हिंदू धर्म में दिवाली के पर्व का खास महत्व होता है. दीपोत्सव का यह पर्व हर साल कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है. पूरे भारत में इस पर्व का अलग ही उत्साह देखने को मिलता है. इस दिन पूरा देश दीये की रोशनी से जगमगा उठता है. हिंदू धर्म में दिवाली को सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला त्योहार माना जाता है. इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी और सुख-समृद्धि के देवता भगवान गणेश की पूजा की जाती है. दीपोत्सव का यह पर्व पूरे पांच दिनों तक चलता है. पर क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा गांव है जहां दो महीने तक मनाई जाती है दिवाली.
मान्यता है कि दिवाली के दिन ही प्रभु श्रीराम लंकापति रावण को हरा कर अयोध्या लौटे थे. 14 वर्ष का वनवास पूरा कर भगवान राम के लौटने की खुशी में अयोध्या वासियों ने पूरे अयोध्या को दीयों की रोशनी से सजा दिया था. तभी से पूरे देश में दिवाली मनाई जाती है. वहीं इस साल 12 नवंबर को दिवाली मनाई जा रही है.
मध्य प्रदेश के डही अंचल के आदिवासी समाज में दिवाली मनाने की एक अलग तरह की परंपरा आज भी कायम है. देश भर में दिवाली के पर्व लोग निर्धारित समय पर दीपोत्सलव मनाते हैं, लेकिन इस क्षेत्र के 62 आदिवासी बहुल गांव के लोग वर्षों पुरानी परंपरानुसार ही दिवाली का पर्व मनाते हैं.
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इस क्षेत्र में खेती, किसानी के कामकाज खत्म होने के बाद ही दिवाली का पर्व मनाया जाता है. इन 62 गांव में एक या दो दिन नहीं बल्कि दो माहीने तक दिवाली मनाई जाती है. इसके लिए किसी एक तारीख का निर्धारण नहीं होता है. बल्कि अलग-अलग तारीखों के अनुसार गांव के (मुखिया) जैसा कहेंगे उसके अनुसार ही पर्व मनाया जाता है.
इन गांव के आदिवासी समाज के लोग इस पर्व पर पशुधन पूजा को काफी महत्व देते हैं, जिसके चलते पशुधन की पूजा की जाती है. इसमें मिट्टी से बने घोड़े, ढाबे और माझली को आदिवासी लोग कुम्हारों से खरीदते हैं और इन्हें पशु बांधने के स्थान पर गाय, बैल, भैंस के सामने रखकर इनकी पूजा करते हैं. इस दौरान पशुओं को खूब सजाया जाता है. हर घर में पकवान बनते हैं और इष्ट देवताओं को इनका भोग लगाया जाता है. घर के सभी सदस्य और रिश्तेदार एक साथ बैठकर पकवान खाते हैं और नाच-गाकर दिवाली का लुत्फ उठाते हैं.