तालाब में मछलियों के बीज छोड़ने और पकड़ने का जान लें सही समय, कभी खराब नहीं होंगी क्वालिटी  

तालाब में मछलियों के बीज छोड़ने और पकड़ने का जान लें सही समय, कभी खराब नहीं होंगी क्वालिटी  

अम्लीय जल मृदा में विषाक्त तत्वों को छोड़ता है, जिससे मछलियों की त्वचा एवं आंखे खराब हो जाती हैं. अम्लीय जल के कारण अनुसंधान स्थल पर वैज्ञानिकों द्वारा मछलियों की आंखों का खराब होना देखा गया है. अम्लीय जल की अवधि को ध्यान में रखकर जुलाई में मछलियों के बीज को तालाब में छोड़ना चाहिए. 

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सर‍िता शर्मा
  • Noida,
  • Dec 06, 2023,
  • Updated Dec 06, 2023, 11:19 AM IST

मछलीपालन किसानों की आय बढ़ाने में काफी मददगार साबित हो सकता है. इसलिए सरकार पारंपरिक फसलों की बजाय बागवानी, पोल्ट्री और मछलीपालन पर फोकस कर रही है. आईसीएआर के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार ओडिशा के तटीय जलभराव वाले क्षेत्रों में किसान पारंपरिक रूप से वर्ष में केवल एक ही बार धान की फसल कीखेती करते हैं. इसके बाद भूमि को ऐसे ही परती छोड़ देते हैं. इस समस्या के समाधान के लिए भारतीय जल प्रबंधन संस्थान के वैज्ञानिकों ने द्वारा इस क्षेत्र के किसानों की आजीविका में सुधार के लिए नई पहल की गई है. उनसे मछलीपालन  करवाया जा रहा है.

इससे किसानों को 1.68 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर का लाभ हुआ है. लेकिन, अच्छे लाभ के लिए तालाब में मछलियों के बीज छोड़ने और पकड़ने का सही समय जानना जरूरी है. ताकि नुकसान न हो. वैज्ञान‍िकों के अनुसार दिसंबर से मई के दौरान मृदा में अम्लता की समस्या अधिक रहती है. वर्षा की शुरुआत के दिनों में ऊंची क्यारियों की ऑक्सीडाइज्ड मृदा में अम्लता घुल जाती है. इस वर्षा की अवधि के दौरान, तालाब एवं निचली क्यारियों में जल की अम्लता भी सुधर जाती है और एक समान बनी रहती है. यह सर्वविदित है कि अम्लीय जल मछलियों की वृद्धि के लिए हानिकारक रहता है, जो इनके गिल्स को प्रभावित करता है. 

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मछल‍ियों के ल‍िए खतरनाक है अम्लीय जल 

अम्लीय जल मृदा में विषाक्त तत्वों को छोड़ता है, जिससे मछलियों की त्वचा एवं आंखे खराब हो जाती हैं. अम्लीय जल के कारण अनुसंधान स्थल पर वैज्ञानिकों द्वारा मछलियों की आंखों का खराब होना देखा गया है. अम्लीय जल की अवधि को ध्यान में रखकर जुलाई में मछलियों के बीज को तालाब में छोड़ना चाहिए. इस समय जल का पी-एच मान एवं लवणता एक समान बने रहते हैं.  शुष्क अवधि के बाद अप्रैल-मई में जब आरंभिक वर्षा हो, तब तालाब से मछलियों को पकड़ना चाहिए. मछलियों की त्वचा, गिल्स एवं आंखों को खराब होने से बचाने के लिए यह समय सही रहता है. 

मछलियों की उपयुक्त प्रजातियां

निचली क्यारियों के उथले जल की गहराई में मछलीपालन के लिए एयर ब्रीथिंग मछलियां जैसे कवई एवं मागुर उपयुक्त पाई गईं. ये मछलियां बाजार में अधिक मूल्य (500-600 रुपये प्रत‍ि क‍िलोग्राम) में बेची जाती हैं, जिससे किसानों को अधिक आय प्राप्त हो सकती है. खेत के तालाब (2 मीटर गहराई) में इंडियन मेजर कॉर्न्स (रोहूं, कतला एवं मृगाल) को सफलतापूर्वक पाला जा सकता है. कृष‍ि वैज्ञान‍िकों का कहना है क‍ि ओड‍िशा के तटीय क्षेत्रों में ऊंची क्यारियों में सब्जियों की खेती, नीची भूमि में धान की खेती और तालाब में मछलीपालन से 50000 रुपये प्रत‍ि हेक्टेयर का लाभ प्राप्त हुआ.

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