गन्ने के रस से इथेनॉल बनाना अब आम बात है. इसके लिए सरकार ने स्कीम शुरू की है. चीनी मिलों को इस स्कीम का लाभ मिलता है. लेकिन क्या आपको पता है कि किस विधि और किस तरीके से इथेनॉल बनता है?
आने वाले दिनों में इथेनॉल का इस्तेमाल बढ़ने वाला है. उसका ईंधन के रूप में प्रयोग बढ़ेगा. धीरे-धीरे इसमें तेजी भी देखी जा रही है. तेलों के आयात बिल को देखते हुए सरकार इथेनॉल को बढ़ावा दे रही है.
भारत में गन्ने का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है. यही वजह है कि सरकार इसके रस से इथेनॉल बनाने पर जोर दे रही है. सरकार की यह कोशिश रंग लाती दिख रही है क्योंकि दिनों दिन इसके उत्पादन में बढ़ोतरी है.
ऐसे में आपको जानना जरूरी है कि गन्ने के रस से इथेनॉल कैसे बनता है. दरअसल, इथेनॉल में सुक्रोज होता है जिसे फरमेंटेशन विधि से इथेनॉल में बदला जाता है. लेकिन उसके पहले उसे कई चरण से गुजरना होता है.
सबसे पहले गन्ने की पेराई कर उससे रस निकाला जाता है. फिर उस जूस को फरमेंटेशन टैंक में जमा किया जाता है. इस टैंक में यीस्ट की मदद से गन्ने के रस का फरमेंटेशन होता है जिससे इथेनॉल बनता है. फिर इसी इथेनॉल का इस्तेमाल ईंधन के रूप में होता है.
गन्ने की पेराई के बाद बची खोई को बगासे (bagasse) कहते हैं. इस बगासे को जलाकर हीट पैदा की जाती है जिसकी ऊर्जा से इथेनॉल बनाने वाली मशीन चलती है. इसी बगासे को आम बोलचाल में खोई बोलते हैं. इसी ऊर्जा का इस्तेमाल फैक्ट्री का बॉयलर, हीट या स्टीम या इलेक्ट्रीसिटी जनरेशन में किया जाता है.
अंत में इथेनॉल बनने के बाद उसे डिस्टिलेशन में ले जाया जाता है. फिर इस प्रोसेस से एनहाइड्रस इथेनॉल बनता है. इसी प्रोसेस से विनासे भी निकलता है. बगासे जहां सॉलिड कचरा होता है, वहीं विनासे लिक्विड कचरा. हालांकि दोनों का प्रयोग बहुत है. विनासे (vinasse) में नाइट्रोजन और ऑर्गेनिक कंटेंट ज्यादा होता है.