हरियाणा के इन दो भाइयों ने पराली का निकाला अनोखा जुगाड़, अब आग और धुएं की टेंशन खत्म

हरियाणा के इन दो भाइयों ने पराली का निकाला अनोखा जुगाड़, अब आग और धुएं की टेंशन खत्म

करनाल के दो भाइयों ने एक ऐसी मशीन बनाई है जो पराली से ईंधन के पेलेट यानी कि दाने तैयार करती है. ये दाने फैक्ट्रियों या शुगर मिल्स और बिजली प्लांट में आग के लिए इस्तेमाल होंगे. दोनों किसान भाई मुफ्त में खेतों से पराली उठाते हैं और उससे पेलेट बनाने का काम शुरू करने जा रहे हैं. इससे पराली की आग से छुटकारा मिलेगा.

पराली निपटान मशीनपराली निपटान मशीन
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Oct 28, 2024,
  • Updated Oct 28, 2024, 2:27 PM IST

चहां चाह, वहां राह. ये कहावत आपने सुनी होगी. कहावत का अर्थ है कि अगर इच्छा प्रबल हो, कोशिश ईमानदार हो तो अंधकार में भी राह निकल आती है. कुछ ऐसा ही किया है हरियाणा के करनाल के दो किसान भाइयों ने. हरियाणा में पराली का मुद्दा बहुत भयानक हो चला है. किसानों के सामने अभी दोधारी तलवार लटक रही है. एक तो ये कि अगर वे खेत में पराली जलाते हैं तो एफआईआर, रेवेन्यू रिकॉर्ड में रेड एंट्री और जुर्माने का दंश झेलना होगा. और अगर नहीं जलाते हैं तो उनकी फसल लेट होगी, कमाई मारी जाएगी.

किसानों को इन समस्याओं से निजात दिलाने के लिए सरकार ने पराली निपटान मशीन देने का काम शुरू किया. ये मशीनें सरकारी सब्सिडी लेकर सस्ते में खरीदी जा सकती हैं. लेकिन किसानों की शिकायत है कि मशीनें इतनी भी सस्ती नहीं होतीं कि उसे हर किसान खरीद ले और पराली की गठरी बनाकर बेच दे और उससे कमाई करे. यही वजह है कि सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद पराली मशीन का कॉन्सेप्ट धरातल पर शत-प्रतिशत नहीं उतर पा रहा है. अभी इन मशीनों की घोर कमी है जिसकी वजह से किसान मौका मिलते ही खेत में आग लगा देते हैं.

करनाल के भाइयों का कमाल

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए करनाल के दो किसान भाइयों ने नया जुगाड़ निकाला. इन किसान भाइयों के नाम हैं गुरप्रीत सिंह (45 साल) और गुरजीत सिंह (39 साल). ये दोनों एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं जिससे धान की पराली को ईंधन में तब्दील किया जा सके. यह डायरेक्ट ईंधन का काम तो नहीं करेगी लेकिन इसके छोटे-छोटे दाने बनाकर इसे जलावन, शुगर मिल्स और बिजली प्लांट्स में इस्तेमाल कर सकते हैं. ये दोनों भाई पराली के दाने बनाने के लिए एक फैक्ट्री लगाने जा रहे हैं. यहां तक कि इसके लिए 5 में से तीन मशीनें लगा दी गई हैं. किसान भाइयों का कहना है कि वे अभी किसानों के खेतों से पराली इकट्ठा कर रहे हैं. जैसे ही यह काम पूरा होगा, वे फैक्ट्री में पराली के दाने बनाने शुरू कर देंगे.

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किसान गुरजीत सिंह पराली से पेलेट ईंधन (ईंधन के दाने) बनाने वाली मशीन के बारे में 'दि ट्रिब्यून' को बताते हैं, “यह पराली इकट्ठा करने का हमारा पहला साल है. हम पहले ही 1 लाख क्विंटल से ज्यादा धान की पराली इकट्ठा कर चुके हैं और हमें उम्मीद है कि सीजन के अंत तक हम लगभग 2 लाख क्विंटल पराली इकट्ठा कर लेंगे. पराली इकट्ठा करने और गांठें बनाने के लिए हमारे पास दो बेलर मशीनें, घास काटने की मशीन, ट्रैक्टर और ट्रेलर हैं. इस प्रक्रिया में पराली को बंडलों में बांधने वाली मशीनें शामिल हैं, जिन्हें फिर पेलेट बनाने के लिए एक सुविधा केंद्र में ले जाया जाता है.” उन्होंने कहा, “हम किसानों को उनके खेतों को मुफ्त में साफ करने की सुविधा देते हैं.” 

किसानों की मुश्किलें हुईं आसान

गुरप्रीत सिंह ने कहा, "शुरुआत में हमने रंबा, पधाना, कुराली, खेरीमानसिंह और चुरनी जैसे गांवों पर ध्यान लगाया और जल्द ही अन्य गांवों में भी जाएंगे." उन्होंने दावा किया कि इससे न केवल पराली निपटाने में मदद मिली, बल्कि स्थानीय श्रमिकों को रोजगार भी मिला." दोनों भाइयों ने अपने गांव के लगभग 95 प्रतिशत खेतों को कवर कर लिया है और करनाल के अन्य गांवों और यहां तक ​​कि जींद और पानीपत जिलों में भी काम बढ़ाने की योजना बना रहे हैं.

दोनों किसान भाइयों लक्ष्य हर दिन लगभग 100 टन पेलेट का उत्पादन करना है. गुरजीत ने कहा, "हम न तो किसानों से पैसे लेते हैं और न ही उन्हें पराली के लिए भुगतान करते हैं. हमारा लक्ष्य उनके खेतों को साफ करना है ताकि वे पराली जलाने का सहारा न लें." उन्होंने आगे कहा, "हम किसानों को पराली प्रबंधन के फायदों के बारे में बताते हैं."

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एक अन्य उद्यमी, घेड़ गांव के वंश अरोड़ा ने पराली से पेलेट ईंधन बनाने का काम शुरू किया है. अरोड़ा, जो अब अपने दूसरे सीज़न में हैं, क्वालिटी के आधार पर किसानों और कस्टम हायरिंग केंद्रों को पराली के लिए 1,700 से 1,900 रुपये प्रति टन के बीच भुगतान करते हैं. केंद्र सरकार ने कुल कैलोरी मान के अनुसार पेलेट की कीमतें निर्धारित की हैं, जिनकी दरें 6,000 रुपये से 9,000 रुपये प्रति टन तक हैं. उन्होंने कहा, "पेलेट का आकार 6 मिमी और 25 मिमी के बीच होता है, जिसका आमतौर पर फैक्ट्री-कारखानों में उपयोग किया जाता है."

 

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