मूंगफली प्रमुख तिलहनी फसल है. इसका दाम इस समय 10 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है. ऐसे में मूंगफली की खेती का खास ध्यान रखना जरूरी है. खासतौर पर इसमें लगने वाले रोगों के प्रबंधन को लेकर. मूंगफली की फसल कई तरह की फफूंद, जीवाणु,उकठा रोग और विषाणुजनित रोगों से प्रभावित होती है. ये फसल के अंकुरण से लेकर कटाई तक फसल को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि, सही समय पर पहचाने गए लक्षणों और खेत में बुवाई से पहले किए गए कार्यों जैसे खाद, दवाई का छिड़काव और बीज उपचार द्वारा फसल में रोग के नियंत्रण में मदद मिलती है. इससे आपकी फसल समय रहते बच सकती है.
मूंगफली की खेती में लगने वाला एक मुख्य रोग जड़ गलन है. यह बीज और मृदाजनित फफूंद (एसपर्जिलस नाइजर) से होने वाला मूंगफली का सबसे घातक रोग माना जाता है. इस रोग का प्रकोप गर्म और शुष्क मौसम तथा रेतीली या दोमट मिट्टी वाले क्षेत्रों में बहुत अधिक होता है. इस रोग के कारण भूमि की सतह के पास तने और जड़ पर गहरे भूरे से काले रंग के धब्बे बन जाते हैं. सूखे भाग पर काली फफूंद दिखाई देती है और बाद में रोगग्रस्त तना गलने से पौधा सूख जाता है. रोगग्रस्त पौधों को यदि उखाड़ा जाए तो जड़ें आमतौर पर टूटकर भूमि में ही रह जाती हैं.
मूंगफली में सबसे खतरनाक उकठा रोग है जो सितंबर से जनवरी माह के या पौधों में फूल लगने के समय पर अधिक देखा जाता है. रोग के कारण जड़े सड़ कर गहरे काले रंग की हो जाती हैं और जड़ों से लेकर तने की ऊंचाई तक काली धारियां पड़ने लगती हैं. बड़ी फसल में पीले पड़ते पत्ते रोग के आम लक्षण हैं, जिससे बचने के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों की खेती या बीज उपचार जैसे तरीकों को अपनाया जा सकता है. इसके अलावा रोग के नियंत्रण के नीचे कुछ उपाय दिए गए हैं, जिन्हें आप फसल में रोग नियंत्रण के लिए प्रयोग में ला सकते हैं.
बीजों को उपचारित करने के उपरांत ही बुवाई के लिए प्रयोग करें. बीजों को उपचारित करने के लिए कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. की 2 ग्राम मात्रा का प्रयोग प्रति किलोग्राम बीज की दर से करें. 0.24 ग्राम टेबूकोनाज़ोल 5.4% एफ एस प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से इस्तेमाल करें. अमोनियम नाइट्रेट युक्त खाद के स्थान पर पोटेशियम खाद का प्रयोग करें.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार खेत में पिछले मौसम के संक्रमित फसल के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए. गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करके खुला छोड़ना चाहिए. मूंगफली की कॉलर रॉट रोग प्रतिरोधी किस्मों यथा आरजी-510 आदि का चयन करें. बीजों को बुआई से पूर्व 3 ग्राम थीरम 2 ग्राम मैन्कोजेब या 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करने से इस रोग से काफी हद तक बचा जा सकता है.
यह मूंगफली का एक विषाणुजनित रोग है. इस रोग के कारण पौधा गुच्छे के रूप में दिखने लगता है. इससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है. इस रोग की अधिक आक्रामक अवस्था में जगह-जगह तथा बाद में पूरा खेत ही खाली हो जाता है.
उचित समय पर (जून के प्रथम पखवाड़े में) बुआई करने से इस रोग का प्रकोप कम होता है. रोग ग्रसित क्षेत्र में बाजरे की बुआई 100 किग्रा प्रति हैक्टर की दर से करें व 15 दिनों बाद बाजरे को पलटकर मूंगफली की बुआई करें. इससे इस रोग में 90 प्रतिशत की कमी (जल्दी व समय पर बुआई होने की स्थिति में) आंकी गई है. इसके अलावा, बुआई के समय ब्लाइटॉक्स 50 प्रतिशत डस्ट को 10 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से डालने पर रोग कम लगता है.
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