दूध देने वाले पशुओं के भोजन में हरा चारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके जरिए दुधारू पशुओं के स्वास्थ्य और दूध उत्पादन में जरूरी पोषक तत्वों की पूर्ति होती है. हरे चारे का उत्पादन पशुओं के लिए चारा खरीद रहे वैसे किसानों को एक बेहतर विकल्प प्रदान करता है जो भेड़ पालन, बकरी पालन या फिर डेयरी उद्योग के लिए योजना बना रहे हैं. कोई भी चारा जो हरी फसल जैसे कि फलीदार पौधा, घास की फसल, अनाज की फसल या पेड़ आधारित फसल, हरा चारा कहलाता है. मुख्यतौर पर तीन तरह का हरा चारा होता है. इसमें फलीदार फसल आधारित, अनाज की फसल आधारित और पेड़ आधारित हरा चारा प्रमुख है.फलीदार चारा, अनाज का चारा, घास का चारा और पेड़ का चारा से पशुपालन का काम आसान होता है.
सबसे पहले बात करते हैं राजमा या लोबिया की. यह एक वार्षिक फसल है और इसका उत्पादन गर्म वातावरण वाले क्षेत्रों में होता है. इस फसल का उत्पादन खरीफ, रबी और गर्मी के मौसम में किया जा सकता है. राजमा या लोबिया की खेती पूरे साल की जा सकती है. राजमा या लोबिया की कटाई फसल बुआई के 45 से 50 दिनों के बाद की जा सकती है. इसकी सीओ-5 किस्म प्रति हेक्टेयर 20 टन हरे चारे का उत्पादन करती है.
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अगर स्टाइलो फसल की बात करें तो यह साल भर बढ़ने वाला लंबवत चारा है जो फलीदार पौधा है. यह चारा ब्राजील का देसी पौधा है. आमतौर पर, स्टाइलो दो मीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है. स्टाइलो अकाल प्रतिरोधी और फलीदार फसल का एक अच्छा चारा है और इसके लिए कम बारिश की जरूरत पड़ती है. स्टाइलो का उत्पादन कम उत्पादकता वाली अम्लीय मिट्टी और कम जलनिकासी वाली मिट्टी में भी किया जा सकता है. स्टाइलो में अपरिष्कृत प्रोटीन की मात्रा 16 से 18 फीसदी होती है. स्टाइलो के लिए सबसे अच्छा मौसम जून-जुलाई से सितंबर-अक्टूबर होता है.
यह फसल सदाबहार है और कोई भी इसकी पैदावार सालों भर कर सकता है. इस फसल को प्रति हेक्टेयर 18 से 20 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है और टीले पर ठोस स्थान पर कतार में जहां दो सेमी की गहराई में खाद और ऊर्वरक डाला गया हो बीज को बोना चाहिए. बीज की बुआई के तुरंत बाद सिंचाई करना चाहिए. तीसरे दिन हल्की सिंचाई करनी चाहिए और उसके बाद 6 से 7 दिन में एक बार पानी डालना चाहिए बारिश के मौसम में सिंचाई की जरुरत नहीं होती है. बुआई के तीन महीने के बाद जब फसल की लंबाई 45 से 50 सेमी हो जाए तब यह फसल पहली कटाई के लिए तैयार हो जाएगी. अगली कटाई 35 से 40 दिनों के अंतराल के बाद और फसल के विकास को देखते हुए करना चाहिए. इस हरे चारे की पैदावार 80 से 90 टन प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष प्राप्त की जा सकती है.
इस फलीदार फसल की जड़ें गहरी होती हैं जो सदाबहार चारा होती है. लुसर्न यानी गरारी चारे की रानी के तौर पर मशहूर है. यह बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक हरा चारा होती है और उसमें सूखे पदार्थ के जैसा करीब 15 से 20 फीसदी कच्चा प्रोटीन पाया जाता है. इन सभी फायदों के अलावा, लुसर्न मिट्टी में नाइट्रोजन मिलाता है और मिट्टी को और ऊपजाऊ बनाता है. इसकी मुख्य किस्में आनंद-2, सिरसा-9 और आईजीएफआरआई एस- 244 हैं. फसल की पैदावार जुलाई से दिसंबर महीने में अनुकूल होती है और इसे बहुत ज्यादा गर्मी या ठंडा में उपजाया नहीं जाता है.बीजारोपण के 70 से 80 दिनों के बाद पहली कटाई की जाती है और उसके बाद अगली कटाई 21 से 30 दिनों के बाद की जाती है.
अनाज की फसल से हरे चारे के उत्पादन की बात करें तो इसमें मक्का प्रमुख है. मक्का एक वार्षिक फसल है और जिसका उत्पादन कई तरह की मिट्टी में हो सकता है. मुख्य किस्में अफ्रीकन टॉल, विजय कम्पोजिट, मोती कम्पोजिट, गंगा-5 और जवाहर हैं. इस फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 40 से 45 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. इसमें औसत हरे चारे की पैदावार 45 से 50 टन प्रति हेक्टेयर होती है और सूखी सामाग्री की पैदावार 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है. इसके अलावा ज्वार चारा, संकर नेपियर चारा, गिनी घास, पारा घास और ब्लू बफेल घास भी प्रमुख चारा हैं.
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