धान... किसानों को धनवान बनाता है. इसके कई कारण हैं और इसी खूबी की वजह से किसानों के बीच धान की खेती बेहद ही लोकप्रिय है. सीधे शब्दों में कहा जाए तो धान की गिनती नगदी फसलों के तौर पर होती है और किसान इसी वजह से धान की खेती पसंद करते हैं, लेकिन इस खरीफ सीजन किसान मन में शंकाओं के साथ धान की खेती कर रहे हैं. किसानों के मन में सवाल ये ही है कि क्या धान इस बार उन्हें धनवान बनाने में समर्थ हो पाएगा. इसकी वजह चावल एक्सपोर्ट पर लगा बैन है.
असल में एक्सपोर्ट बैन की वजह से चावल का बाजार ठंडा पड़ा है. नतीजतन, किसानों को भी पिछले सालों की तुलना में कम दाम मिल रहे हैं. इसी कारण से इस खरीफ सीजन धान की खेती करने वाले कई किसानों के मन में कई सवाल हैं, लेकिन मौजूदा वक्त में जो इशारे मिल रहे हैं, वह इशारे कर रहे हैं चावल एक्सपोर्ट से जल्द ही बैन हट सकता है. ऐसा क्यों इसकी संभावनाओं और इशारों को समझते हैं. साथ ही धान के धनवान बनाने की कहानी पर एक नजर...
धान किसानों को धनवान बनाता है. ये कहानी सिर्फ भारत की नहीं है. बल्कि दुनिया भर की है. धान दुनिया की शीर्ष फसलों में है तो वहीं धान की खपत भी सबसे अधिक होती है. यानी दुनियाभर में धान का मजबूर बाजार है. इसकी एक बानगी ये है कि चीन दुनिया में धान उगाने में अव्वल है, लेकिन इसके बाा भी वह अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए चावल इंपोर्ट करता है.
भारत के संंदर्भ में धान के धनवान बनाने की कहानी को समझें तो देश के अमूमन सभी राज्यों में धान की खेती होती है तो वहीं देश के अधिकांश राज्यों में दोनों सीजन में धान की खेती प्रमुखता से की जाती है. वहीं देश में अन्य फसलों की तुलना में धान की MSP पर खरीद की पुख्ता व्यवस्था है.
वहीं, धान की जो किस्में MSP पर नहीं खरीदी जाती हैं, उन्हें बाजार में बेहतर दाम मिलता है, जो लागत की तुलना में अन्य फसलों से बेहतर होता है. कुल जमा किसानों के लिए धान की खेती फायदेमंद होती है. इसकी वजह ये है कि भारत दुनिया का शीर्ष चावल एक्सपोर्टर है.
मसलन, दुनियाभर में एक्सपोर्ट किए जाने वाले चावल में भारतीय चावल की अकेले हिस्सेदारी 40 फीसदी से अधिक है, इसमें सफेद चावल की हिस्सेदारी 25 फीसदी से अधिक है. यानी भारतीय चावल की दुनियाभर में मांग है और ये मांग एक बड़ा बाजार पैदा करती है. इस वजह से किसानों को उनकी उपज के बेहतर मांग मिलते हैं, लेकिन फिलहाल चावल एक्सपोर्ट बैन ने किसानों की मुश्किलें बढ़ाई हुई हैं.
भारत सरकार ने बीते साल 20 जुलाई यानी 20 जुलाई 2023 को चावल एक्सपोर्ट बैन पर लगा दिया था. यहां पर ये स्पष्ट करना जरूरी है कि चावल की चार वैरायटी हैं. जिसमें सफेद यानी गैरबासमती चावल, बासमती चावल, ऊसना चावल और टूटा चावल है. 20 जुलाई को सफेद चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लगाया गया था.
टूटे चावल एक्सपोर्ट में सितंबर 2022 से बैन है. वहीं ऊसर चावल एक्सपोर्टर पर 20 फीसदी ड्यूटी लगी हुई है. सिर्फ बासमती चावल एक्सपोर्ट ही खुला है. हालांकि विशेष मंजूरी के तहत कुछ देशों को चावल एक्सपोर्ट किया गया है. केंद्र सरकार ने चावल के घरेलू दामों को नियंत्रित करने के लिए ये फैसला लिया था.
चावल एक्सपोर्ट से बैन हटने की संभावनाएं बन रही हैं. इसकाे लेकर नीति आयोग में सदस्य (कृषि) प्रो रमेश चंद भी पैरवी कर चुके हैं. अंग्रेजी अखबार लाइव मिंट की रिपोर्ट के अनुसार प्रो रमेश चंद ने कहा है कि '' मुझे लगता है कि चावल की आपूर्ति चिंताजनक नहीं है. हमारे पास चावल का बेहतर स्टॉक है. धान की खेती का रकबा पिछले साल की तुलना में अधिक है. ऐसे में बेहतर फसल की उम्मीद है. अगर ऐसे में एक्सपोर्ट से बैन हटता है तो चावल की घरेलू सप्लाई में कोई खतरा या चुनौती नहीं होगी.
चावल एक्सपोर्ट बैन हटाने के लिए नीति आयोग के सदस्य प्रो रमेश चंद धान की खेती के रकबे में हुई बढ़ोतरी कk हवाला दे रहे हैं. उसे आंकड़ों से समझते हैं. असल में इस खरीफ सीजन में धान बुवाई का रकबा पिछले साल की तुलना में अधिक है. अभी देश में धान की रोपाई चल ही रही है, लेकिन इस बीच धान के रकबे ने पिछले साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.
केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार 2 अगस्त तक देश के 276.91 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की रोपाई/बुवाई हो चुकी है, जबकि पिछले साल इसी समय तक 263.01 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की बुवाई/रोपाई हुई थी. यानी पिछले साल की तुलना में इस समय तक 13.90 लाख हेक्टेयर में धान की खेती अधिक हुई है, जबकि अभी एक महीने धान रोपाई का सीजन और है.
दूसरी तरफ देश का चावल भंडार भी चावल एक्सपाेर्ट से बैन हटाए जाने का ठोस पैरवी कर रहा है. यानी भारत सरकार ने बीते साल देश में चावल संकट को देखते हुए चावल एक्सपोर्ट पर बैन लगाया था, लेकिन मौजूदा वक्त में देश का चावल भंडार भरा हुआ है.
आंकड़ों में समझें तो एक जुलाई 2024 को FCI और राज्य एजेंसियों के पास 326.14 लाख टन चावल का स्टॉक था, जबकि बफर स्टॉक के लिए 1 जुलाई को 135.40 लाख टन चावल की जरूरत होती है. यानी देश के अनाज भंडार में बफर स्टॉक से लगभग 190 लाख टन चावल अधिक है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए 1 अगस्त से भारत सरकार ने अनाज की कमी से जूझ रहे राज्यों से 2800 रुपये क्विंटल पर धान खरीदने का ऑफर दिया है.