दुनिया में बढ़ती आबादी के बीच भुखमरी की समस्या और मिट्टी का तेजी से बीमार होना गंभीर चिंता की बात है. यह चिंता तब और बढ़ जाती है जब क्लाइमेट चेंज के संकट को इसमें जोड़ देते हैं. ऐसे में इसका समाधान क्या है, इस सवाल पर पूरी दुनिया में रायशुमारी जारी है. इसी सिलसिले में संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) में क्लाइमेट चेंज विभाग के डायरेक्ट कवेह जहेदी ने बड़ी बात कही है. उन्होंने कहा कि इन तमाम समस्याओं को देखते हुए क्लाइमेट फंड का 30 परसेंट हिस्सा कृषि को देना होगा. साथ ही एग्रोफॉरेस्ट्री और टिकाऊ खेती का इनोवेटिव आइडिया इन समस्याओं से निजात दिला सकता है.
'दि न्यू इंडियन एक्सप्रेस' को दिए एक इंटरव्यू में जहेदी कहते हैं, हमें कम संसाधन में अधिक उत्पादन करने की जरूरत है. आज भी लगभग 730 मिलियन लोग भूख से मर रहे हैं. हमारे यहां अभी भी कुपोषण है. हम अभी भी स्टंटिंग (कद छोटा होना, बौनापन) के मामले में सतत विकास लक्ष्य (SDG2) के लक्ष्यों से पीछे हैं. इसलिए, हम जानते हैं कि अभी हम दुनिया भर के लोगों को पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं.
जहेदी आगे कहते हैं, जबकि दुनिया भर में 9 में से 1 व्यक्ति भूख से जूझ रहा है, अफ्रीका में यह दर 5 में से 1 से भी ज़्यादा है. सदी के मध्य तक दुनिया की आबादी 10 अरब लोगों की ओर बढ़ रही है. इसलिए यह वह परिस्थिति है जिसमें हम काम कर रहे हैं. साथ ही, जलवायु परिवर्तन हो रहा है और पहले से ही हमारे कृषि और कृषि पर निर्भर लोगों को प्रभावित कर रहा है. हम सिर्फ़ खाद्य असुरक्षा पर काम नहीं कर सकते और जलवायु (परिवतर्न) को भूल नहीं सकते. हम सिर्फ़ जलवायु पर काम करके खाद्य असुरक्षा को यूं ही नहीं छोड़ सकते. हमें इन दोनों को एक साथ करना होगा.
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जहेदी ने सॉइल डिग्रेडेशन की समस्या पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि सिर्फ़ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में लगभग 30% कृषि भूमि रासायनिक खादों के बहुत अधिक उपयोग और गैर-टिकाऊ खेती के कारण खराब हो गई है. एफएओ भारत सहित सभी विकासशील देशों के साथ उनके कृषि एजेंडे पर काम कर रहा है. कम उत्पादन से ज़्यादा उत्पादन (मोर प्रोडक्शन इन लेस) का मतलब है कि हमें ज़्यादा उत्पादन करना होगा, लेकिन कम खाद, कीटनाशकों के साथ. इसका मतलब है ज़्यादा सटीक खेती की जाए जहां पानी का बेहतर उपयोग हो.
उन्होंने कहा, हमारा संदेश बहुत स्पष्ट है. अगर हम पेरिस समझौते के तहत और राष्ट्रीय स्तर पर 'नेशनली डिटरमाइंड कॉन्ट्रिब्यूशन' यानी कि NDCs के माध्यम से अपने निर्धारित लक्ष्यों को पाना चाहते हैं, तो टिकाऊ खेती में निवेश करना महत्वपूर्ण है. हमें COP29 से और अधिक सहयोग मिलने की जररूत है. जब हम कह रहे हैं कि 30% उत्सर्जन कृषि से आ रहा है, तो कम से कम 30% निवेश कृषि में आना चाहिए.
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