खेत की जुताई किए बिना भी फल वाली फसलों की खेती की जा सकती है. इसके बारे में तीन कृषि वैज्ञानिकों ने अपनी राय रखी है. इस बारे में प्राणनाथ बर्मन, एसके शुक्ल और दुष्यंत मिश्र ने विस्तार से जानकारी दी है. वे बताते हैं कि किसान फलों के बाग में पारंपरिक जुताई करते हैं जिसका कार्बनिक पदार्थों की मात्रा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इससे पोषक तत्वों के भंडार में कमी के अलावा मिट्टी की संरचना बिगड़ती है. बाग की मिट्टी की लंबे समय तक यांत्रिक खेती से वृक्ष की वृद्धि और उपज पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है. इसके अलावा वृक्षों की पंक्तियों के बीच यांत्रिक उपकरणों के पहुंच से पौधों को चोट लगती है.
इससे विशेष रूप से इनकी जड़ों, तने के निचले हिस्सों और शाखाओं पर आघात पहुंचता है. पारंपरिक जुताई से मिट्टी का क्षरण होता है. भूमि प्रबंधन प्रणाली के अध्ययन में मिट्टी के रासायनिक, जैविक और भौतिक गुणों के साथ-साथ जड़ क्षेत्र के सूक्ष्मजीवीय समुदायों और पेड़ की जड़ के विकास पर अलग-अलग प्रभाव देखा गया है. पेड़ों के फल उत्पादन में, बगीचे में सतह प्रबंधन प्रणालियों का उद्देश्य इनके विकास के लिए सर्वोत्तम परिवेश तैयार करना है, जिससे वृक्षों का बेहतरीन प्रदर्शन हो सके.
ये भी पढ़ें: जीरो टिल ड्रिल मशीन से जुताई करने पर 75 लीटर तक बचेगा डीजल, बाकी बड़े फायदे जानिए
शून्य जुताई के अंतर्गत फसल और रोपण के बीच कोई जुताई नहीं की जाती है. एक सफल बाग में सतह प्रबंधन प्रणाली से मिट्टी की उर्वरा क्षमता को बढ़ाना चाहिए जिससे मिट्टी के भौतिक और जैविक गुणों और वृक्षों की पोषण अवस्था में सुधार हो. पौधों की वृद्धि और जैविक गतिविधियों को बनाए रखने के लिए मिट्टी की स्थिरता, भौतिक और रासायनिक गुणों की एक महत्वपूर्ण भूमिका है. हालांकि, कई किसान मिट्टी के भौतिक गुणों और फसल प्रतिक्रियाओं पर इन कार्यों के प्रभाव से अवगत हुए बिना जुताई का काम कर लेते हैं. इसमें भारी मशीनों के उपयोग के कारण संघनन, कार्बनिक पदार्थों के कम उपयोग और रासायनिक उर्वरकों के बार-बार उपयोग के साथ कई वर्षों तक लगातार जुताई से मिट्टी के कण एक साथ दब जाते हैं. इसके फलस्वरूप पौधों के विकास के लिए आवश्यक हवा और पानी के प्रवाह के लिए मिट्टी के छिद्र कम हो जाते हैं.
शून्य जुताई, कृषि की एक तकनीक है जो मिट्टी में प्रवेश करने वाले पानी की मात्रा और मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों और पोषक तत्वों के चक्रण को बढ़ाती है. शून्य जुताई का मुख्य काम मृदा की जैविक उर्वरता में सुधार करना है. इस प्रणाली से मिट्टी अधिक लचीली हो जाती है. शून्य जुताई और न्यूनतम जुताई प्रणालियां मिट्टी प्रबंधन के प्रकार हैं. ये आवरण फसलों के उपयोग से जुड़े होते हैं, चाहे वह अंतरवर्ती फसल हो या मुख्य फसल के साथ लगे हों. कई कृषि परिवेशों में संरक्षण प्रथाओं का उपयोग किया जाता है.
जुताई रहित मिट्टी में आवरण फसलों का उपयोग महत्वपूर्ण है क्योंकि मृदा के आवरण के रखरखाव, नाइट्रोजन यौगिकीकरण, पोषक तत्वों के चक्रण और मृदा अपरदन में कमी आदि बदलाव आते हैं, इसके साथ ही हरितगृह गैसों के उत्सर्जन में कमी, जल उपयोग दक्षता और उत्पादकता, जैविक विविधता में वृद्धि और अन्य लाभ भी मिलते हैं. शून्य जुताई एक उपयोगी संकल्पना है जहां मृदा, हवा और पानी अपरदन के अधीन हैं, उदाहरणस्वरूप खुले ढलानी क्षेत्रों की सख्त मिट्टी जिसकी गाद में महीन रेत अधिक हो.
जुताईरहित खेती में खरपतवार नियंत्रण सबसे बड़ी समस्या है. आवरण फसलों का उपयोग खरपतवारों को नियंत्रित करने, मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ाने और लंबी जड़ों वाले पौधों को उगाकर निचली परतों से मिट्टी की सतह पर घुलनशील पोषक तत्वों को वापिस लाने के लिए किया जाता है.
फसल अवशेषों को समान रूप से वितरित किया जाता है और मिट्टी की सतह पर छोड़ दिया जाता है. फसल के अवशेष मिट्टी की सतह पर जमा होते हैं. ये सतह को ठंडा रखते हैं, मिट्टी की नमी को बढ़ाते हैं और वाष्पीकरण को सीमित करते हैं. फसल अवशेष हवा और वर्षा की बूंदों के हानिकारक प्रभाव से मिट्टी की रक्षा करते हैं. इसके साथ ही कार्बन के स्रोत के रूप में भी काम करते हैं, जो मिट्टी में पलने वाले जीवों को लाभ पहुंचाने के लिए आवश्यक ऊर्जा के स्रोत हैं.
मिट्टी के आवरण को मोड़ने, खेती करने या फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाने के लिए किसी भी उपकरण का उपयोग नहीं किया जाता है. इस कारण किसान पारंपरिक जुताई कृषि तकनीकों की तुलना में वातावरण में धूल और उपकरण से होने वाले उत्सर्जन को कम कर रहे हैं. इस प्रकार मिट्टी से वातावरण में कम कार्बन छोड़ रहे हैं.
खरपतवार और उद्देश्यः रोपित आवरण फसलों को एक गैर-प्रदूषक अवशोषक अपतृणनाशी रसायन के पूर्व-रोपण प्रयोगों द्वारा नियंत्रित किया जाता है.
उत्तरवर्ती खरपतवार नियंत्रणः यह शाकनाशी द्वारा किया जाता है. इसमें से कुछ मृदा से अंकुर निकलने से पूर्व प्रयोग किए जाने वाले शाकनाशी होते हैं जबकि ज्यादातर पौध उद्भव उपरांत प्रयोग किये जाने वाले शाकनाशी होते हैं.
ये भी पढ़ें: VST ने 30 दिन में बेच डाले 1783 पॉवर टिलर, अक्टूबर महीने की बिक्री में 47 फीसदी का उछाल
मृदा अपरदनः यह 90 प्रतिशत तक कम हो जाता है और मृदा जैविक गतिविधि और जैव विविधता अधिकतम हो जाती है.
सतत बाग प्रबंधन ने संसाधनों के संरक्षण, मिट्टी और पर्यावरण में सुधार और सामाजिक रूप से जिम्मेदार होने के साथ-साथ व्यवहार्य व्यावसायिक फल उत्पादन प्रदान करने के दृष्टिकोण के रूप में ध्यान आकर्षित किया है. इस प्रबंधन में मशीनों का कम उपयोग, कीट नियंत्रण स्प्रे की न्यूनतम आवृत्ति, कीटनाशक का कम उपयोग और न्यूनतम कृत्रिम आदानों के साथ वृक्ष पोषण का प्रबंधन करना शामिल है. शून्य जुताई पद्धति ने फसल उत्पादन प्रणालियों में क्रांति ला दी है क्योंकि यह व्यक्तिगत उत्पादकों को कम ऊर्जा, श्रम और मशीनरी आदानों के साथ बेहतर तरीके से भूमि का प्रबंधन करने की अनुमति देता है.