एक गांव ऐसा जहां परिवार के हर मेंबर के नाम पर लगाया जाता है पेड़, वर्षों से चली आ रही परंपरा

एक गांव ऐसा जहां परिवार के हर मेंबर के नाम पर लगाया जाता है पेड़, वर्षों से चली आ रही परंपरा

नांदेड़ के शिंदे परिवार में 30 सदस्य हैं. हर सदस्य के नाम पर फलों के पेड़ लगाए गए हैं. इस परंपरा की शुरुआत अविनाश शिंदे के दादा ने की थी. इस परंपरा को अविनाश शिंदे ने जारी रखा है. अभी तक दो सौ से अधिक अलग-अलग फलों के पेड़ लगाए गए हैं.

नांदेड़ के शिंदे परिवार में 30 लोगों के नाम पर पेड़ लगाए गए हैंनांदेड़ के शिंदे परिवार में 30 लोगों के नाम पर पेड़ लगाए गए हैं
कुअरचंद मंडले
  • NANDED,
  • Jul 04, 2023,
  • Updated Jul 04, 2023, 6:28 PM IST

आपको सुनकर ताज्जुब होगा लेकिन यह सच है. महाराष्ट्र के नांदेड़ में एक गांव ऐसा है जहां एक परिवार के हर सदस्य के नाम से पेड़ लगा है. इस गांव का नाम खैरगांव है जो नांदेड़ के अर्धपुर तहसील में है. यहां एक घर ऐसा है जिसके परिवार के हर सदस्य के नाम से एक पेड़ है. यहां तक कि घर में रखे पालतू कुत्ते के नाम से भी एक पेड़ लगा है. यह कवायद इसलिए की जाती है ताकि पेड़ों की अहमियत का पता चले. इससे लोगों के बीच पेड़ों के प्रति जागरुकता फैलाने में भी मदद मिलती है. यह ऐसा परिवार है जिसमें एक साथ 30 मेंबर रहते हैं और उन सभी मेंबर के नाम से एक-एक पेड़ लगाया गया है. इस परिवार के सभी मेंबर मिलजुल कर खेती करते हैं और इसी से उनका गुजारा होता है. यह परिवार पूरे इलाके में शिंदे परिवार के नाम से मशहूर है.

इस किसान परिवार ने यह मिशाल तब पेश की है जब कई किसान अधिक जमीन पाने के लिए बड़े बांधों को तोड़ रहे हैं. वे बांध पर लगे पेड़ों को भी काट रहे हैं. लेकिन शिंदे परिवार ने बांध पर पेड़ों को काटे बिना फिर से पेड़ लगाने की पूर्वजों की परंपरा को आगे बढ़या है. ऐसा कहा जाता है कि नाम से पौधे लगाने की एक बहुत अच्छी परंपरा है. यह ग्रामीण क्षेत्र की उन्नत कृषि परंपरा है जिसमें परिवार के मेंबर के नाम से एक पेड़ का नाम रखा जाता है. 

शिंदे परिवार की अनोखी पहल

नांदेड़ के अर्धपुर तहसील के खैरगांव में शिंदे परिवार की 30 एकड़ खेत है. इसमें दो कुएं और एक बोरवेल है. कुएं और बोरवेल में भरपूर पानी है. इस 30 एकड़ के खेत में केला, हल्दी जैसी फसलें होती हैं. मुख्य रूप से गन्ना और पपीता की खेती की जाती है. संयुक्त परिवार होने के कारण घर के सभी लोग खेती पर पूरा ध्यान देते हैं. साथ ही वे खेत के काम में मजदूर न लगाकर खुद ही काम करते हैं.

शिंदे परिवार के सभी लोग दिन-रात खेत में काम करते हैं. इस परिवार में कुछ पढ़े-लिखे युवा भी हैं. इनमें एक हैं अविनाश शिंदे जिनकी शिक्षा एम.ए.एम.फिल है. उन्होंने नौकरी की तलाश के बजाय खेती पर ध्यान केंद्रित किया है. इसी तरह कुछ और सदस्य भी हैं जिन्होंने पढ़ने-लिखने के बावजूद खेती को कमाई का जरिया बनाया है और वे अच्छी कमाई भी कर रहे हैं.

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हर मेंबर के नाम पर एक पेड़

अभी शिंदे परिवार में 30 सदस्य हैं. प्रत्येक सदस्य के नाम पर फलों के पेड़ लगाए गए हैं. इस परंपरा की शुरुआत अविनाश शिंदे के दादा ने की थी. इस परंपरा को अविनाश शिंदे ने जारी रखा है. दो सौ से अधिक अलग-अलग फलों के पेड़ लगाए गए हैं. 30 एकड़ जमीन में लड़कों के नाम पर नारियल का पेड़, लड़कियों के नाम पर फनास, पत्नी के नाम पर रामफल और सीताफल, लड़कों के नाम पर आम और परिवार के सदस्य के रूप में पालतू कुत्ते के नाम पर जाम्भूल का पेड़ लगाया गया है.

कुत्ते के नाम पर भी पेड़

बहनों और भतीजियों के नाम पर फलों के पेड़ भी लगाए गए हैं. इन पेड़ों के फल बहनों और भतीजियों को भेजे जाते हैं. फल खाते समय बहनों और भतीजियों को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है. परिवार के सदस्य की तरह उनके पास एक पालतू कुत्ता था. उसकी असामयिक मृत्यु को याद रखने के लिए उसके नाम पर एक बैंगनी रंग का पेड़ लगाया गया है. जिस स्थान पर पालतू कुत्ते का अंतिम संस्कार हुआ था, उसी जगह पर बैंगनी रंग का जाम्भूल का पेड़ लगाया गया है. शिंदे परिवार के दादाजी ने पेड़ लगाने की परंपरा शुरू की थी. यह तीसरी पीढ़ी तक जारी है. अब तक दो सौ से अधिक पेड़ लगाए जा चुके हैं. यह परंपरा जारी रहेगी, ऐसा कहना है परिवार के सदस्यों का.

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