अंगूर की किस्म का फैसला करना कोई आसान चीज नहीं है. चुनी जाने वाली उगाने की विधि, हमारे क्षेत्र में उगने वाली अंगूर की किस्मों पर विचार करना बहुत महत्वपूर्ण होता है और साथ ही आपको यह भी विचार करना पड़ता है कि हमारी चुनी गई किस्म से अच्छा उत्पादन और गुणवत्ता दोनों मिलेगा या नहीं. ऐसे में अंगूर की खेती करने वाले किसानों को अंगूर के सही किस्मों का चयन करना जरूरी हो जाता है.अंगूर के पौधे लगाने की दो विधियां हैं पहला ऑटोजेनस पौधे उगाना या ग्राफ्टेड कटिंग लगाना. किसी भी मामले में, प्रत्येक किस्म की अपनी एक अलग विशेष गुणवत्ता और विशेषताएं होती हैं. महाराष्ट्र के नासिक जिले में अंगूर की सबसे ज्यादा खेती की जाती हैं यहां के किसान अंगूर के थॉम्पसन सीडलेस नाम किस्म का सबसे अधिक उपयोग करते हैं. आज हम आपको अंगूर की ऐसी ही 6 किस्मों के बारे में बताएंगे जिसे आपको अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों मिलेगा.
अंगरु का कैलिफोर्निया से आयातित किस्म है जिसे आंकलन के बाद व्यवसायिक स्तर पर उत्तरी भारत में उगाने के लिए सिफारिश की गई. यह एक शीघ्र पकने वाली किस्म है. इसके गुच्छे मध्यम आकार, दाने सरस, छोटे या मध्यम आकार के होते हैं. गूदा मुलायम और हल्का अम्लीय होता है. इस किस्म में कुल घुलनशील शर्करा 18 से 19 प्रतिशत है. यह किस्म मध्य जून तक पकती है तत्काल खाने या पेय बनाने के लिए उपयुक्त किस्म मे से एक है.
इस किस्म की म्यूटेंट टास-ए-गणेश, सोनाका और माणिक चमन हैं. इस किस्म महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में उगाई जाती है. इसे व्यापक रूप से बीजरहित, इलपसोडियल लंबी, मध्यम त्वचा वाली सुनहरी-पीली बेरियों के रूप में अपनाया जाता है. इसका जूस 20-22% टीएसएस सहित मीठा और भूसे रंग वाला होता है. यह किस्म अच्छी क्वालिटी की होती है और इसका उपयोग टेबल प्रयोजन और किशमिश बनाने के लिए किया जाता है.औसतन पैदावार 20-25 टन है. इस किस्म की खेती ज्यादतर महाराष्ट्र में की जाती हैं.
यह भी कैलिफोर्निया से आयातित किस्म है. वर्तमान समय में उत्तर भारत में करीब 80 प्रतिशत क्षेत्रफल अकेले इस किस्म के अधीन है. यह एक बीज रहित, शीघ्र पकने वाली किस्म है. इसके गुच्छे मध्यम से लम्बे, दाने सरस, हरे, मुलायम गूदा व पतले छिलका वाला होता है. इस किस्म के फलों में कुल घुलनशील शर्करा 20 से 22 प्रतिशत तक पाई जाती है. यह किस्म जून के दूसरे सप्ताह में पकना शुरू होती है. औसतन पैदावार 35 टन प्रति हेक्टेयर है.
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यह एक थॉमसन सीडलेस किस्म से चयनित किस्म (क्लोन) है. यह जून के मध्य से तीसरे सप्ताह तक पकती है. गुच्छे मध्यम, लम्बे, बेलनाकार, सुगंधयुक्त और गठे हुए होते हैं. फल छोटे व अण्डाकार होते हैं और पकने पर पीले सुनहरे रंग के हो जाते हैं. फल खाने तथा किशमिश बनाने के योग्य होते हैं.
यह अंगूर की किस्म आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और कर्नाटक राज्यों में उगाई जाती है. यह व्यापक रूप से विभिन्न कृषि जलवायु स्थितियों के लिए अनुकूल है. यह किस्म देर से परिपक्व होने वाली तथा अच्छी उपज देने वाली है. बेरियां (फल) जब पूरी तरह से परिपक्व हो जाती है, तो ये लम्बी व मध्यम लंबी, बीज वाली और एम्बर रंग की हो जाती है. इसका जूस साफ और 14 से 16 प्रतिशत टी एस एस सहित मीठा होता है. यह कोमल फफूंदी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है. औसतन उपज 35 टन प्रति हेक्टेयर है. फल बहुत अच्छी क्वालिटी वाला होता है.
यह अंगूर की किस्म कर्नाटक में उगाई जाती है. बेरियां (फल) पतली त्वचा वाली छोटी आकार की, गहरे बैंगनी, अंडाकार तथा बीजदार वाली होती है इसका रस बैंगनी रंग वाला, साफ और आनन्दमयी सुगंधित 16 से 18 प्रतिशत टी एस एस वाला होता है. फल अच्छी क्वालिटी का होता है और इसका उपयोग मुख्यत जूस तथा मदिरा बनाने में होता है. यह एन्थराकनोज से प्रतिरोधी है, लेकिन कोमल फफूंदी के प्रति अतिसंवेदनशील है.