गेहूं की फसल पर रोग और कीटों का बहुत प्रभाव देखा जाता है. इससे उपज की भी हानि होती है और उत्पादन गिरता है. इन बातों को ध्यान में रखते हुए हम यहां गेहूं के 5 रोग और कीटों के बारे में बता रहे हैं. साथ ही इससे बचने के उपाय में भी बता रहे हैं.
दीमक सफेद मटमैले रंग का बहुभक्षी कीट है जो कॉलोनी बनाकर रहता है. श्रमिक कीट पंखहीन छोटे और पीले/सफेद रंग के होते हैं और कॉलोनी के लिए सभी काम करते हैं. बलुई दोमट मिट्टी, सूखे की स्थिति में दीमक के प्रकोप की संभावना रहती है. श्रमिक कीट जम रहे बीजों को और पौधों की जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं. ये पौधों को रात में जमीन की सतह से भी काटकर हानि पहुंचाते हैं. प्रभावित पौधे अनियमित आकार में कुतरे हुए दिखाई देते हैं.
रोकथाम
खेत में कच्चे गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए. फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए. नीम की खली 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पहले खेत में मिलाने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है. भूमि शोधन के लिए विवेरिया बैसियाना 2.5 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से 50-60 किलो अधसड़े गोबर में मिलाकर 8-10 दिन रखने के बाद प्रभावित खेत में प्रयोग करना चाहिए. खड़ी फसल में प्रकोप होने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 2.5 ली प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें.
यह पंखहीन या पंखयुक्त हरे रंग के चुभाने और चूसने वाले मुखांग वाले छोटे कीट होते हैं. कीट के बच्चे और प्रौढ़ पत्तियों और बालियों से रस चूसते हैं और मधुश्राव भी करते हैं जिससे काले कवक का प्रकोप हो जाता है. इससे प्रकाश संश्लेषण क्रिया बाधित होती है.
रोकथाम
गर्मी में गहरी जुताई करनी चाहिए. समय से बुवाई करें. खेत की निगरानी करते रहना चाहिए. 5 गंधपाश (फेरोमैन ट्रैप) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.
रसायनिक नियंत्रण
रसायनिक नियंत्रण के लिए निम्नलिखित कीटनाशकों में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए.
एजाडिरैक्टिन (नीम आयल) 0.15 प्रतिशत ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. मिथाइल-ओ-डेमेटान 25 प्रतिशत ईसी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. मोनोक्रोटोफास 36 एसएल 750 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से से 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
इस रोग की प्रारंभिक अवस्था में पीले और भूरापन लिए हुए अंडाकार धब्बे नीचे की पत्तियों पर दिखाई देते हैं. बाद में धब्बों का किनारा कत्थई रंग का और बीच में हल्के भूरे रंग का हो जाता है.
रोकथाम
रोग के नियंत्रण के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लूपी 700 ग्राम या जीरम 80 प्रतिशत डब्लूपी की 2.0 किग्रा अथवा मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लूपी की 2.0 किग्रा अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लूपी की 2.0 किग्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
इस रोग में दाने आंशिक रूप से काले चूर्ण में बदल जाते हैं. यह रोग संक्रमित/दूषित बीज और भूमि के जरिये फैलता है.
रोकथाम
बायोपेस्टीसाइड, ट्राइकोडरमा 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर 60-75 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर हल्के पानी का छिटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के बाद बुवाई से पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिलाकर भूमिशोधन करना चाहिए. इस रोग के नियंत्रण के लिए थिरम 75 प्रतिशत डीएस/डब्लूएस की 2.5 ग्राम अथवा कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत डब्लूपी की 2.5 ग्राम अथवा कार्बाक्सिन 75 प्रतिशत डब्लूपी की 2.0 ग्राम अथवा टेबूकोनाजोल 2.0 प्रतिशत डीएस की 1.0 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से बीजशोधन कर बुवाई करना चाहिए. खड़ी फसल में नियंत्रण के लिए प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी की 500 मिली प्रति हेक्टेयर लगभग 750 ली पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
इस रोग में बीमार पौधों की पत्तियां मुड़ कर सिकुड़ जाती हैं. प्रकोपित पौधे बौने रह जाते हैं और उनमें स्वस्थ पौधे की अपेक्षा अधिक शाखाएं निकलती हैं. रोग ग्रस्त बालियां छोटी और फैली हुई होती हैं और इनमें अनाज की जगह भूरे या काली रंग की गांठें बन जाती हैं जिनमें सूत्रकृमि पाए जाते हैं.
रोकथाम
इस रोग के नियंत्रण के लिए बीज को कुछ समय के लिए 2.0 प्रतिशत नमक के घोल में डूबोएं (200 ग्राम नमक को 10 लीटर पानी में घोलें) जिससे सेहूं ग्रसित बीज हल्का होने के बाद तैरने लगता है. ऐसे बीजों को निकालकर नष्ट कर देने चाहिए. नमक के घोल मे डुबोए हुए बीजों को बाद में साफ पानी से 2-3 बार धोकर सूखा लेने के बाद बोने के काम में लाना चाहिए. सूत्रकृमि के नियंत्रण के लिए कार्बोफ्यूरान 3 जी 10-15 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.