Paddy disease: धान की खेती में बकानी रोग से रहें सतर्क, कृषि वैज्ञानिकों ने बताए बचाव के उपाय

Paddy disease: धान की खेती में बकानी रोग से रहें सतर्क, कृषि वैज्ञानिकों ने बताए बचाव के उपाय

धान की खेती करने वाले किसानों के लिए बकानी रोग एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर सहित कई राज्यों में इस रोग का हर साल प्रकोप बढ़ता जा रहा है. अभी धान की खेती की तैयारी किसान शुरू कर चुके हैं. इससे बचने के लिए अभी से उपाय अपनाना जरूरी है, नहीं तो यह रोग धान की फसल को भारी नुकसान पहुंचा सकता है.

 धान के बकानी रोग के लक्षण - फोटो सौजन्य: IARI, पूसा, दिल्ली धान के बकानी रोग के लक्षण - फोटो सौजन्य: IARI, पूसा, दिल्ली
जेपी स‍िंह
  • New Delhi,
  • Jun 12, 2024,
  • Updated Jun 12, 2024, 7:48 PM IST

पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर सहित कई राज्यों में बकानी यानी झंडा रोग किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. खासकर बासमती धान में. यह एक ऐसा रोग है जिसमें ज्यादा तापमान में फंगस अधिक बढ़ता है, जिससे बीमारी अधिक फैलती है और फसलों की पैदावार प्रभावित होती है. ऐसे में किसानों को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. साल 2019 में इस रोग का प्रकोप बहुत ज्यादा देखा गया था, जिससे किसानों को बहुत अधिक नुकसान हुआ था. इस बीमारी का असर धान की नर्सरी से ही शुरू हो जाता है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बीमारी प्री-मॉनसून की बारिश न होने के कारण भी होती है. पिछले कुछ वर्षों में बकानी रोग के कारण इसकी उत्पादकता में कमी आई है. इस रोग के कारण धान की पैदावार में 15 से 40 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है. बासमती की किस्में, जैसे पूसा बासमती-1509 और पूसा बासमती-1121, में इस रोग का ज्यादा प्रकोप देखा जाता है. इसलिए जो किसान धान की खेती करने जा रहे हैं, वे इस रोग से बचने के लिए पहले से ही सजग रहें, वरना ये रोग बहुत ज्यादा नुकसान कर सकता है.

बकानी रोग की पहचान कैसे करें? 

कृषि विज्ञान केन्द्र, गौतमबुद्ध नगर के हेड और पौध सुरक्षा विशेषज्ञ  डॉ मंयक कमार राय के अनुसार धान की फसल में बकानी यानी झंडा रोग फ्यूजेरियम मोनिलिफोर्मे नामक कवक के कारण होता है. इस बीमारी में रोगग्रस्त पौधे स्वस्थ पौधों से असामान्य रूप से लंबे हो जाते हैं और कुछ पौधों में बिना लंबाई बढ़े ही तना और पत्तियां गलने लगती हैं. ऐसे पौधे ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रहते और जल्द ही सूख जाते हैं. रोपाई के बाद ये पौधे पीले, पतले और लंबे हो जाते हैं और रोगी पौधों में कल्ले कम निकलते हैं. पौधे जल्द ही सूख जाते हैं. इस रोग से प्रभावित पौधे बच जाते हैं तो उनमें बालियां और दाने नहीं निकलते. जब नमी वाला वातावरण होता है तो तनों के निचले भाग पर सफेद से लेकर गुलाबी रंग का फंगस दिखाई देता है, जो धीरे-धीरे ऊपर बढ़ता जाता है. रोगग्रस्त पौधों की जड़ें सड़ने लगती हैं और उनमें दुर्गंध आती है.

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डॉ मंयक कमार राय ने सुझाव दिया कि जो किसान धान की खेती करने जा रहे हैं, वे इस रोग से बचने के लिए पहले से ही सजग रहें, वरना यह रोग बहुत ज्यादा नुकसान कर सकता है.

इस खतरनाक रोग से बचने के उपाय

•    स्वस्थ एवं स्वच्छ बीजों का प्रयोग करें.
•    खेतों में गहरी जुताई करें और कुछ दिनों के लिए छोड़ दें.
•    बीज लगाने से पहले 50 से 55 डिग्री सेल्सियस गर्म पानी में 15 से 20 मिनट बीजों का उपचार करें.
•    बीजों को बेविस्टिन या कैबेंडाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर का घोल बनाकर 24 घंटे भिगोकर उपचारित करें.
•    नर्सरी उखाड़ने के 7 दिन पहले कैबेंडाजिम 1 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से रेत में मिलाकर नर्सरी में छिड़काव करें.

बकानी रोग की रोकथाम के उपाय

  • प्री-मॉनसून में कम बारिश होने से यह रोग ज्यादा फैलता है, इसलिए किसान इस रोग के प्रति जागरूक रहें.
  • धान की नर्सरी में हमेशा पानी भरकर उखाड़ें.
  • धान की  पूसा बासमती 1509, , पूसा बासमती-1121, पूसा 1401, पूसा बासमती -1 इन किस्मों में इस रोग का असर ज्यादा है, इसलिए इन किस्मों के धान पर विशेष ध्यान दें.
  • नर्सरी में यदि इस रोग के लक्षण दिखाई दें तो उन्हें उखाड़कर फेंक दें, धान की रोपाई रोगग्रस्त पौधों से न करें.
  • ज्यादा यूरिया का प्रयोग करने से बचें.
  • खड़ी फसल में अगर यह रोग दिखाई दे तो 500 ग्राम कैबेंडाजिम + मैंकोजेब 500 ग्राम मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें. ये दवाएं बाजार में अलग-अलग नाम से मिलती हैं.
  • अगर जैविक नियंत्रण करना हो तो वैज्ञानिकों के अनुसार बकानी से बचने के लिए ट्राइकोडर्मा घोल में पौधों को कम से कम एक घंटे डुबाकर रखें. जिन खेतों में इस बीमारी की शुरुआत हो, वहां पौधों को तुरंत उखाड़ दें. साथ ही दो किलो ट्राइकोडर्मा प्रति एकड़ गोबर की खाद में मिलाकर डालें. अधिक स्यूडोमोनास का स्प्रे करें.

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इस तरह धान की फ़सल को इस बकानी रोग प्रकोप से आप बचा सकते हैं. वैज्ञानिक सलाह के मुताबिक़, अगर आपने अपनी फ़सल का प्रबंधन किया, तो निश्चित ही धान की बेहतर उपज पाएंगे.

 

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