What is Vertical farming : विकीपीडिया के मुताबिक वर्टिकल फार्मिंग का कॉन्सेप्ट 1999 में आया. कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डिक्सन डेस्पोमेयर ने न्यूयॉर्क सिटी की ऊंची ऊंची इमारतें जिन्हें स्काईस्क्रैपर कहते हैं वहां वर्टिकल तरीके से खेती करने के बारे में सोचा और छात्रों इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए कहा, उन्होंने 30 मंजिल इमारतों पर हाइड्रोपोनिक तरीके से खेती करने का प्रोजेक्ट शुरू किया, हालांकि उस वक्त खेती का ये तरीका पूरी तरह लागू नहीं हुआ लेकिन यहां से वर्टिकल फार्मिंग की शुरूआत हो गई.
PUSA में प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर अवनी कुमार सिंह का जो प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन/ हाइटेक कल्टीवेशन के एक्सपर्ट हैं, उनका मानना है कि वर्टिकल फार्मिंग का कॉन्सेप्ट नया नहीं है. गांवों में पहले भी सब्जियां वर्टिकल तरीके होती थीं अब उसे एक नई तकनीक बनाकर बड़े स्तर पर खेती की जा रही है. वर्टिकल फार्मिंग को भी दो ग्रुप में बांटा जाता है जिसमें से एक है हाइड्रोपोनिक सॉइललेस तरीका है जिसमें पानी, टेम्परेचर और मॉइश्चर को कंट्रोल किया जा सकता है. इसमें बिना मिट्टी के पेर्लाइट, कोकोपीट और वर्मीक्यूलाइट का उपयोग करते पौध तैयार की जाती है और उनसे खेती की जाती है.
दूसरा तरीका हाइड्रोपोनिक्स है जिसमें लिक्विड बेस तैयार किया जाता है और पानी में ही खेती के लिए जरूरी न्यूट्रिएंट्स को मिला दिया जाता है. इसमें 20 से 30 PPM तक लेवल होता है और इसे पाइप के माध्यम से पौधों को दिया जाता है. इसमें किसान पौधों के मुताबिक मॉइश्चर, टेम्परेचर, PH लेवल, और पानी की मात्रा को कंट्रोल में रखते हैं और उस कंट्रोल्ड पर्यावरण में खेती होती है. वर्टिकल फार्मिंग ग्रीन हाउस, पॉली हाउस या खुले में भी की जा सकती है. खासतौर पर आजकल ग्रीन हाउस, पॉली हाउस में सब्जियां जैसे रंगीन शिमला मिर्च, खीरा, करेला, मशरूम ये सब वर्टिकल फार्मिंग से ही किया जा रहा है.
वर्टिकल फार्मिंग अगर ग्रीन हाउस या पॉली हाउस में करनी है तो उसका सेटअप तैयार करने के लिए केन्द्र सरकार 50% तक सब्सिडी देती है जिसमें 2 एकड़ तक के एरिया में वर्टिकल फार्मिंग की जा सकती है. ग्रीन हाउस या पॉली हाउस में कुछ सब्सिडी राज्य सरकार की ओर से भी मिलती है