Agritech start up: कमाल है ये एग्री स्टार्टअप, हजारों किसानों को केमिकल फ्री चावल उगाने की ट्रेनिंग देकर बढ़ा रहे हैं इनकी आय

Agritech start up: कमाल है ये एग्री स्टार्टअप, हजारों किसानों को केमिकल फ्री चावल उगाने की ट्रेनिंग देकर बढ़ा रहे हैं इनकी आय

Agritech start up: जो खाना हम खा रहे हैं उसमें केमिकल की मात्रा कम से कम हो इस मिशन के साथ काम कर रहा है चेन्नई बेस्ड एक एग्रीटेक स्टार्टअप. ये तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के किसानों को बेहद कम फर्टिलाइजर के साथ चावल की खेती करने की ट्रेनिंग देती है जिससे उनका सस्टेनेबल फार्मिग की ओर रुझान बढ़ रहा है

आरती सिंह
  • नोएडा ,
  • May 28, 2024,
  • Updated May 28, 2024, 12:08 PM IST

ऐसी खेती जिससे लोगों को संतुलित और पौष्टिक खाना मिले और उससे प्रकृति का भी कोई नुकसान ना हो इस सिद्धांत के साथ काम करता है स्वस्थ इको हार्वेस्ट. तमिलनाडु में चावल की खेती करने वाले किसानों के साथ काम करने वाला ये स्टार्टअप उनको कम केमिकल के प्रयोग से चावल उगाने के लिए प्रेरित करता है. स्वस्थ इको हार्वेस्ट  एग्रीटेक स्टार्ट-अप डिजिटलीकरण के माध्यम से लोगों को स्वच्छ और स्वस्थ भोजन प्रदान करने की दिशा में काम कर रहा है और साथ ही वो किसानों कृषि आय बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है.

 स्वस्थ इको हार्वेस्ट के साथ जुड़े हैं हजारों किसान

स्वस्थ इको हार्वेस्ट के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर बालामुथुकुमार ने किसान तक से बातचीत में बताया कि उनकी कंपनी करीब 10 हजार किसानों के साथ मिलकर काम कर रही है. ये किसान तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में खाए जाने वाले कई तरह चावल की किस्मों खेती करते हैं. ये किसान खासतौर पर सोना मसूरी, पोन्नी चावल, मट्टा या लाल चावल, इडली चावल, और साथ ही दक्षिण भारत की दूसरी पारंपरिक धान की किस्में जैसे करुप्पू कवुनी, पूंगार और मप्पिलै सांबा का उत्पादन कर रहे हैं. चावल उगाने के अलावा के अलावा स्वस्थ इको हार्वेस्ट उरद दाल की खेती करने वाले किसानों के साथ भी काम करते हैं.

किसानों को देते हैं केमिकल फ्री खेती की ट्रेनिंग

बालामुथुकुमार ने बताया कि सोना मसूरी रुटीन में खाए जाने वाले सबसे पॉपुलर चावल हैं लेकिन इनमें भी जरूरत से ज्यादा पेस्टीसाइड का प्रयोग किया जा रहा है जिससे इनके स्वाद और पोषण दोनों पर असर पड़ रहा है. ऐसे में किसानों को वो इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि वो कम केमिकल रेसिड्यू के साथ खेती करेंगे तो उनके चावलों की क्वालिटी बढ़िया होगी. वो किसानों को यूरोपीय यूनियन के मानकों के मुताबिक चावल का उत्पादन कराते हैं और इसके लिए वो ट्रेसिंग, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से लेकर कई तरह की तकनीक का इस्तेमाल करते हैं.
बालामुथुकुमार ने किसान तक से बातचीत में कहा कि वो किसानों को मैक्सिमम रेसिड्यू लिमिट से ज्यादा पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं करने देते और किसानों को खेती में अच्छी एग्रीकल्चर टेक्नीक अपनाने पर जोर देते हैं. स्वस्थ इको हार्वेस्ट की पूरी एक टीम है जो किसानों को सस्टेनेबेल फार्मिंग के प्रति जागरूक करने और केमिकल के कम प्रयोग के बारे में जानकारी देती है. 

किसानों की आय बढ़ाने में मदद कर रहा ये स्टार्टअप

स्वस्थ इको हार्वेस्ट के साथ काम करने वाले किसान उच्च गुणवत्ता वाले चावल का उत्पादन करते हैं और चावल खरीदने वालों की पारदर्शिता के लिए कई स्तर पर क्वालिटी चेक होता है. स्वस्थ इको हार्वेस्ट सीधे किसानों से धान खरीदते हैं और चावल बनाने वाली मिल को सप्लाई करते हैं. स्वस्थ इको हार्वेस्ट की निगरानी और निरीक्षण में उगाए जाने वाले चावलों में रसायन का इस्तेमाल बहुत कम होता है इसलिए इनकी कीमत भी बाकी धान से बढ़िया मिलती है जिससे किसानों को सीधे तौर पर फायदा होता है.

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यूरोपियन यूनियन के मानकों को ध्यान में रखकर धान की खेती

स्वस्थ इको हार्वेस्ट के साथ काम करने वाले किसान एक्सपोर्ट क्वालिटी के धान की पैदावार करते हैं. यूरोपीय यूनियन के मानकों के मुताबिक एक्सपोर्ट करने के लिहाज से इन चावलों में केमिकल रेसिड्यू( केमिकल की मात्रा) मैक्सिमम रेसिड्यू लिमिट के अंदर रहती है. ग्राहक किस क्वालिटी के चावल खरीद रहे हैं इस बात की पारदर्शिता के लिए चावल के पैकेट पर QR कोड स्कैन दिया होता है जिससे ग्राहक सीधे उनके उत्पादन की पूरी प्रक्रिया जान सकता है. स्वस्थ इको हार्वेस्ट का मिशन है खाद्य सुरक्षा की बढ़ती मांग, किसानों की आय बढ़ाने के लिए ज्यादा उत्पादन और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल खेती करने की दिशा में काम किया जाए. स्वस्थ इको हार्वेस्ट के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर बालामुथुकुमार का मानना है कि खेती से रसायनों को पूरी तरह हटाना मानव और पशु खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है इसलिए इस जोखिम को कम करने के लिए तकनीक और ऐसी प्रैक्टिस को अपनाने की जरूरत से है जिससे धीरे-धीरे रसायनों के प्रयोग में कमी आए. खाद्य सुरक्षा से समझौता किए बिना और प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना खेती की की जा सके. 

 

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