पुराने समय से खेती-किसानी में ट्रैक्टर, थ्रेसर समेत कई तत्कालीन आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता रहा है. अब समय के बदलाव के साथ ही कृषि क्षेत्र में मॉडर्न तकनीक के इस्तेमाल की जरूरत और भी ज्यादा बढ़ गई है. इसको देखते हुए तेजी से खेती-किसानी में आधुनिक उपकरणों और तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसी कड़ी का हिस्सा एग्रीकल्चर ड्रोन भी है. बीते कुछ साल में केंद्र सरकार ने एग्रीकल्चर ड्रोन के इस्तेमाल पर जोर दिया है. क्योंकि, इससे खेती की लागत घटने के साथ ही समय की बचत भी होती है और उपज की क्वालिटी को बेहतर करने में भी मदद मिलती है. इससे किसानों को ज्यादा उपज के साथ उसकी अच्छी कीमत मिलने का रास्ता भी साफ हुआ है.
यही वजह है कि सरकारी संस्थाएं और निजी कंपनियां ड्रोन के साथ ही दूसरे कृषि उपकरणों के साथ बाजार में तेजी से उतर गई हैं. एग्रीकल्चर ड्रोन के इस्तेमाल और इसकी उपयोगिता को देखते हुए ड्रोन ट्रेनिंग के साथ ही कई पाठ्यक्रम भी शुरू किए गए हैं. राजस्थान सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार समेत कई राज्य सरकारें, कृषि विश्वविद्यालय और केंद्रीय संस्थान युवाओं को एग्री ड्रोन की ट्रेनिंग और पढ़ाई करा रहे हैं.
चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय यानी सीएसए (Chandra Shekhar Azad University of Agriculture) कानपुर के प्रोफेसर डॉक्टर सीएल मौर्या ने 'किसान तक' को बताया कि एग्रीकल्चर ड्रोन आज के समय में खेती में बेहद मददगार है. इसके इस्तेमाल से किसान की लागत घटेगी और मुनाफा बढ़ेगा. उन्होंने कहा कि ड्रोन के जरिए खेती में अभी मुख्य रूप से दो काम किए जा रहे हैं. पहला फसल पर दवाओं या उर्वरक का छिड़काव और दूसरा सॉइल मैपिंग. किसानों के लिए सॉइल मैपिंग करना एग्री ड्रोन की वजह से काफी आसान हो गया है. जबकि, दवाइयों या उर्वरकों के छिड़काव में लगने वाले इनपुट, लेबर और लगने वाले समय में कमी आई है.
डॉक्टर सीएल मौर्या ने कहा कि मैनुअल तरीके से 1 एकड़ खेत में दवा या उर्वरक के छिड़काव के लिए 3-4 से आदमी की जरूरत होती है और इसमें कई घंटे का समय भी लगता है. उर्वरक और दवा की जरूरत भी ज्यादा पड़ती है और इसका नुकसान भी होता है. जबकि, एक एकड़ में ड्रोन से 20 मिनट के अंदर दवा या उर्वरक का छिड़काव किया जा सकता है और 3-4 लेबर आदमी की जगह केवल एक व्यक्ति की जरूरत पड़ती है. इससे लेबर खर्च तो घटता ही है, समय भी बचता है और दवा-उर्वरक बर्बाद नहीं होने से इसकी मात्रा भी कम लगती है.
उन्होंने कहा कि सीएसए कृषि विश्वविद्यालय (Chandra Shekhar Azad University of Agriculture) एग्रीकल्चर ड्रोन ट्रेनिंग की कोर्स की शुरुआत कर रहा है. यह अभी शुरूआती चरण में है. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में 7 दिन की अवधि का ड्रोन ट्रेनिंग कोर्स शुरू हो रहा है. जिसमें 10वीं पास छात्र प्रवेश ले सकेंगे. इसके अलावा किसान, एफपीओ या कृषि से जुड़े कुछ संगठन के लोग भी ट्रेनिंग ले सकेंगे. ट्रेनिंग की फीस डीजीसीए की ओर से 65000 रुपये फीस निर्धारित है. इसमें 50 फीसदी छूट राज्य सरकार की ओर से दी जाएगी, इसको लेकर प्रस्ताव भेजा गया है. विश्वविद्यालय में ड्रोन ट्रेनिंग दिलाई जाएगी और दो कृषि विज्ञान केंद्रों को भी 2-2 ड्रोन दिए गए जहां ट्रेनिंग दी जाएगी. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मिलने वाला सर्टिफिकेट लाइसेंस के रूप में भी काम करेगा.
राजस्थान सरकार ने राज्य में हाइटेक कृषि को बढ़ावा देने के लिए 10वीं पास लोगों को कृषि विभाग की ओर से ड्रोन पायलट (Drone Pilot) की ट्रेनिंग शुरू करने का निर्णय लिया है. राज्य के कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर (SKN AGRICULTURE UNIVERSITY JOBNER) में 6 दिन की आवासीय ड्रोन ट्रेनिंग दी जाएगी. ट्रेनिंग पाने वाले आवेदक के लिए 50,000 रुपये फीस निर्धारित की गई है. इस फीस पर सरकार का छूट दे रही है, जिसके बाद आवेदक को ड्रोन उड़ाने की ट्रेनिंग के लिए सिर्फ 9,300 रुपये फीस के रूप में लिए जाएंगे. इसमें से 5,000 रुपये ट्रेनिंग के लिए होंगे 4,300 रुपये आवास व खाने के लिए होंगे. इच्छुक आवेदक ऑनलाइन राज किसान साथी पोर्टल या राज किसान सुविधा ऐप के जरिए आवेदन कर सकते हैं. जबकि, ऑफलाइन अपने जिले के कृषि विभाग या सीधे कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय में आवेदन कर सकते हैं.