लहसुन की खेती करने वाले किसान कई बार शिकायत करते हैं कि उनके लहसुन की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. लहसुन में पीलापन का कारण एवं नियंत्रण की सही जानकारी नहीं मिलने के कारण किसानों को इस समस्या से निजात पाने में बहुत कठिनाई होती है. इसके चलते उन्हें अच्छा उत्पादन और मुनाफा नहीं मिल पता है. जिससे उनकी मेहनत का अच्छा फायदा नहीं मिल पाता. कई जगहों पर मौसम में परिवर्तन के कारण लहसुन में भयंकर पीलापन देखने को मिल रहा है. पौधों की पत्तियां एक से दो इंच ऊपर से सूख रही हैं. इस समस्या से अधिकांश जगहों पर किसान परेशान हैं. इस समय लहसुन बहुत महंगे रेट पर बिक रहा है, इसलिए किसान ध्यान नहीं देंगे तो उनका काफी नुकसान हो जाएगा.
लहसुन में पीलापन आने का मुख्य कारण मौसम का परिवर्तन होता है. ऐसे मौसम में जब रात में ठंड अधिक बढ़ जाती है और दिन में तेज धूप होने के कारण गर्मी रहती है. इसलिए पौधे तनाव में आ जाते हैं. जिससे उसमें भयंकर पीलापन आ जाता है. उसकी पत्तियां धीरे-धीरे सूखने लगती हैं. इस समस्या का आना आप सर्द-गर्म के कारण भी बोल सकते हैं. अगर आपके लहसुन की फसल में ऊपर की तीन चार पत्तियों को छोड़कर नीचे की पत्तियां सूखी हुई हैं तो यह मौसम के कारण हुआ है. अगर ऊपर की मुख्य पत्तियां भी सूखी हुई हैं तो यह किसी फंगस जनित रोग भी हो सकता है. ऐसे में किसानों के फसलों के उपर ध्यान देना आवश्यक हो जाता है.
ये भी पढ़ें: Onion Price: किसान ने 443 किलो प्याज बेचा, 565 रुपये घर से लगाने पड़े, निर्यात बंदी ने किया बेहाल
लहसुन में नाइट्रोजन की मात्रा की पूरी करने के लिए प्रति एकड़ भूमि में 1 किलोग्राम एन.पी. के 19:19:19 का प्रयोग करें. इसके अलावा आप उचित मात्रा में यूरिया का छिड़काव कर के भी नाइट्रोजन की कमी पूरी कर सकते हैं. लहसुन को नियमित रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि इसमें ज़्यादा पानी न डालें. बहुत अधिक पानी के कारण पत्तियां पीली होकर मुरझा सकती हैं. अपने लहसुन को गहराई से और कभी-कभार पानी देना सुनिश्चित करें. पानी देने के बीच मिट्टी को थोड़ा सूखने दें.
थ्रिप्स पर नियंत्रण के लिए 150 लीटर पानी में 50 मिलीलीटर देहात हॉक मिला कर छिड़काव करें.
फफूंद लगने पर 15 लीटर पानी में 25 ग्राम देहात फुल स्टॉप मिला कर छिड़काव करें.
यदि जड़ों में कीड़े लग रहे हैं तो नियंत्रण के लिए क्लोरपायरीफॉस 50 प्रतिशत ई.सी. का प्रयोग करें.
कीरनाशक एवं फफूंद नाशक दवाओं के प्रयोग के समय खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी होना आवश्यक है.
खेत में आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से बचें.
यदि पर्याप्त उर्वरक पूर्व में नहीं दिया गया हो तो यूरिया फसल में सिंचाई/निंदाई के बाद दें.
यदि जल भराव की स्थिति दिखाई दे रही हो तो अतिरिक्त जल का रिसाव करें.
डाईथेन एम 45 की दो ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिनों के अंतर से दो छिड़काव करें.
रोगर 1 मि.ली./लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिनों के अंतर से दो छिड़काव करें.
ये भी पढ़ें: Turmeric Cultivation: हल्दी की फसल के लिए जानलेवा है थ्रिप्स कीट, किसान ऐसे करें बचाव