी और अनियमित मॉनसून के बढ़ते प्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी. अब फसलों के खराब होने की गुंजाइश भी कम हो जाएगी.
जून से सितंबर तक रहने वाला मॉनसून आज भी हमारी कृषि व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है. अभी भी खरीफ या गर्मियों में बोई जाने वाली फसलों को पानी इस मॉनसून से मिलता है. ऐसे में जब -जब मॉनसून खराब होता है, तो कृषि आय प्रभावित होती है. इसका बुरा असर देश की अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलता है. ऐसे में सिंचाई की सुविधा से इसको ठीक कर फसलों को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है.
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जिस वजह से राज्यों को संसाधन जुटाने में मदद करने के लिए 2018-19 के दौरान राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) के साथ 5000 करोड़ की धन राशि के साथ एक सूक्ष्म सिंचाई कोष (MIF) बनाया गया था. फंड के तहत, राज्यों को 12,696 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता जारी की गई है, जिसमें से 11,845 करोड़ रुपये पिछले वित्तीय वर्ष तक उपयोग किए गए थे.