Biofloc technology: मछली पालन की इस तकनीक से पहले खुद बनी आत्मनिर्भर, अब लोगों को दे रही है रोजगार

Biofloc technology: मछली पालन की इस तकनीक से पहले खुद बनी आत्मनिर्भर, अब लोगों को दे रही है रोजगार

उत्तर प्रदेश के शामली जिले की दो महिलाएं घर की रसोई संभालने के साथ-साथ अब मछली पालन के क्षेत्र में बड़ा नाम कमा रही है. दोनों महिलाओं की वजह से आज जिले में और भी महिलाएं प्रेरित होकर मछली पालन के क्षेत्र में उतर चुकी है. इस्सोपुर टिल की रहने वाली श्यामो देवी और सुनीता देवी बायोफ्लॉक विधि से मछली पालन करके हर 6 महीने में 2 से 3 लख रुपए तक की कमाई कर रही है.

धर्मेंद्र सिंह
  • Shamli ,
  • Oct 01, 2023,
  • Updated Oct 01, 2023, 1:22 PM IST

पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है, मंजिलें उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है.  उत्तर प्रदेश के शामली जिले की दो महिलाएं घर की रसोई संभालने के साथ-साथ अब मछली पालन के क्षेत्र में बड़ा नाम कमा रही है. दोनों महिलाओं की वजह से आज जिले में और भी महिलाएं प्रेरित होकर मछली पालन के क्षेत्र में उतर चुकी है. इस्सोपुर टिल की रहने वाली श्यामो देवी और सुनीता देवी बायोफ्लॉक विधि (Biofloc technology) से मछली पालन करके हर 6 महीने में 2 से 3 लख रुपए तक की कमाई कर रही है. मुख्यमंत्री के आर्थिक सलाहकार डॉ के.वी.राजू और मत्स्य पालन विभाग के सहायक निदेशक राजेलाल भी इन महिलाओं की सराहना कर चुके हैं. इन दोनों ही महिला किसानों को कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है. 

मत्स्य पालन विभाग के सहायक निदेशक राजा लाल का कहना है की मछली पालने वाले किसानों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. किसानों को विभिन्न गांव में जा जाकर जागरूक किया जा रहा है.

मछली पालन के क्षेत्र में सफल हुई दो महिलाओं की कहानी

शामली जनपद की इस्सोपुर टिल की रहने वाली श्यामो देवी 3 साल पहले तक घर की रसोई संभालती थी. उन्हें मछली पालन क्षेत्र का कोई अनुभव नहीं था. उन्होंने बताया कि उनके यहां  मत्स्य पालन विभाग द्वारा कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें कम जमीन वाले किसानों को प्रेरित किया गया. उनके पास ढाई बीघा जमीन में तालाब स्थापित करने के बाद पश्चिम बंगाल से पंगेशियस मछली का बीज लाकर पालन शुरू किया. हालांकि पहले सीजन में उन्हें नुकसान उठाना पड़ा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी फिर बायोफ्लाक विधि से मछली पालन शुरू किया. अब हर 6 महीने में 2 से 3 लख रुपए तक की आमदनी हो जाती है. यहां तक की तीन अन्य लोगों को रोजगार भी दिया हुआ है. आज भी सुबह-शाम घर की रसोई संभालने के बाद बचे हुए समय को मछली पालन में लगाती है. 

इसी गांव की रहने वाली सुनीता देवी ने भी श्यामू देवी के साथ बायोफ्लॉक विधि से मछली पालन शुरू किया. सुनीता के पति किसान है और पत्नी को मछली पालन में सहयोग भी करते हैं. सुनीता ने बताया कि मछली तैयार करने के बाद दिल्ली की मंडी में भेजते हैं. यहां तक की लोगों को नि:शुल्क मछली पालन के टिप्स भी देती है.

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क्या है बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc technology)

मछली पालन की इस तकनीक में 10 हजार लीटर क्षमता का एक टैंक बनाया जाता है. इसे बनाने की लागत 32 से 35 हजार रुपए आता है.जिसका लगभग 5 सालों तक इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर कोई मछली पलक 25 से 30 हजार की लागत लगाकर इसमें मछली पालन करता है तो उसे हर 6 महीने में 3 से 4 क्विंटल मछलियां मिल जाती है. मत्स्य पालन विभाग के सहायक निदेशक राजेलाल ने बताया कि बॉयोफ्लॉक तकनीक बॉयोफ्लॉक नाम की बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक में सबसे पहले मछलियों को सीमेंट या मोटे पॉलिथीन से बने टैंक में डाला जाता है फिर मछलियों को खाना दिया जाता है. मछलियां जितना खाना खाती है उसका 75% मल के रूप में शरीर से बाहर निकाल देती हैं फिर बॉयोफ्लॉक बैक्टीरिया इस मल को प्रोटीन में बदलने का काम करता है जिसको मछलियों खा जाती है इससे उनका विकास बहुत तेजी से होता है.

क्या है इस तकनीक के फायदे

 मत्स्य पालन के क्षेत्र में  बायोफ्लॉक तकनीक को किसानों के द्वारा तेजी से अपनाया जा रहा है क्योंकि इस तकनीक के फायदा ज्यादा है. इस तकनीकी की मदद से मत्स्य पालन करने वाले व्यक्ति को कम लागत और सीमित जगत में अधिक उत्पादन मिलता है. हर चार महीने में एक बार पानी भरने की जरूरत होती है. इस तकनीक में अनुपयोगी जगह और कम पानी का उपयोग होता है. मजदूर की लागत भी कम होती है.

 

 

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