बारिश के दिनों में खाद्यान्न, सब्जी और बागवानी फसलों के लिए गाजर घास (Carrot grass or Parthenium hysterophorus) घातक बन जाती है. इस घास की वजह से खेत में मिट्टी की पोषकता तेजी से घटती है, जिससे फसल उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है. फसलों को इस घास की चपेट से बचाने के लिए खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर के वैज्ञानिकों ने आसान तरीका बताया है. वैज्ञानिकों ने कहा कि देशभर में गाजर घास लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैल चुकी है और यह जहां उग जाती वहां किसी दूसरे पौधे को पनपने नहीं देती है. वैज्ञानिकों ने किसानों को खरपतवार नाशक दवाएं भी सुझाई हैं.
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर के सहयोग से सस्य विज्ञान (Agronomy) विभाग ने किसानों को खरपतवार से फसलों को बचाने के तरीके बताए. हरियाणा के भिवानी जिले के गांव मिल्कपुर व हिसार जिले के गांव पेटवाड़ में खरपतवार नियंत्रण शिविर भी लगाए गए. इसमें गाजर घास जागरूकता सप्ताह और उन्मूलन अभियान चलाया गया. करीब 200 किसानों को गाजर घास के हानिकारक प्रभाव और उसके प्रबंधन विकल्पों के बारे में जानकारी दी गई.
सस्य विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. एसके ठकराल ने गाजर घास के खेत में प्रवेश से लेकर इसकी प्रकोप, कृषि, मानव और पशुधन पर होने वाले हानिकारक प्रभावों के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इस खरपतवार से न केवल विभिन्न फसलों के उत्पादन में कमी आती है बल्कि इससे फसलों की लागत में भी काफी बढ़ोत्तरी हो जाती है. उन्होंने कहा कि इनमें गाजर घास एक बहुत ही घातक खरपतवार है जो किसानों के लिए अभिशाप बनती जा रही है.
बरसात का मौसम शुरू होते ही गाजर फसल की पत्तियों वाली एक वनस्पति घास काफी तेजी से बढ़ने और फैलने लगती है. इसे गाजर घास कहा जाता है. जबकि इसे कांग्रेस घास या चटक चांदनी के नाम से भी जाना जाता है. डॉ. एसके ठकराल ने बताया कि गाजर घास खाली स्थानों, अनुपयोगी भूमियों, औद्योगिक क्षेत्रों, सडक़ के किनारों, रेलवे लाइनों, शहरी एवं ग्रामीण निवास स्थानों पर अधिक पाई जाती है. गाजर घास के एक पौधे से लगभग 5000 से 20000 बीज पैदा होते हैं जोकि जमीन में फिर से अंकुरित हो जाते हैं.
कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि गाजर घास का सबसे ज्यादा प्रकोप खाद्यान्न फसलों, सब्जी फसलों के साथ ही बागों में भी बढ़ रहा है. डॉ. टोडरमल पूनियां ने बताया कि यह गाजर घास का पौधा लगभग देश के हर हिस्से में मौजूद है और लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैल चुका है. जब यह घास एक स्थान पर उग जाती है तो अपने आसपास किसी अन्य पौधे को उगने नहीं देती है. इससे अनेकों महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों और चरागाहों के नष्ट हो जाने की आशंका पैदा हो गई है.
डॉ. टोडरमल पूनियां ने कहा कि गाजर घास को नियंत्रित करने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी है. कहा गया कि कुछ फसल मित्र प्राकृतिक वनस्पतियों को खत्म होने से बचाना भी हमारी जिम्मेदारी है. इसलिए खरपतवार नष्ट करने के लिए सही दवा का इस्तेमाल जरूरी है, वरना मित्र वनस्पति या कीट भी नष्ट हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि इस घास के नियंत्रण के लिए एट्राजीन/मेट्रिब्यूजिन (0.5 प्रतिशत) व गलाइफॉसेट (1-1.5 प्रतिशत) का इस्तेमाल किसान कर सकते हैं.