गन्ना उत्पादन में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर आता है और इसका ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अहम योगदान है. कपास उद्योग के बाद, गन्ना दूसरा सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग है. गन्ना और चीनी उद्योग न केवल किसानों की आमदनी में सुधार करता है बल्कि रोजगार के अवसर भी प्रदान करता है. उत्तर भारत में गन्ने की खेती मुख्य रूप से बसंतकालीन और शरदकालीन सीज़न में होती है. शरदकालीन गन्ने की बुवाई का समय सितंबर के अंतिम पखवाड़े से लेकर अक्टूबर तक होता है. हालांकि, शरदकालीन गन्ने की खेती बसंतकालीन गन्ने की तुलना में लगभग 20 फीसदी अधिक उत्पादन देती है, इसलिए किसानों को अक्टूबर में गन्ने की बुवाई कर लेनी चाहिए.
शरदकालीन गन्ने की बुवाई के लिए 15 सितंबर से अक्टूबर तक का समय सबसे बेहतर माना जाता है. सितम्बर में जब वर्षा समाप्त हो जाती है और ठंड शुरू हो रही होती है, तो उस वक्त गन्ने का बुवाई कार्य शुरू कर देना चाहिए. इससे गन्ने की अच्छी वढ़वार के साथ बेहतर उपज मिलती है. लेकिन गन्ने की बुवाई के लिए गन्ने के बीज का चुनाव और सही तरीके से बुवाई करना जरूरी होता है.
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शरदकालीन गन्ने की बुवाई से पहले सही बीज और क्षेत्र के अनुसार गन्ने की किस्मों का चयन जरूरी है. गन्ने के बीज को गन्ना संस्थान या गन्ना मिलों के फार्म से लेना चाहिए और कभी भी पेड़ी गन्ने की फसल को बीज के रूप में प्रयोग नहीं करना चाहिए. बीज के लिए गन्ने की पौध कम से कम 7 से 9 महीने पुरानी होनी चाहिए. गन्ने का ऊपरी एक-तिहाई भाग बीज के लिए सबसे बेहतर होता है और जड़ वाले हिस्से को बीज के लिए नहीं लेना चाहिए. बीज के लिए चयन किए गए गन्ने की पौध में कम से कम 10-12 कलियां होनी चाहिए. बीज रोगमुक्त होना चाहिए, खासकर "लाल सड़न रोग" से, जिसे "गन्ने का कैंसर" भी कहा जाता है. यह रोग गन्ने के बीज या मिट्टी से फैलता है और एक बार संक्रमित होने पर इसका कोई उपचार नहीं होता. इसलिए, हमेशा स्वस्थ और रोगमुक्त खेत से ही बीज लेना चाहिए.
गन्ने की बुवाई से पहले बीज के लिए गन्ने को सीधे काटना चाहिए और उसकी पत्तियों को हटा देना चाहिए. लाल सड़न रोग से बचने के लिए गन्ने के टुकड़ों को फफूंदनाशक दवाओं जैसे थायोफिनेट, हेक्साकोनाजोल, बाविस्टीन, या प्रोपिकोनाजोल के घोल में रातभर भिगोकर रखना चाहिए. इन दवाओं में से किसी एक को 1 ग्राम की मात्रा में 1 लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए. हालांकि, बड चीप विधि से तैयार नर्सरी पौध का उपयोग भी किया जा सकता है, जिससे बीज की खपत में कमी आती है. इस विधि में एक एकड़ के लिए केवल 80 से 100 किलो गन्ना बीज की जरूरत होती है, जबकि पुरानी विधि में 25 से 30 क्विंटल बीज की जरूरत होती थी. इस विधि से तैयार पौधे स्वस्थ होते हैं और रोगों का प्रकोप कम होता है. इस तकनीक से बोई गन्ने की फसल से उच्च गुणवत्ता वाली और अधिक उपज प्राप्त होती है.
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गन्ने की खेती में कई प्रकार की बुवाई तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि कम वर्षा वाले क्षेत्रों में समतल क्यारियों की विधि, जो सरल और किफायती मानी जाती है. इसमें 75-90 सेमी की दूरी पर उथली नालियां बनाकर गन्ने की बुवाई की जाती है. मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों में रिज फरो विधि से बुवाई की जाती है, जिसमें 80-100 सेमी की दूरी पर और 20-25 सेमी गहराई में बुवाई की जाती है. बुवाई से पहले खेत की जुताई 10-12 इंच गहराई तक करनी चाहिए, और बाद में कल्टीवेटर से 4-5 जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा किया जाता है. इसके बाद गन्ने की बुवाई की जाती है. इस प्रकार, सही बीज, उन्नत तकनीकों और उपयुक्त बुवाई विधियों का पालन करके शरदकालीन गन्ने की खेती से उच्च गुणवत्ता और बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है.