Rabi Crop Sowing: रबी सीजन में बुवाई के लिए अपनाएं खेती की ये पुरानी विधि, किसानों को मिलेगी भरपूर उपज

Rabi Crop Sowing: रबी सीजन में बुवाई के लिए अपनाएं खेती की ये पुरानी विधि, किसानों को मिलेगी भरपूर उपज

देश के कई हिस्सों में खेती पूरी तरह से बारिश पर निर्भर है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां सिंचाई के साधन सीमित हैं. जब खरीफ मौसम में धान कटने को होती है, तब भी खेतों में ज्यादा नमी रबी फसलों की बुवाई में बाधा बनती है. लेकिन, उतेरा विधि से रबी फसलों की बुवाई करने पर नमी या ज्यादा बारिश की स्थिति में किसान फसल बुवाई में देरी से बच सकते हैं.

 ररबी फसलों की उतेरा विधि से बुवाई के कई फायदे ररबी फसलों की उतेरा विधि से बुवाई के कई फायदे
जेपी स‍िंह
  • नई दिल्ली,
  • Sep 18, 2024,
  • Updated Sep 18, 2024, 6:58 PM IST

देश के कई क्षेत्रों में खेती पूरी तरह से बारिश पर निर्भर रहती है. अधिक समय तक बारिश के चलते खेत गीला रह जाता है और रबी सीजन की बुवाई के लिए मिट्टी तैयार नहीं हो पाती है. इस साल ला नीना के प्रभाव से अक्टूबर तक बारिश होने की संभावना जताई जा रही है, जिससे रबी फसलों की बुवाई में देरी की आशंका है. इस स्थिति में वर्षा आधारित क्षेत्रों में समय पर बुवाई के लिए  उतेरा तकनीक एक प्रभावी समाधान हो सकती है. खासकर मध्यम और निचली भूमि वाले क्षेत्रों में यह तकनीक उपयोगी साबित हो सकती है.

उतेरा विधि के जरिए बुवाई करने से खेत में मौजूद नमी का पूरी तरह से उपयोग किया जा सकता है, जिससे बुवाई में देरी के बावजूद फसलों की अच्छी पैदावार हासिल की जा सकती है. देश के बहुत से राज्यों में सिंचाई के सीमित साधनों के कारण रबी मौसम में खेत खाली रह जाते हैं. लेकिन, खरीफ मौसम में खेतों में नमी रहती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां धान की खेती की जाती है. धान की खड़ी फसल के नमी का लाभ उठाकर सीधे खड़ी फसल में ही मसूर, खेसारी, चना, मटर, अलसी जैसी रबी फसलों के बीज छिड़क कर बुवाई कर देते हैं. इस पद्धति से जुताई और सिंचाई के खर्चे बचते हैं. वहीं, दूसरी तरफ समय से बुवाई होने से कम लागत में बेहतर पैदावार मिल जाती है.

उतेरा विधि से खेती कहां के लिए बेहतर?

मौसम विभाग के अनुसार इस साल ला नीना के प्रभाव से अक्टूबर के मध्य तक बारिश की संभावना जताई जा रही है. ऐसी स्थिति में वर्षा आधारित क्षेत्रों में धान के खेतों में नमी बनी रहेगी. अगर यह परिस्थिति बनी रहती है, तो किसान धान की खड़ी फसल में चना, मसूर और अलसी जैसी फसलों की बुवाई रिले क्रापिग के रूप में सदियों पुरानी उतेरा विधि से बुवाई कर सकते हैं. इस तकनीक का उपयोग छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में इसका लंबे समय से हो रहा है. उतेरा विधि से खेती के लिए मुख्य रूप से मध्यम या निचली भूमि का चुनाव करना चाहिए. विशेष रूप से ताल क्षेत्र, जहां धान की खेती होती है. भारी मिट्टी वाले खेत उतेरा विधि के लिए बेहतर माने जाते हैं. क्योंकि इन खेतों में जल सोखने की क्षमता अधिक होती है और नमी लंबे समय तक बनी रहती है. इन खेतों में जब धान की फसल पकने के करीब होती है, रबी फसलों की सीधे बुवाई की जाती है. इस तकनीक में धान की कटाई हाथों से की जाती है, ताकि पहले से बोई गई रबी फसलों को नुकसान न हो. इस विधि से समय पर बुवाई हो जाती है. इसमें खेत में मौजूद नमी का उपयोग रबी फसल के अंकुरण और वृद्धि के लिए किया जाता है, जिससे किसानों को अधिक लाभ होता है.

कब और कैसे करें इस विधि का इस्तेमाल?

उतेरा विधि में धान की फसल कटने से लगभग 15-20 दिन पहले जब बालियां पकने की अवस्था में हों तब रबी फसलों बीजों को खेत में छिड़क दिया जाता है. यह प्रक्रिया अक्टूबर के मध्य से नवंबर के मध्य तक की जाती है. उतेरा विधि से दलहन और तिलहनी फसलें उगाई जा सकती हैं. किसान रबी सीजन फसलें जैसे अलसी, मसूर, सरसों, उड़द, चना, खेसारी, मटर आदि फसलों की खेती इस विधि से कर सकते हैं. इसमें बुवाई के समय खेत में भरपूर नमी होनी चाहिए ताकि बीज गीली मिट्टी में चिपक जाएं. ध्यान रखें कि खेत में पानी अधिक न हो, वरना बीज सड़ सकते हैं. फसलों की देखभाल और समय पर बीज छिड़कने से वे धीरे-धीरे अंकुरित होते हैं. जब धान पककर तैयार हो जाता है तो इसे सावधानीपूर्वक काटा जाता है ताकि नई अंकुरित फसल को नुकसान न पहुंचे. खेत में धान के डंठलों के बीच बोई गई रबी की फसल धान कटने से पहले ही उग जाती है. इसके बाद इसमें जरूरी उर्वरक दिये जाते हैं, जिससे फसल की तेजी से बढ़वार हो, इससे वर्षा आधारित एरिया बारिश की नमी का सही उपयोग होता है और रबी फसलों की सही समय बुवाई हो जाती है .

कम लागत वाली इस तकनीक के कई फायदे

छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में जहां रबी में सिंचाई के सीमित संसाधनों की वजह से लंबे समय से उतेरा पद्धति का उपयोग किया जा रहा है. इससे वर्षा आधारित एरिया में दलहन, तिलहन और बेहतर उपज मिल जाती है. बारिश की नमी का सही इस्तेमा भी हो जाता है. खेत खाली नहीं रहता, जिससे भूमि का बेहतर उपयोग हो जाता है. यह विधि अन्य फसल उगाने की विधियों की तुलना में सस्ती और सरल होती है, जिससे अधिक लाभ होता है. उतेरा विधि से दलहनी फसलों के नाइट्रोजन स्थिरीकरण के कारण खेत में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है. इससे किसानों को अन्य फसलों की खेती में अपेक्षाकृत कम नाइट्रोजन खाद डालनी पड़ती है. वर्षा आधारित एरिया इस तकनीक से एक से अधिक फसलें ले सकते हैं, जिससे उनकी अतिरिक्त आय हो जाती है. इसके अलावा कम लागत में अधिक उपज प्राप्त होती है. इस विधि से खेत की नमी का सही उपयोग हो जाता है और खेत परती नहीं रहता, जिससे भूमि का पूरा सदुपयोग होता है.

किसान इस बात का खास ख्याल रखें

उतेरा विधि में बुवाई के समय खेत में पानी का जमाव नहीं होना चाहिए. क्योंकि पानी लगने से बीज सड़ सकते हैं. बस इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि बुवाई के समय खेत की मिट्टी गीली होनी चाहिए. साथ ही रबी फसलों के बीजों का सही समय पर छिड़काव और खेत की नमी का ध्यान रखना जरूरी है. इसके अलावा अगर चना और खेसारी जैसी फसलों को उतेरा विधि से बुवाई किया गया है. उसके उगने के बाद पौधे शीर्ष कलिका को तोड़ देना चाहिए. इससे अधिक शाखाएं और फलियां आ सकें. उतेरा विधि सदियों से किसानों के लिए एक लाभकारी खेती की विधि रही है, लेकिन आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाने से इसकी पैदावार में और भी बढ़ोत्तरी हो सकती है. इसलिए, वैज्ञानिक नजरिया और उन्नत जानकारी का उपयोग करना जरूरी है. 

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