पराली जलाने की घटनाओं पर ब्रेक लगाने के लिए पंजाब कृषि विभाग ने पूरी तैयारी कर ली है. इसके लिए वह आगामी खरीफ फसल कटाई सीजन से पहले किसानों को सब्सिडी पर फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनें बांट रही है. इस साल खरीफ फसल कटाई का सीजन 1 अक्टूबर से शुरू होने वाला है. ऐसे में राज्य सरकार ने इस सीजन में 21,000 सीआरएम मशीनें वितरित करने का फैसला किया है. इसके लिए सब्सिडी के रूप में 500 करोड़ रुपये खर्च करेगी. हालांकि, 4000 मशीनें किसानों में बांटी जा चुकी हैं. इन मशीनों का इस्तेमाल पराली के इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन में किया जाता है.
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, एक्स-सीटू प्रबंधन में खेतों से पराली को उठाकर पराली आधारित उद्योगों को आपूर्ति की जाती है, ताकि इसका इस्तेमाल वैकल्पिक ईंधन के रूप में किया जा सके. वहीं, इन-सीटू प्रबंधन के तहत पराली को मिट्टी में मिलाया जाता है, ताकि वह सड़कर खाद बन जाए. इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ जाती है. हालांकि, अभी राज्य सरकार धान की पराली को बड़े पैमाने पर इकट्ठा करने और बॉयलर में ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए औद्योगों को बड़े बेलर आयात करने की सुविधा दे रही है. इसके लिए 20 करोड़ रुपये सब्सिडी के रूप में निर्धारित किए गए हैं.
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वहीं, मामले से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि राज्य कृषि विभाग ने उद्यमियों को बड़े बेलर सौंपने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. उन्होंने बताया कि चार महिला उद्यमियों ने भी सब्सिडी वाले बेलर खरीदने में रुचि दिखाई है. पंजाब के कृषि निदेशक जसवंत सिंह ने कहा कि हमने सीआरएम मशीनों की जल्द डिलीवरी शुरू कर दी है, ताकि इनका अधिकतम उपयोग किया जा सके. उन्होंने कहा कि 1 से 1.5 करोड़ रुपये की लागत वाले बड़े बेलर पर 65 फीसदी सब्सिडी दी जा रही है और इन्हें जर्मनी, स्पेन और हॉलैंड से आयात किया जा रहा है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने धान की पराली के इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन के लिए सब्सिडी वाली मशीनें देने के लिए 500 करोड़ रुपये के खर्च करने को मंजूरी दी है. कुल खर्च में से राज्य सरकार 200 करोड़ रुपये का अपना योगदान करेगी. बड़े बेलर को 3,000 से 4,500 टन धान की पराली इकट्ठा करने की शर्तों के साथ सब्सिडी दी जाती है. अधिकारियों ने बताया कि प्रत्येक बड़े बेलर को खरीद सत्र में 1,000 एकड़ को कवर करने का लक्ष्य दिया गया है.
दरअसल, पंजाब में हर साल अक्टूबर और नवंबर में किसान धान की कटाई करने के बाद तुरंत पराली में आग लगा देते हैं, ताकि गेहूं की बुवाई की जा सके. हालांकि, पराली जलने से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण स्तर में खतरनाक वृद्धि हो जाती है. इससे लोगों का सांस लेना दूभर हो जाता है. जबकि, एनजीटी ने हाल ही में कहा था कि ऐसा कोई वैज्ञानिक दावा नहीं किया गया है कि पंजाब में खेतों में आग लगाने से दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है. ऐसे पंजाब में, धान 3 मिलियन हेक्टेयर में उगाया जाता है, जिससे लगभग 19-20 मिलियन टन खाद्यान्न और 22 मिलियन टन पराली उत्पन्न होती है.
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