किसान आंदोलन के बीच हरियाणा में सत्ता परिवर्तन हुआ था. मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतरना पड़ा था और नायब सिंह सैनी की बतौर मुख्यमंत्री ताजपोशी हुई थी. उससे पहले तक मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अपनी कट्टर किसान नीति को लेकर चर्चाओं का चेहरा बन चुके थे. माना जाता है कि उनकी ये ही कट्टर किसान नीतियां उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए खतरा बनी थी. हालांकि इसके बाद उन्होंने राजनीति में चाणक्य चाल चलते हुए अपने राजनीतिक शिष्य नायब सिंह सैनी को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने में सफलता प्राप्त की.
तब से लेकर अब तक लोकसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं और विधानसभा चुनावों की आहट हो गई है. जैसा की किसी भी शिष्य पर अपने गुरु की नीतियों को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी होनी चाहिए, लेकिन इसके उलट यहां नायब सिंह सैनी अपने राजनीतिक गुरु मनोहर लाल खट्टर की कट्टर किसान नीति को सॉफ्ट करते हुए दिखाई दे रहे हैं. अब सवाल ये है कि क्या नायब सिंह सैनी सरकार किसानों के लिए उदार हो गई है या उसकी ये नीतियां चुनावी चाल हैं. या मुख्यमंत्री सैनी वाकई में हरियाणा के एग्री कल्चर को समझते हुए किसानों का हाल समझ रहे हैं.
आज की बात इसी पर...जिसमें जानेंगे खट्टर की कट्टर किसान नीति क्या है. मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने किसानों के लिए कौन सी घोषणाएं की हैं. क्यों उनकी मौजूदा नीतियों को किसानों के लिए उदार माना जा रहा है. इसके मायने क्या हैं.
इस पूरी कहानी में पहले मनोहर लाल खट्टर की कट्टर किसान नीति को डिकोड करते हैं. सीधे शब्दों में कहें तो मनाेहर लाल खट्टर अपने मुख्यमंत्री काल में किसानों के लिए अपनी नीतियों पर कट्टर नजर आए. यानी मुख्यमंत्री रहते हुए मनोहर लाल खट्टर किसानों के सामने अपने फैसलों को लेकर अड़े रहे. इस कारण किसानों और उनके बीच कई बार टकराव हुआ. इसे उदाहरण के तौर पर समझते हैं.
तीन कृषि कानून के खिलाफ शुरू हुए किसान आंदोलन 1 के दौरान आंदोलनकारी किसानों को रोकने के लिए हरियाणा सरकार ने सड़कों पर गड्डे खोद दिए थे. कई जगह कंटीली तारे लगा दी गई. बैरिकेड, वाटर कैनन और पुलिस बल का प्रयोग किया. कुछ इसी तरह की नीतियां किसान आंदोलन 2 में शामिल किसानों को रोकने के लिए भी की गई. नतीजतन किसान अभी पंजाब हरियाणा बॉर्डर पर बैठे हैं.
वहीं बीते साल सूरजमुखी को भावांतर में शामिल करने के विरोध में शुरू हुए किसान आंदोलन को डिरेल करने के लिए खट्टर सरकार ने आक्रमक रूख अपनाया, जिसे किसानों आंदोलन को डिरेल करने का खट्टर सरकार का कट्टर किसान नीति वाला मॉडल माना जाता है.
मुख्यमंत्री रहते हुए मनोहर लाल खट्टर किसानों के साथ टकराव को लेकर सुर्खियों में रहे. तो वहीं उनके राजनीतिक शिष्य मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के फैसले किसान केंद्रित हैं, जिसमें वह किसानों पर मेहराबान नजर आ रहे हैं. किसानों पर नायब सिंह सैनी सरकार की मेहरबानियों को उनके फैसलों से समझते हैं.
असल में किसान MSP गारंटी कानून की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. इस बीच हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार ने सभी 24 फसलाें की MSP पर खरीद की घोषणा की है, जिसे MSP गारंटी के तौर पर पेश किया जा रहा है. इसके साथ ही इसी खरीफ सीजन से प्रति किसान प्रति एकड़ 2 हजार रुपये का बोनस देने की घोषणा भी हरियाणा सरकार ने की है.
वहीं सैनी सरकार ने बीते दिनों ही आबियाना माफी की घोषणा की है, जो किसानों से नहरी पानी की सिंचाई पर लिया जाता था. कुल जमा हरियाणा सरकार इन दिनों किसानों पर मेहरबान है.
मनोहर लाल खट्टर सरकार से उलट नायब सिंह सैनी सरकार किसानों के मुद्दे पर साफ्ट नजर आ रही है. सैनी सरकार की ये घोषणाएं विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हो रही है. क्योंकि राज्य में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं और एक से दो महीने में आचार संहिता लागू हो जानी है. अब सवाल ये है कि क्या हरियाणा की राजनीति में किसान इतने महत्वपूर्ण हैं. क्या सैनी सरकार की ये घोषणाएं चुनाव जीतने की कवायद है या किसानों को लेकर वह गंंभीर हैं.
इसे हरियाणा के एग्री कल्चर और जातियों के स्ट्रक्चर से समझने की कोशिश करते हैं. असल में हरियाणा देश का प्रमुख खेती आधारित राज्य हैं. कहा जाता है कि हरियाणा का कल्चर ही खेती है.इसके पीछे जाति संरचना की भूमिका अहम है. हरियाणा में लगभग 35 फीसदी जाटों (जिसमें 25 फीसदी हिंदू जाट बाकी मुस्लिम, विश्नोई, सिख जाट है) की आबादी है, जो परपरांगत तौर पर किसान कम्युनिटी मानी जाती है. इसके बाद 8 फीसदी सैनी, 6 फीसदी यादव हैं. ये दोनों ही जातियां भी खेती और पशुपालन से जुड़ी हैं. वहीं 6 फीसदी ब्राह्मण, 21 फीसदी एससी, 8 फीसदी पंजाबी, 6 फीसदी वैश्य कम्युनिटी शामिल हैं.
सीधे तौर पर देखा जाए ताे हरियाणा में किसानी से ताल्लुक रखने वाली जातियों की संख्या 50 फीसदी से अधिक है. वहीं 90 सीटों में से 55 से अधिक सीटों पर किसानों का प्रभाव माना जाता है. ऐसे में माना जा रहा कि सैनी सरकार चुनाव जीतने की कवायद करते हुए किसानाें का दिल जीतने की कोशिश कर रही है.